सिकंदर का जीवन

By: Apr 11th, 2020 12:05 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

डायोजनेस एक अद्भुत एवं आनंद में रहने वाले भिक्षुक थे, वे ग्रीस में एक नदी किनारे रहते थे। किसी ने उन्हें एक सुंदर भिक्षापात्र दिया था और वे सिर्फ  एक लंगोट पहनते थे। वे मंदिरों के द्वारों पर भिक्षा मांगते थे और जो भोजन उन्हें मिलता था, वही खाते थे। एक दिन, वे अपना भोजन खत्म करके नदी की ओर जा रहे थे, तभी एक कुत्ता उनसे आगे निकला, दौड़कर नदी में गया, थोड़ा तैरा, फिर रेत पर आया और खुशी से लोटने लगा। उन्होंने यह देखा और सोचने लगे, हे भगवान! मेरी जिंदगी तो कुत्ते से भी बदतर है! क्योंकि कई बार उन्हें लगता था कि वे बस नदी में कूद जाएं पर उन्हें अपने लंगोट के भीग जाने और भिक्षापात्र के खो जाने की चिंता होती थी। उस दिन उन्होंने अपना भिक्षापात्र और लंगोट फेंक दिया और पूरी तरह नग्न अवस्था में रहने लगे। एक दिन वे आनंदित अवस्था में नदी किनारे लेटे हुए थे, तभी सिकंदर उधर से गुजरा। सिकंदर को महान कहा जाता है। उसने सोलह साल की उम्र में युद्ध करना शुरू कर दिया था। बत्तीस साल की उम्र में वह बहुत दयनीय हालत में मरा, क्योंकि वह सिर्फ  आधी दुनिया को जीत पाया था, बाकी आधी दुनिया अब भी बची थी।  सिर्फ  एक महामूर्ख ही इस तरह सोलह साल तक लड़ सकता है। सिकंदर राजसी वस्त्र पहने हुए अपने घोड़े पर था, उसने नीचे डायोजनेस को देखा, जो आंखें बंद किए असीम आनंद में रेत में लोट रहे थे। सिकंदर ऊंची आवाज में लगभग चिल्लाया, नीच जानवर! तुम्हारे शरीर पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं है। तुम जानवर की तरह हो। तुम आखिर किस चीज को लेकर इतने आनंदित हो? डायोजनेस ने ऊपर उसकी ओर देखा और उससे एक सवाल पूछा जो कोई आम आदमी किसी सम्राट से पूछने की हिम्मत नहीं कर सकता था। उन्होंने पूछा, क्या तुम मेरी तरह होना चाहोगे? इस सवाल ने सिकंदर को बहुत गहराई तक प्रभावित किया, वह बोला, हां मुझे क्या करना होगा? डायोजनेस बोले, उस बेवकूफ  घोड़े से नीचे उतरो, ये सम्राट के कपड़े उतारो और उन्हें नदी में फेंक दो। यह नदी तट हम दोनों के लिए बहुत बड़ा है। मैं इस पर कब्जा नहीं कर रहा हूं। तुम भी लेटकर आनंदित हो सकते हो। कौन तुम्हें रोक रहा है? सिकंदर बोला, हां, तुम जैसा होकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन मेरे पास वह करने का साहस नहीं है जो तुम कर रहे हो। इतिहास की किताबों ने हमेशा बताया है कि सिकंदर बहुत साहसी था। फिर भी सिकंदर ने स्वीकार किया कि उसमें वह करने का साहस नहीं था जो डायोजनेस कर रहे थे। तो सिकंदर ने जवाब दिया, मैं अगले जन्म में तुम्हारे साथ आऊंगा। उसने अगले जन्म तक के लिए उसे टाल दिया। अगले जन्म में, कौन जानता है कि वह क्या बना हो सकता है। आप इंसान के रूप में एक संभावना के साथ आए हैं। अगर आप उसे गंवा दें और सोचें कि आप अगली बार उसे कर लेंगे, तो अगली बार किसने देखा है? एक क्षण के लिए सिकंदर इस संभावना के करीब आया था, मगर फिर उसने इसे टाल दिया।  इस घटना के कारण, उसके अंदर एक तरह की उदासीनता आ गई। वह अपने जीवन के अंत में युद्ध के लिए जुनून खो बैठा, मगर फिर भी आदतन वह लड़ता रहा। जुनून खत्म हो जाने के बाद उसकी ताकत कम हो गई और वह मर गया। अपनी मौत से ठीक पहले, उसने अपने सैनिकों को एक अजीब हिदायत दी। उसने कहा, जब मेरे लिए ताबूत बनाया जाए, तो उसके दोनों ओर दो छेद होने चाहिए ताकि मेरे दोनों हाथ ताबूत के बाहर हों और सबको यह पता चले कि सिकंदर महान भी इस दुनिया से खाली हाथ ही गया। उसने अपने जीवन में यही एक समझदारी का काम किया। आप अपने जीवन में समझदारी का एक काम करने के लिए आखिरी क्षण का इंतजार मत कीजिए। इसमें बहुत ज्यादा देर हो सकती है।


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