विश्व व्यापार पर पुनर्विचार

By: Apr 14th, 2020 12:06 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

चीन में भारी मात्रा में माल का निर्यात किया जाता है, आयात कम किए जाते हैं। निर्यातों से अर्जित अतिरिक्त रकम को चीन अमरीका आदि विकसित देशों को ऋण देने के लिए उपयोग करता है। इस प्रकार अमरीका चीन पर दो तरह से परावलंबित रह जाता है। पहला यह कि अमरीका को कपड़े, मोबाइल फोन, टेलीविजन इत्यादि माल चीन से आयात करने होते हैं। दूसरा यह कि अमरीका के पास अपनी खपत और अपने जीवन स्तर को ऊंचा बनाए रखने के लिए अपनी आय कम है…

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनाइटेड नेशंस कान्फें्रस ऑन ट्रेड ऑन डिवेलपमेंट यानी अंकटाड द्वारा विश्व की अर्थव्यवस्था पर नजर रखी जाती है। इस संस्था ने हाल में कहा है कि कोरोना वायरस के कारण चल रहे वैश्विक आर्थिक संकट से चीन निकल जाएगा और भारत के भी बचने की संभावना है। जहां उन्होंने चीन पर विश्वास जताया है कि चीन इस संकट का सामना कर लेगा वहीं भारत की स्थिति पर उन्होंने प्रश्न चिन्ह लगाया है। विषय को समझने के लिए पहले यह देखना होगा कि चीन और भारत को अन्य देशों से अंकटाड ने अलग क्यों किया। ये कारण मेरी समझ से हैं, अंकटाड ने नहीं बताए हैं।

हमारे दोनों देशों की पहली विशेष परिस्थिति यह है कि हमारे देशों में वृद्धों का अनुपात कम है। 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति भारत की जनसंख्या के मात्र 6 प्रतिशत हैं जबकि चीन के 11 प्रतिशत। फ्रांस, इटली, स्पेन, इंग्लैंड और अमरीका में इनका अनुपात 15 से 23 प्रतिशत है। अधिक संख्या में वृद्धों के होने से इन देशों में संकट अधिक आया है क्योंकि कोरोना द्वारा वृद्धों पर अधिक प्रभाव डाला जाता है। चीन और भारत के इस संकट से बचे रहने का दूसरा कारण इन दोनों देशों की विश्व व्यापार पर कम निर्भरता दिखती है। आमतौर पर समझा जाता है कि चीन विश्व अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है, लेकिन चीन के जुड़ाव में परावलंबिता नहीं है। यानी उस जुड़ाव में चीन पर दूसरे देश निर्भर हैं न कि चीन दूसरे देशों पर निर्भर है। जैसे बड़ी फैक्टरी पर छोटा वेंडर परावलंबित होता है, लेकिन छोटे वेंडर पर बड़ी फैक्टरी उतना अवलंबित नहीं होती है।

चीन में भारी मात्रा में माल का निर्यात किया जाता है, आयात कम किए जाते हैं। निर्यातों से अर्जित अतिरिक्त रकम को चीन अमरीका आदि विकसित देशों को ऋण देने के लिए उपयोग करता है। इस प्रकार अमरीका चीन पर दो तरह से परावलंबित रह जाता है। पहला यह कि अमरीका को कपड़े, मोबाइल फोन, टेलीविजन इत्यादि माल चीन से आयात करने होते हैं। दूसरा यह कि अमरीका के पास अपनी खपत और अपने जीवन स्तर को ऊंचा बनाए रखने के लिए अपनी आय कम है। इसलिए अमरीका चीन से भारी मात्रा में रकम को उधार लेकर खपत कर रहा है। अमरीकी सरकार द्वारा जारी ट्रेजरी बांड को चीन भारी मात्रा में खरीद रहा है। इसलिए यद्यपि चीन और अमरीका दोनों  का गहरा जुड़ाव है। परंतु इस जुड़ाव में अमरीका चीन पर अधिक परावलंबित है और चीन अमरीका पर कम। हां, अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नई तकनीकें चीन में लगाई गई फैक्टरियों में उपयोग की जा रही हैं। परंतु समय क्रम में चीन भी इन तकनीकों को बनाने लगा है। जैसे चीन द्वारा स्वयं फाइटर प्लेन आदि का निर्माण किया जाता है।

चीन राफेल या अन्य हवाई जहाज बनाने वाली कंपनियों पर निर्भर नहीं है। इसलिए यदि कोरोना के संकट के कारण विश्व व्यापार कम होता है तो उससे नुकसान अमरीका को अधिक और चीन को कम होगा। चीन को केवल इतनी परेशानी होगी कि उसका माल कम मात्रा में निर्यात होगा, लेकिन उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था की मांग बनी रहेगी। इसलिए अंकटाड ने कहा कि चीन इस संकट से निकल जाएगा। संकट से बचे रहने का तीसरा कारण है कि भारत और चीन ये दोनों बड़े देश हैं। इनमें अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग जलवायु है और विभिन्न प्रकार के कृषि एवं उत्पादित माल अलग-अलग क्षेत्रों में बनाए जा रहे हैं।

