पानी से जुड़ा है स्वच्छता का मसला

By: Apr 30th, 2020 12:06 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

सरकारों और सामाजिक संगठनों को इसके प्रति जागरूक होकर ऐसे कार्यक्रम बनाने होंगे ताकि सफाई के अभाव के कारण असमय मृत्यु से बचा जा सके। बारह वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 2008 को अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता वर्ष घोषित किया था। स्वच्छ रहने के लिए साफ पानी की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है और स्वच्छता, पानी की उपलब्धता से जुड़ा हुआ मसला है। विश्व में 2.60 अरब लोगों को स्वच्छता संबंधी मूल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं…

पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहा जाता है क्योंकि जब इसे सुदूर आकाश से देखा जाता है तो पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है। समुद्र से प्रतिबिंबित किरणों के कारण ऊपर से देखने पर धरती नीली दिखाई पड़ती है। पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है। पुराने जमाने में सभी सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुईं क्योंकि खेती के लिए और प्यास बुझाने के लिए पानी की आवश्यकता थी। पृथ्वी की ही तरह हमारे शरीर में भी जल की बड़ी मात्रा होती है। सत्तर किलोग्राम वज़न के किसी व्यक्ति में लगभग 40 लीटर जल होता है। यह हमारे शरीर का लगभग 57 प्रतिशत भाग है। अलग-अलग उम्र के व्यक्तियों में यह प्रतिशत भिन्न हो सकता है, इसी तरह अलग-अलग देशों के निवासियों के शरीर में भी जल का प्रतिशत अलग हो सकता है, पर 57 प्रतिशत के औसत से ही आप समझ सकते हैं कि हमारे शरीर की संरचना ऐसी है कि पानी पर हमारी निर्भरता कभी कम नहीं हो सकती। खेती और प्यास के अतिरिक्त शरीर और कपड़ों की सफाई, यानी स्नान और धुलाई के लिए भी हमें पानी की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि जल को जीवन कहा जाता है। लेकिन यही जल मृत्यु का भी कारण बन सकता है। जल-जनित रोग या पानी से होने वाली बीमारियां वे बीमारियां हैं जो नहाते समय या धुलाई करते हुए प्रदूषित जल के संपर्क में आने से या प्यास बुझाने आदि के लिए प्रदूषित जल के सेवन के कारण होती हैं। मलेरिया के प्रकोप के लिए मच्छर को दोषी माना जाता है। जबकि सच यह है कि मलेरिया का मूल कारण मच्छर नहीं, बल्कि वह पानी है जहां मच्छर पैदा होते, पलते और बढ़ते हैं। पानी से होने वाली मौतों में अभी हम बाढ़ की विभीषिका से होने वाली जान-माल की हानि को नहीं गिन रहे हैं। यह समझना मुश्किल नहीं है कि पानी जीवनदायी ही नहीं, अकाल मृत्यु का भी एक बड़ा कारण है। शरीर में पानी की बहुतायत है, पृथ्वी पर पानी की बहुतायत है, पर यह सारा पानी सुरक्षित नहीं है। प्रदूषित जल के संपर्क में आने से हमें त्वचा के रोग हो सकते हैं और प्रदूषित जल के सेवन से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि असुरक्षित जल और साफ.-सफाई की कमी से होने वाली डायरिया जैसी बीमारियां पूरी दुनिया में हर रोज पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 2000 बच्चों की जान ले लेती हैं। दुर्भाग्यवश इनमें से 24 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में होती हैं जो दुनिया भर में सबसे बड़ा प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के बाल मृत्यु के आंकड़े बताते हैं कि कुल मौतों में से करीब आधी मौतें सिर्फ पांच देशों यानी भारत, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान और चीन में होती हैं। आंकड़ों के अनुसार भारतवर्ष में बाल-मृत्यु की दर 24 प्रतिशत के साथ यदि नाइजीरिया की 11 प्रतिशत की मृत्यु दर को जोड़ दिया जाए, दुनिया भर में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों की एक तिहाई के लिए दोनों देश जि़म्मेदार हैं। इन दोनों देशों की बहुत बड़ी जनसंख्या सुरक्षित जल और साफ.-सफाई से वंचित है। सरकार स्वास्थ्य योजनाओं पर हर साल अरबों रुपए खर्च कर डालती है, लेकिन पानी और सफाई के इस मूल मुद्दे पर अभी बहुत काम बाकी है। साफ पानी के अभाव और स्वच्छता से जुड़े मूल नियमों की जानकारी न होने से बहुत से मौतें होती हैं, जिन्हें रोका जा सकता है।

