हिमाचल की सैन्य शहादतों का कारवां

By: Apr 10th, 2020 12:05 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक, बिलासपुर से हैं

ये तो अपने मुल्क के प्रति बेपनाह मोहब्बत के जज्बात रखने वाले हमारे सैनिकों का जज्बा, समर्पण तथा कडे़ सैन्य प्रशिक्षण का नतीजा है कि 22 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फ  का रेगिस्तान कहे जाने वाले दुनिया के सबसे ऊंचे व ठंडे रणक्षेत्र में जहां रात का तापमान माइनस 60 डिग्री तक गिर जाता है, वहां देश का तिरंगा पूरी शान व शिद्दत से लहरा रहा है…

यह भारत का दुर्भाग्य है कि हमारे पड़ोस में एक तरफ कोरोना वायरस कोविड-19 का जनक शातिर देश चीन बैठा है तथा दूसरी तरफ दुनिया के आतंकिस्तान का मरकज बेगैरत हमशाया मुल्क पाकिस्तान आतंक की पौध तैयार करता है। आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस के विरुद्ध जंग लड़ रही है मगर पाकिस्तान अपनी नापाक साजिशों से बाज नहीं आ रहा। पाक नियंत्रण रेखा पर भारत को दहलाने के लिए आतंकी घुसपैठ में मशगूल होकर अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने में लगा है। आईएसआई की नजरें हमेशा भारत के नाजुक हालातों पर रहती हैं। 5 अपै्रल 2020 को जब पूरा देश कोरोना वायरस के खिलाफ दीये जलाकर एकता व एकजुटता का पैगाम दे रहा था, उसी दौरान कोरोना से लड़ाई लड़ रहे हिमाचल का माहौल और गमगीन हो गया जब प्रदेश के दो सपूत देश की सरहदों से तिरंगे में लिपट कर लौट आए और वीरभूमि की शिनाख्त वाले राज्य की फिजाएं भारत माता की जय के उद्घोष से गूंज उठीं।

कश्मीर में कुपवाड़ा के दुर्गम इलाके केरन सेक्टर में नियंत्रण रेखा के निकट आतंकियों के साथ चली भीषण मुठभेड़ में भारतीय  सेना  के पांच  जवान  शहीद  तथा  12  जवान  बुरी तरह जख्मी हो गए। इन शहीदों में दो रणबांकुरों का संबंध वीरभूमि हिमाचल से था।  इनमें भारतीय सेना की 4 पैरा कमांडो यूनिट में तैनात सूबेदार संजीव कुमार का संबंध बिलासपुर तथा 24 वर्षीय शहीद कमांडो बालकृष्ण का संबंध कुल्लू से था। इस भीषण सैन्य अभियान में सेना ने पांच आतंकियों को ढेर कर दिया था। पिछले छह महीनों के दौरान कश्मीर में शहीद हुए भारतीय सेना के ज्यादातर सैनिकों का संबंध हिमाचल से रहा है। 18 नवंबर 2019 को दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में हमारे 4 सैनिक हिमस्खलन ‘एवलांच’ की चपेट में आने से शहीद हो गए थे जिनमें डोगरा रेजिमेंट के एक सैनिक का संबंध कुनिहार से था। उससे पहले 7 नवंबर 2019 को गोरखा रायफल में तैनात सुबाथू का एक सैनिक बर्फीले तूफान की जद में आने से शहीद हुआ।

साल 2019 के आखिर में सियाचिन में तैनात हमीरपुर का सपूत ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हुआ। 26 फरवरी 2020 को कश्मीर के गुरेज सेक्टर में बिलासपुर का एक जांबाज फिर बर्फीले तूफान का शिकार बना और अब 5 अप्रैल 2020 को राज्य के दो जांबाजों ने आतंकियों से लोहा लेते हुए मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। गौर रहे एक सामान्य सैनिक को सेना की स्पेशल फोर्स कमांडो का हिस्सा बनने के लिए विशेष तरीके के तीव्र प्रशिक्षण से गुजरने का सफर मुश्किलों भरा होता है तब जाकर कमांडो किसी संवेदनशील सैन्य अभियान को अंजाम देते हैं। हमारे हुक्मरान भी इन्हीं विशेष बलों की वीआईपी सुरक्षा के साये में महफूज रहते हैं। मगर यह हमारी सियासी नीतियों व व्यवस्था का दोष है कि दुनिया की टॉप सुरक्षा एजेंसियों में शुमार हमारे स्पेशल फोर्स के जवानों को भाड़े के आतंकियों से जूझना पड़ता है। यदि हिमाचली सैन्य पराक्रम के अतीत के इतिहास के सुनहरे पन्नों को पलट कर देखें तो ज्ञात होगा कि कश्मीर के लिए हिमाचल की सैन्यशक्ति के योगदान का इतिहास काफी पुराना है। मातृभूमि के लिए बलिदान देने में राज्य के जांबाजों की अपनी विशिष्ट पहचान अलग रही है।

