परशुराम : क्षत्रियों के दमन से विश्व – मुक्ति को हुआ जन्म 

By: Apr 25th, 2020 12:30 am

परशुराम राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे। वे विष्णु के अवतार और शिव के परम भक्त थे। इन्हें शिव से विशेष परशु प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किंतु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किए रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। परशुराम भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार थे, जो वामन एवं रामचंद्र के मध्य में गिना जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये जामदग्न्य भी कहे जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया) को हुआ था। अतः इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। परंपरा के अनुसार इन्होंने क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए इनका जन्म हुआ था…

जन्म

भृगु ने अपने पुत्र के विवाह के विषय में जाना तो बहुत प्रसन्न हुए तथा अपनी पुत्रवधू से वर मांगने को कहा। उनसे सत्यवती ने अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र जन्म की कामना की। भृगु ने उन दोनों को चरु भक्षणार्थ दिए तथा कहा कि ऋतुकाल के उपरांत स्नान करके सत्यवती गूलर के पेड़ तथा उसकी माता पीपल के पेड़ का आलिंगन करे तो दोनों को पुत्र प्राप्त होंगे। मां-बेटी के चरु खाने में उलट-फेर हो गई। दिव्य दृष्टि से देखकर भृगु पुनः वहां पधारे तथा उन्होंने सत्यवती से कहा कि तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणोचित व्यवहार करेगा तथा तुम्हारा बेटा ब्राह्मणोचित होकर भी क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला होगा। बहुत अनुनय-विनय करने पर भृगु ने मान लिया कि सत्यवती का बेटा ब्राह्मणोचित रहेगा, किंतु पोता क्षत्रियों की तरह कार्य करने वाला होगा। सत्यवती के पुत्र जमदग्नि मुनि हुए। उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह किया। रेणुका के पांच पुत्र हुए ः रुमण्वान, सुषेण, वसु विश्वावसु तथा पांचवें पुत्र का नाम परशुराम था। वही क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला पुत्र था। एक बार सद्यस्नाता रेणुका राजा चित्ररथ पर मुग्ध हो गई। उसके आश्रम पहुंचने पर मुनि को दिव्य ज्ञान से समस्त घटना ज्ञात हो गई। उन्होंने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों को मां की हत्या करने का आदेश दिया। किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ। जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दिया। परशुराम ने तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया। जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने के लिए कहा। परशुराम ने पहले वर से मां का पुनर्जीवन मांगा और फिर अपने भाइयों को क्षमा कर देने के लिए कहा। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम से कहा कि वह अमर रहेगा। एक दिन जब परशुराम बाहर गए थे तो कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आए। युद्ध के मद में उन्होंने रेणुका का अपमान किया तथा उसके बछड़ों का हरण करके चले गए। गाय रंभाती रह गई। परशुराम को मालूम पड़ा तो क्रुद्ध होकर उन्होंने सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला। हैहयराज के पुत्र ने आश्रम पर धावा बोला तथा परशुराम की अनुपस्थिति में मुनि जमदग्नि को मार डाला। परशुराम घर पहुंचे तो बहुत दुखी हुए तथा पृथ्वी को क्षत्रियहीन करने का संकल्प किया। अतः परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया। समंत पंचक क्षेत्र में पांच रुधिर के कुंड भर दिए। क्षत्रियों के रुधिर से परशुराम ने अपने पितरों का तर्पण किया। उस समय ऋचीक साक्षात प्रकट हुए तथा उन्होंने परशुराम को ऐसा कार्य करने से रोका। ऋत्विजों को दक्षिणा में पृथ्वी प्रदान की। ब्राह्मणों ने कश्यप की आज्ञा से उस वेदी को खंड-खंड करके बांट लिया, अतः वे ब्राह्मण जिन्होंने वेदी को परस्पर बांट लिया था, खांडवायन कहलाए।