इन देशों का विश्व व्यापार से संबंध टूटता है तो ये अपनी अधिकतम जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकते हैं। जैसे यदि मालद्वीप का संसार से संबंध टूट जाए तो मालद्वीप को लोहे, एल्युमीनियम, खाद इत्यादि नहीं मिलेंगे और उनकी अर्थव्यवस्था टूट जाएगी, लेकिन चीन और भारत लोहा, एल्युमीनियम और फर्टिलाइजर स्वयं बना सकते हैं। इसलिए चीन और भारत को वर्तमान आर्थिक संकट कम प्रभावित करेगा। बचे रहने का चौथा कारण इन देशों की ऊंची बचत दर है। भारत द्वारा अपनी आय का 30 प्रतिशत बचत किया जाता है जबकि चीन द्वारा 47 प्रतिशत। तुलना में फ्रांस, इटली, स्पेन, इंग्लैंड और अमरीका की बचत दर 15 से 22 प्रतिशत है। बचत दर अधिक होने का अर्थ यह हुआ कि हमारे देश के परिवारों का सुरक्षा कवच ज्यादा कारगर है। यदि हमारे परिवारों को रोजगार नहीं मिला या विश्व व्यापार में निर्यात न होने के कारण बेरोजगार हो गए तो इनके पास तुलना में अधिक समय बिना आय के काटने की क्षमता है। तुलना में विकसित देशों ने अपने नागरिकों को ऋण लेकर खपत करने को लगातार प्रोत्साहित किया है। इसलिए अमरीका के कई राज्यों में कोरोना संकट के आने के साथ बेरोजगारी भत्ता की मांग करने वालों की संख्या दस गुना तक बढ़ गई है। ये लोग बेसहारा हो गए हैं, चूंकि इनके पास अपनी बचत नहीं है।

इस परिप्रेक्ष्य में हमें विचार करना है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था को किस तरफ  ले चलें जिससे अंकटाड द्वारा इंगित की गई संभावना को हम फलीभूत कर सकें। मेरी समझ से हमें विश्व व्यापार यानी वैश्वीकरण पर मूल रूप से पुनर्विचार करना चाहिए। इतना सही है कि विश्व व्यापार से हमें सस्ता माल उपलब्ध हो जाता है। जैसे चीन में बने बल्ब और खिलौने, लेकिन साथ-साथ हमारे कर्मियों के रोजगार समाप्त होते हैं और विश्व व्यापार से अधिक जुड़ाव होने के कारण हमारी आर्थिक सुरक्षा कमजोर पड़ती है। अतः हमें हर क्षेत्र में खुले व्यापार को अपनाने के स्थान पर केवल जरूरी क्षेत्रों में खुले व्यापार को अपनाना चाहिए।

किसी समय स्वदेशी जागरण मंच का नारा था कि हमें कम्प्यूटर चिप्स चाहिए, पोटेटो चिप्स नहीं। मैं समझता हूं कि वह विचार आज भी सही है। हमने चौतरफा हर क्षेत्र में विश्व व्यापार को अपना कर अपनी आर्थिक सुरक्षा को कमजोर बना दिया है। हम आज तमाम ऐसी वस्तुओं के लिए विश्व व्यापार पर निर्भर हो गए हैं जिन्हें हम अपने देश में स्वयं बना सकते थे, यद्यपि हमारे देश में उत्पादन लागत थोड़ी अधिक पड़ती। मूल रूप से हमें आर्थिक सुरक्षा और सस्ते माल के बीच चयन करना है। यदि हम सस्ते माल के पीछे भागेंगे तो हम हर क्षेत्र में विश्व व्यापार को अपनाएंगे और कोरोना जैसे संकट से हम नहीं निकल पाएंगे क्योंकि हमारी जरूरत की तमाम वस्तुओं के लिए हम दूसरे देशों पर निर्भर हो जाएंगे।

विश्व व्यापार के मंद पड़ने पर ये वस्तुएं हमें नहीं मिलेंगी। जैसे मान लीजिए कि तांबे की केबल के लिए हम विश्व बाजार पर निर्भर हो गए तो हमारे देश में ये केवल उपलब्ध नहीं होंगे और बिजली का काम कमजोर पड़ जाएगा। इसलिए हमें विश्व व्यापार के फैलाव से पीछे हटना चाहिए और यथासंभव अपनी जरूरत के माल को स्वयं बनाना चाहिए। यह कुछ महंगा पड़े तो भी बर्दाश्त करना चाहिए। हमारी आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। माल कुछ महंगा होगा तो चल सकता है।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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