सरकारों और सामाजिक संगठनों को इसके प्रति जागरूक होकर ऐसे कार्यक्रम बनाने होंगे ताकि सफाई के अभाव के कारण असमय मृत्यु से बचा जा सके। बारह वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 2008 को अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता वर्ष घोषित किया था। स्वच्छ रहने के लिए साफ पानी की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है और स्वच्छता, पानी की उपलब्धता से जुड़ा हुआ मुद्दा है। विश्व भर में लगभग दो अरब 60 करोड़ लोगों को स्वच्छता संबंधी मूल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। सन् 2008 को अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता वर्ष घोषित करने के पीछे उद्देश्य यह था कि लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए और सन् 2015 तक स्वच्छता संबंधी सुविधाओं से वंचित लोगों की संख्या आधी की जा सके। संयुक्त राष्ट्र संघ इस सहस्राब्दि में विकास के जिन लक्ष्यों की पूर्ति चाहता था, यह उसका एक महत्त्वपूर्ण भाग था। लेकिन हम जानते हैं कि इस उद्देश्य की पूर्ति सरकारी योजनाओं से तो नहीं हो पाई, हां, अब कोरोना वायरस के कारण हमें कुछ साफ  हवा और साफ पानी की उम्मीद नज़र आई है। सवाल यह है कि कोरोना से उबरने के बाद इस मामले में हमारा रवैया क्या होगा?

सन् 2007 में कुछ ब्रितानी शोधकर्ताओं ने भारतवर्ष के पानी में एक सुपरबग होने की आशंका जाहिर की थी। इसे सुपरबग इसलिए कहा गया क्योंकि यह एक ऐसा बैक्टीरिया है जिस पर ज़्यादातर एंटीबायोटिक्स का असर नहीं होता। शोधकर्ताओं ने दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों से पानी के नमूने लिए और उसकी जांच की। इसमें सार्वजनिक नलों से भी पानी लिया गया और जगह-जगह जमा गंदे पानी के नमूने भी लिए गए। शोधकर्ताओं ने पाया कि चार प्रतिशत नल के पानी के बैक्टीरिया में एमबीएल-1 जीन थे। यही वह जीन है जो व्यापक रूप से इस्तेमाल में लाए जाने वाले एंटीबायोटिक्स का प्रतिरोध पैदा करता है, यानी जो लोग भी उस पानी को पी रहे थे या उस पानी में पका भोजन खा रहे थे, उनके शरीर में लगातार बहुत सी दवाओं के लिए प्रतिरोध करने वाला बैक्टीरिया जा रहा है। एमबीएल-1 यानी मेटैलो-बीटा-लैक्टामेज़-1 एक ऐसा एंज़ाइम है जो अलग तरह के बैक्टीरिया के अंदर आसानी से रह सकता है। इस एंज़ाइम को जो भी बैक्टीरिया अपने साथ लेकर चलेगा उस पर कार्बापेनेम एंटीबायोटिक का कोई असर नहीं हो पाएगा। चिंता का कारण यही है कि कार्बानेनेम एंटीबायोटिक सबसे शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि जिन संक्रामक रोगों (इन्फेक्शन) पर दूसरी कई दवाइयों का असर नहीं होता, कार्बापेनेम एंटीबायोटिक उन पर भी असर करता है। पर एमबीएल-1 जीन के कारण यह एंटीबायोटिक भी अप्रभावी हो जाता है। यह समझना बहुत आवश्यक है कि स्वच्छ पानी को लेकर भारतवर्ष में बहुत कुछ किया जाना बाकी है और यदि इस ओर अब भी ध्यान न दिया गया तो हम न केवल एक बड़ी आबादी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे होंगे, बल्कि हमारी स्वास्थ्य सेवा योजनाएं या तो अप्रभावी रहेंगी या अधूरी रह जाएंगी। यही नहीं, बड़ी संख्या में वे शिशु दुनिया नहीं देख पाएंगे जो दुनिया में आते तो शायद अपनी उपलब्धियों से नया इतिहास बना सकते थे। महिला एवं बाल स्वास्थ्य विभाग यूं तो बहुत सारी योजनाएं बनाता है, उन योजनाओं के प्रचार पर पानी की तरह पैसा बहता है, पर स्वास्थ्य रक्षा के मूल कारण, यानी स्वच्छ पानी की उपलब्धता को जब तक हम अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन का केंद्र बिंदु नहीं मानेंगे, यह समस्या नहीं सुलझ पाएगी।

ईमेलः indiatotal.features@gmail.com


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