विष्णु पुराण
अभिताभा भूतरथो वैकुंठास्ससुमेधसः।
एते देवगणास्तत्र चतुर्दश चतुर्दशा।।
हिरण्यरोमा वेदश्रीरूर्ध्वबाहुस्तथापरः।
वेदबाहूस्सुधामा च पर्जंयश्च महामुनिः।।
एते सत्यर्षयो विप्र तत्रासन्नैबतेऽतरे।
बलवंधुश्च संभाव्य संभाव्य स्तत्यकाद्यश्च तत्सुताः।।
नरेंद्राश्च महावीर्य बभूवर्मुनिसत्तम।।
हे मैत्रेय जी पांचवें मन्वंतर के मनु रैवत थे। विभु नामक इंद्र और जो-जो देवगण हुए उनके नामों को सुनो। इस मन्वंतर में अभिताभ,भूतस्य,वैकुंठ असौर सुमेधा नामक देवताओं के वर्ग थे। प्रत्येक वर्ग में चौदह गण थे। हिरण्यरोमा वेद,श्री, ऊर्ध्वबाहु, सुधामा,पर्जन्य और महामुनि यह उस मन्वंतर के सप्तर्षि थे। हे मुनिश्रेष्ठ उस समय रैवत मनु के अत्यंत पराक्रमी पुत्र बलबंधु, संभाव्य और सत्य आदि राज्य के अधिकारी हुए।
स्वारोचिषश्चीतमश्च तामसो रैवातास्तथा।
प्रियव्रतान्वया ह्येते चत्वारो मनवस्मृताः।।
विष्णुमाराध्य तपसा स राजर्षिः प्रियव्रतः।
मन्वंतर राधिपाने तानल्लब्धवानात्मवशजान।।
षष्ठे मन्वंतरे चासीच्चाक्षुषाख्स्तथा तनुः।
मनोजस्य थैवेंद्रो देवनषि निबोध में।।
आप्याःप्रसूता भव्याश्च पृथुकाश्च दिवौकसः।
महानुभावा लेखश्च पंचते ह्यष्टका गणाः।।
सुमेधा विरजाश्चैव हविष्मानुभो मघः।
अतिनामा सहिष्णुश्च सप्तासंन्निति चर्षयः।।
ऊरुपुरुष शतद्युम्नव्रमुखास्सु महाबलाः।
चाक्षुषस्य मनोः पुत्राः पृथिवीपतयोऽभवन।।
हे मैत्रेय जी! स्वारोचिप,उत्तम,तामस और रैवत यह चार मनु राजा प्रियव्रत के कुल में उत्पन्न हुए बताए जाते हैं। राजर्षि प्रियव्रत ने तप के द्वारा भगवान विष्णु को प्रसन्न करके अपने वंश में उद्भूत हुए इन चार मनुष्य को पाया था। छठवें मन्वंतर में चाक्षुस नामक मनु हुए। उस समय के इंद्र का नाम मनोजस था। उस मन्वंतर के देवताआें के नाम सुनो। आप्य,प्रसूत,भव्य, प्रथक और लेख यह पांच प्रकार के देवता थे। इन प्रत्येक गण में आछ देवता हुए और उस समय सुमेधा, विरजा, हविष्यमान, त्तम, मधु, अतिवाधा और महिष्ण नामक सप्तर्षि थे। चाक्षुस मनु के अत्यंत बली पुत्र उरु,पुरु और शतद्युम्नादि राज्य के अधिकारी हुए।
विस्वतस्मृतो पिव्र श्राद्धदेवो महाद्युतिः।
मनुस्संवतंते धीमान साम्प्रत सप्तमेऽन्तरे।।
आदित्य वमरुद्राद्या देवश्चात्रा महामुने।
पुरंदपस्तथैवात्र मैत्रेय त्रिदशेश्वरः।।
वशिष्ठः काश्यपोऽयात्रिमर्जरग्निस्सगौतमः।
विश्वामित्र भरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोऽभवन।।
इक्ष्वांकुश्च नृगश्चव धृष्ट शर्यातिरेव च ।
नरिष्यंतश्चश्च विख्यातो नाभागोऽरिष्ट एवं च।।
हे द्विज! इस समय यह सातवां मन्वंतर है। इसमें महातेजस्वी और धीमान सूर्य पुत्र श्राद्धदेव मनु हैं। आदित्य,वसु और रुद्रादि देवता तथा पुरंदर नामक इंद्र इस मन्वंतर के हैं। वशिष्ठ, कश्यप अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भरद्वाज नामक सप्तर्षि हैं। वैवस्वत मनु के नौ पुत्र हुए जिनके नाम इक्ष्वाकु, नृप, धृष्ठ, शर्याति, चरिष्यंत,नाभाग, अष्ठि, कुरूप और पृषघ्न हुए। यह सभी धर्मात्मा और संसार में प्रसिद्ध थे।
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