आजादी के बाद देशरक्षा में रणबांकुरों की शहादतों का आंकड़ा 1650 के पार है जिसमें 80 प्रतिशत कुर्बानियां इसी कश्मीर के लिए हुई हैं। पाक हुक्मरानों ने पाकिस्तान के वजूद में आने के दो महीने बाद ही 22 अक्तूबर 1947 को पाक सैन्य कमांडर मे. जनरल अकबर खान के नेतृत्व में कश्मीर पर अपनी सेना को कबायलियों के भेस में दाखिल करके कश्मीर को हड़पने के अपने घातक इरादे जाहिर कर दिए थे। पाकिस्तानी सेना का वही हमला कश्मीर में जेहाद की बुनियाद तथा मौजूदा आतंकी समस्या का आगाज था। जिसे हमारे तत्कालीन हुक्मरान भांपने में अनभिज्ञ रहे। मगर उस समय श्रीनगर को पाक हमले से बचाने में मेजर सोमनाथ शर्मा प्रथम परमवीर चक्र ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था तथा 1947-48 में पाक के उस ‘आपरेशन गुलमर्ग’ से निपट कर हिमाचल के 43 अन्य सैनिकों ने कश्मीर के लिए अपनी शहादत दी थी। कश्मीर के लिए सबसे बड़ा बलिदान हिमाचली नायक जरनैल जोरावर सिंह कहलूरिया ‘1786-1841’ का है जिन्होंने अपने सैन्य पराक्रम के दम पर जम्मू-कश्मीर रियासत की सीमाओं का विस्तार करते समय अपना जीवन कुर्बान किया था।

दरअसल भारतीय सैन्य कमांडरों की प्रभावशाली रणनीति तथा भारतीय सेना की मुस्तैदी से कश्मीर में 70 सालों से चली आ रही नासुर धारा 370 को सफल तरीके से रुखसत करने के बाद विश्व समुदाय के समक्ष जिल्लत झेल रहे पाकिस्तान के बेमुरब्बत पैरोकारों की बौखलाहट और बढ़ चुकी है उनके जहालत भरे अश्क पोंछने कोई मुल्क आगे नहीं आ रहा। विश्वभर में फजीहत करवा चुके पाक के सैन्य सिपहसालारों को इस बात का इल्म हो चुका है कि प्रत्यक्ष युद्ध में पाक सेना भारतीय सैन्य पराक्रम के सामने ज्यादा देर नहीं टिक सकती और कश्मीर को हथियाने की उनकी मुराद भी पूरी नहीं होगी इसलिए पाक ने कुछ दशक पूर्व पाक अधिकृत कश्मीर में आतंक की खेती शुरू करके भारत के खिलाफ  छद्म युद्ध छेड़ रखा है तथा आतंक को अपनी राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बना लिया है, लेकिन हमें गर्व होना चाहिए कि देश की सरहदों को महफूज रखने वाली विश्व की सर्वोत्तम सेनाओं में शुमार कर चुकी भारतीय सेना, पर जिसने देश में कोरोना से निपटने के लिए ‘आपरेशन नमस्ते’ भी लांच किया है।

सेना की चिकित्सा कोर के डाक्टर अपने जवानों के साथ देश के सिविल अस्पतालों में मुस्तैद होकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सेना ने देशभर में आठ क्वारंटाइन सेंटर स्थापित किए हैं। ये तो अपने मुल्क के प्रति बेपनाह मोहब्बत के जज्बात रखने वाले हमारे सैनिकों का जज्बा समर्पण तथा कडे़ सैन्य प्रशिक्षण का नतीजा है कि 22 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फ  का रेगिस्तान कहे जाने वाले दुनिया के सबसे ऊंचे व ठंडे रणक्षेत्र में जहां रात का तापमान माइनस 60 डिग्री तक गिर जाता है, वहां देश का तिरंगा पूरी शान व शिद्दत से लहरा कर खौफ  का दूसरा नाम 740 किलोमीटर लंबी एलओसी पर पाक के सीजफायर का सामना करके कश्मीर में आतंकियों व जेहादियों के खिलाफ  भी मोर्चा संभालते हैं।

इसलिए सैनिकों की शहादतों पर गमजदा होने के साथ जिंदा सैनिकों की कद्र का मिजाज भी पैदा करना होगा। बहरहाल यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान आदमियत की भाषा नहीं समझता। अतः सेना को पाक की सरपरस्ती में पोषित हो रहे आतंक पर प्रहार करने के लिए पुनः विचार करना होगा। देश के स्वाभिमान की रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान देने वाले शूरवीरों को देश शत्-शत् नमन करता है।


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