‘रामबाण’ दवा बनाएंगी हिमाचल की 48 कंपनियां

By: Apr 10th, 2020 12:10 am

इपका लैबोरेटरीज, जाइडस कैडिला और वालेस जैसी शीर्ष कंपनियों ने संभाली कमान

बीबीएन-कोरोना वायरस के उपचार के लिए रामबाण मानी जा रही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की मांग को पूरा करने में हिमाचल के दवा उद्योग पूरी तरह सक्षम हैं। मौजूदा समय में प्रदेश के 48 दवा उद्योगों के पास इस जीवनरक्षक दवा के निर्माण का लाइसेंस है। इन उद्योगों की दवा निर्माण क्षमता दो लाख से एक करोड़ टैबलेट प्रतिदिन है। यही नहीं, करीब 30 लाख से ज्यादा टैबलेट्स का स्टॉक इन कंपनियों के पास तैयार पड़ा है, जबकि दस से ज्यादा फार्मा कंपनियों ने युद्धस्तर पर इसका निर्माण भी शुरू कर दिया है। यहां उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज में मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के प्रभावशाली पाए जाने के बाद देश व  दुनिया में इसकी मांग बढ़ गई है। अमरीका सहित दुनिया के कई देश भारत से इसकी मांग कर रहे हैं। ऐसे में एशिया के फार्मा हब के तौर पर उभरे हिमाचल की ओर सभी की नजरें आ टिकी हैं। हिमाचल की दवा कंपनियोंने भी इस चुनौती से निपटने के लिए उत्पादन बढ़ा दिया है। प्रदेश में इस समय 48 दवा कंपनियों के पास इस दवा के निर्माण का लाइसेंस है, इनमें से  जाइडस कैडिला, इनोवा कैपटेब, लोगोस, मेडिपोल सहित दस अन्यों ने बड़े पैमाने पर इस जीवनरक्षक दवा का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। इन कंपनियों के पास करीब 30 लाख हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन तैयार पड़ी हैं, जबकि करीब 1600 किलो एपीआई (कच्चा माल) स्टॉक में है। राज्य दवा नियंत्रक प्राधिकरण द्वारा जुटाई जानकारी के मुताबिक इन 48 दवा उद्योगों की प्रतिदिन दवा निर्माण क्षमता दो लाख से 40 लाख टेबलेट की है, जबकि अकेले इनोवा कैपटेव उद्योग प्रतिदिन एक करोड़ टैबलेट बना सकता है। राज्य सरकार ने भी इसी कड़ी में दवा कंपनियों को सहयोग देने के लिए हर संभव कदम उठाया है, जिसके नतीजे उत्पादन में बढ़ोतरी से दिखने लगे हैं। बताते चलें कि कोरोना मरीजों पर इसके अच्छे प्रभाव की बात सामने आने के बाद 25 मार्च को भारत सरकार ने इसके निर्यात पर रोक लगा दी थी, जिसे अमरीका सहित अन्य देशों से बढ़ती मांग के बाद कोरोना वायरस से निपटने में सहयोग की प्रतिबद्धता जताते हुए हटा लिया है। हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने करीब 10 करोड़ एचसीक्यू टेबलेट का ऑर्डर इपका लैबोरेटरीज और जाइडस कैडिला को दिया है। गौरतलब है कि देश में एक साल में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की 2.4 करोड़ टैबलेट की जरूरत होती है। भारत में अभी सालाना 40 मीट्रिक टन कच्चे माल से यह दवा बनाने की क्षमता है। इससे हम 200 एमजी के 20 करोड़ टैबलेट बना सकते हैं। चूंकि इस दवा का उपयोग रूमेटाइड आर्थराइटिस जैसी ऑटो इम्यून बीमारी के इलाज में भी किया जाता है, इसके कारण मेन्यूफैक्चर्स के पास उत्पादन क्षमता अच्छी है, जिसे वे कभी भी बढ़ा सकते हैं।

कुल खपत का 70 फीसदी उत्पादन भारत में

दुनिया में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की कुल खपत का 70 फीसदी उत्पादन भारत में होता है। इपका लैबोरेटरीज, जाइडस कैडिला और वालेस फार्मासूटिकल्स शीर्ष दवा कंपनियां हैं, जो देश में एचसीक्यू का विनिर्माण करती हैं। भारत एचसीक्यू में इस्तेमाल 70 फीसदी जरूरी रसायन एपीआई चीन से लेता है और फिलहाल आपूर्ति स्थिर है।

देश-दुनिया की मांग पूरी करने में सक्षम

राज्य दवा नियंत्रक नवनीत मारवाहा ने बताया कि प्रदेश के दवा उद्योगों के पास देश-दुनिया की मांग को पूरा करने की क्षमता उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि फार्मा सेक्टर ने भरोसा दिलाया है कि उनके पास हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का पर्याप्त स्टॉक है, साथ ही देश और दुनिया की मांग को पूरा करने में भी सक्षम है।

रोजाना एक करोड़ टेबलेट्स की है क्षमता

दवा उपनियंत्रक मुनीष क पूर ने बताया कि प्रदेश में 48 दवा कंपनियों के पास हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का लाइसेंस है। इन कंपनियों के पास 30 लाख से ज्यादा टेबलेट्स तैयार पड़ी हैं, जबकि कच्चा माल भी पर्याप्त मात्रा में उपल्बध है। ये कंपनियां रोजाना दो लाख से एक करोड़ टेबलेट्स निर्माण की क्षमता रखती हैं।


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