कथा

एक बार उनकी मां जल का कलश लेकर भरने के लिए नदी पर गईं। वहां गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसे देखने में रेणुका इतनी तन्मय हो गई कि जल लाने में विलंब हो गया तथा यज्ञ का समय व्यतीत हो गया। उसकी मानसिक स्थिति समझकर जमदग्नि ने अपने पुत्रों को उसका वध करने के लिए कहा। परशुराम के अतिरिक्त कोई भी ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुआ। पिता के कहने से परशुराम ने मां का वध कर दिया। पिता के प्रसन्न होने पर उन्होंने वरदान स्वरूप उनका जीवित होना मांगा। परशुराम के पिता ने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चारों बेटों को मां की हत्या करने का आदेश दिया। परशुराम के अतिरिक्त कोई भी तैयार न हुआ। अतः जमदग्नि ने सबको संज्ञाहीन कर दिया। परशुराम ने पिता की आज्ञा मानकर माता का शीश काट डाला। पिता ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो उन्होंने चार वरदान मांगे ः मां पुनर्जीवित हो जाए, उन्हें मरने की स्मृति न रहे, भाई चेतना-युक्त हो जाएं और मैं परमायु होऊं। जमदग्नि ने उन्हें चारों वरदान दे दिए।

राम के पराक्रम की परीक्षा

राम का पराक्रम सुनकर वे अयोध्या गए। दशरथ ने उनके स्वागतार्थ रामचंद्र को भेजा। उन्हें देखते ही परशुराम ने उनके पराक्रम की परीक्षा लेनी चाही। अतः उन्हें क्षत्रियसंहारक दिव्य धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए कहा। राम के ऐसा कर लेने पर उन्हें धनुष पर एक दिव्य बाण चढ़ाकर दिखाने के लिए कहा। राम ने वह बाण चढ़ाकर परशुराम के तेज पर छोड़ दिया। बाण उनके तेज को छीनकर पुनः राम के पास लौट आया। राम ने परशुराम को दिव्य दृष्टि दी, जिससे उन्होंने राम के यथार्थ स्वरूप के दर्शन किए। परशुराम एक वर्ष तक लज्जित, तेजहीन तथा अभिमानशून्य होकर तपस्या में लगे रहे। तदनंतर पितरों से प्रेरणा पाकर उन्होंने वधूसर नामक नदी के तीर्थ पर स्नान करके अपना तेज पुनः प्राप्त किया।

रामकथा में परशुराम

चारों पुत्रों के विवाह के उपरांत राजा दशरथ अपनी विशाल सेना और पुत्रों के साथ अयोध्या पुरी के लिए चल पड़े। मार्ग में अत्यंत क्रुद्ध तेजस्वी महात्मा परशुराम मिले। उन्होंने राम से कहा कि वे उसकी पराक्रम गाथा सुन चुके हैं, पर राम उनके हाथ का धनुष चढ़ाकर दिखाएं। तदुपरांत उनके पराक्रम से संतुष्ट होकर वे राम को द्वंद्व युद्ध के लिए आमंत्रित करेंगे। दशरथ अनेक प्रयत्नों के उपरांत भी ब्राह्मणदेव परशुराम को शांत नहीं कर पाए। परशुराम ने बतलाया कि ‘विश्वकर्मा ने अत्यंत श्रेष्ठ कोटि के दो धनुषों का निर्माण किया था। उनमें से एक तो देवताओं ने शिव को अर्पित कर दिया था और दूसरा विष्णु को। एक बार देवताओं के यह पूछने पर कि शिव और विष्णु में कौन बलवान है, कौन निर्बल, ब्रह्मा ने मतभेद स्थापित कर दिया। फलस्वरूप विष्णु की धनुष टंकार के सम्मुख शिव धनुष शिथिल पड़ गया था, अतः पराक्रम की वास्तविक परीक्षा इसी धनुष से हो सकती है। शांत होने पर शिव ने अपना धनुष विदेह वंशज देवरात को और विष्णु ने अपना धनुष भृगुवंशी ऋचीक को धरोहर के रूप में दिया था, जो कि मेरे पास सुरक्षित है।’ राम ने क्रुद्ध होकर उनके हाथ से धनुष बाण लेकर चढ़ा दिया और बोले, ‘विष्णुबाण व्यर्थ नहीं जा सकता। अब इसका प्रयोग कहां पर किया जाए।’ परशुराम का बल तत्काल लुप्त हो गया। उनके कथनानुसार राम ने बाण का प्रयोग परशुराम के तपोबल से जीते हुए अनेक लोकों पर किया, जो कि नष्ट हो गए। परशुराम ने कहा, ‘हे राम, आप निश्चय ही साक्षात विष्णु हैं।’ इसके बाद परशुराम ने महेंद्र पर्वत के लिए प्रस्थान किया। राम आदि अयोध्या की ओर बढ़े। उन्होंने यह धनुष वरुण देव को दे दिया। परशुराम की छोड़ी हुई सेना ने भी राम आदि के साथ प्रस्थान किया।


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