कोरोना का सकारात्मक पक्ष : प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: May 22nd, 2020 12:06 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

सरकारों के लिए शराब राजस्व का एक बड़ा माध्यम है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि अगर शराब बिक्री पर पाबंदी जारी रहती है तो इसकी भरपाई केंद्र को करनी चाहिए। यह बात अजीब है कि सभी राज्यों ने लॉकडाउन के हिस्से के रूप में शराब की दुकानों को बंद करना स्वीकार कर लिया, जबकि शराबबंदी के लिए अलग से अधिनियमन की जरूरत है। कई जगह लोगों की अनावश्यक भीड़ भी जुटती देखी गई और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को कई जगह बल प्रयोग भी करना पड़ा। कोरोना के कारण यह बात भी उभर कर सामने आई कि मानव अस्तित्व के लिए शराब कितनी जरूरी है। उर्दू के प्रख्यात कवि फिराक गोरखपुरी लिखते हैं, ‘पाल ले कोई रोग बंदे जिंदा रहने के लिए, इक मुहब्बत के सहारे जिंदगी कटती नहीं।’ कोरोना काल में सामाजिक संबंध भी बदल रहे हैं। लॉकडाउन के उल्लंघन के कारण एक पुत्र ने अपने पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस की भूमिका में भी बदलाव देखने को मिला है। वह दमनकारी भूमिका से कल्याणकारी भूमिका में आई है। इंदौर में देखा गया कि पुलिस उन प्रवासी मजदूरों को चप्पल उपलब्ध करवा रही थी, जो नंगे पैर यात्रा कर रहे थे…

कोरोना महामारी ने जहां बड़े पैमाने पर विनाश किया तथा लाखों की संख्या में लोगों की जान भी चली गई, वहीं इसके कुछ ऐसे सकारात्मक पक्ष भी हैं जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि गंगा का पानी गुणवत्ता की दृष्टि से साफ होकर पीने योग्य हो जाएगा अथवा जालंधर से धौलाधार की बर्फ से लकदक पहाडि़यां देखी जा सकेंगी। दिल्ली वाले अब साफ नीला आकाश देख रहे हैं, जबकि वे प्रदूषण के कारण क्षितिज में तूफान व धुंधले आकाश के अभ्यस्त हो गए थे। पूरे विश्व में कोरोना ने भारी तबाही मचाई है और जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ है, वह लोगों की बड़े पैमाने पर मौतें हैं। अमरीका जैसा देश जो कभी भी इतना मजबूर नहीं दिखा, वह लोगों की बड़े पैमाने पर मौतें देख रहा है तथा भारत जैसे देश, जिसके लिए अमरीका कभी भी उपकारी नहीं रहा, उसके सामने दवाओं के लिए भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। विश्व भर में अब चिकित्सा अनुसंधान के लिए बड़ी चुनौती यह है कि कोरोना जैसी महामारी से कैसे निपटा जाए?

इस वायरस के बारे में विश्व को बहुत कम जानकारी है तथा इसका उपचार भी कोई नहीं है। पूर्व और पश्चिम दोनों ही अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस धमकी से चकित रह गए कि अगर भारत ने कोरोना के इलाज में सफल साबित हुई दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन उसे नहीं दी तो बुरा परिणाम भुगतना पड़ेगा। यह बात समझ से परे है कि इतना बड़ा राष्ट्र एक ऐसे छोटे देश को अपना बाहुबल दिखा रहा था जिसे अभी तकनीकी दुनिया में बहुत कुछ करना बाकी है। अंततः भारत ने यह दवा अमरीका को दे दी और ट्रंप इस बात से खुश हैं कि अब अमरीका भी विश्व की तरह भारत के साथ मिलकर इस महामारी की वैक्सीन तैयार करने की दौड़ में शामिल हो सकेगा। यह बात पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आई कि भारत चिकित्सा अनुसंधान के लिहाज से अग्रणी देशों में शामिल है। कोरोना के कारण भारत और अमरीका अब साथ मिलकर काम करेंगे क्योंकि इस महामारी से निपटने के लिए इन देशों की चिंताएं साझी हैं। इससे विश्व का भी कल्याण होगा। साझे लक्ष्य के लिए दो देशों का साथ आना अब संभव हुआ है, साथ ही भारत की योग्यता और शांतिपूर्ण परियोजनाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय जागरूकता भी फैलेगी। अब हमारे पास यह अवसर भी है कि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन में कोई बड़ा ओहदा पा सकेंगे और अपनी भूमिका निभा सकेंगे, जो कि अभी तक नगण्य मानी जाती रही है।

हमें विश्वास है कि जैसे ही मोदी इस संगठन के संचालन में बड़ी भूमिका में आएंगे तो इससे न केवल राष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बल्कि इस अंतरराष्ट्रीय संगठन को नई दिशा भी मिलेगी। केवल कोरोना के कारण ही यह संभव हो पाया कि भविष्य के स्वास्थ्य संगठनों के संचालन का रास्ता मिला है ताकि विश्व को बीमारियों से मुक्त रखा जा सके। मोदी के पदचिन्हों पर चलते हुए विश्व अब योग को भी उत्साह के साथ अपनाएगा। कोरोना के कारण पर्यावरण अब साफ नजर आने लगा है तथा आसमान व नदियां प्रदूषण मुक्त होने लगी हैं। कोरोना ने हमें यह भी दिखाया है कि मानव ने किस तरह विश्व को प्रदूषित किया है। भारत के मुख्य शहरों में से 85 फीसदी प्रदूषित हैं। पर्यावरण के निरंतर अधोपतन को किस तरह नियंत्रित करना है, यह भी कोरोना ने हमें सबक दिया है। कोरोना ने हमें सिखाया कि किस तरह उन गतिविधियों से बचना है जो संक्रमण फैलाती हैं अथवा प्रदूषण बढ़ाती हैं। कोरोना ने हमें अनुशासन में रहना भी सिखाया है। अब हमें पंक्ति में लगकर अनुशासन कायम रखना है तथा दो मीटर की दूरी भी बनाकर रखनी है। सड़कों पर चलते हुए तथा सब्जियों की दुकानों से खरीददारी करते समय, हर जगह अनुशासन कायम रखना है। महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि जो लोग शराब खरीदना चाहते हैं, वे लोग तपती गर्मी में दो मीटर की दूरी बनाकर ही खड़े हो रहे हैं। कई लोग किलोमीटर लंबी लाइन में भी अनुशासन बनाते हुए देखे जा रहे हैं। लॉकडाउन के कुछ तथ्य हैरान करने वाले भी हैं। यह बात भी खुल कर सामने आई है कि विश्व में हर तीसरा व्यक्ति शराब का सेवन करता है। उधर,पंजाब के मुख्यमंत्री को यह कहना पड़ा कि अगर शराब की बिक्री पर पाबंदी जारी रही तो इसका राजकोष पर बुरा असर पड़ेगा।

सरकारों के लिए शराब राजस्व का एक बड़ा माध्यम है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि अगर शराब बिक्री पर पाबंदी जारी रहती है तो इसकी भरपाई केंद्र को करनी चाहिए। यह बात अजीब है कि सभी राज्यों ने लॉकडाउन के हिस्से के रूप में शराब की दुकानों को बंद करना स्वीकार कर लिया, जबकि शराबबंदी के लिए अलग से अधिनियमन की जरूरत है। कई जगह लोगों की अनावश्यक भीड़ भी जुटती देखी गई और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को कई जगह बल प्रयोग भी करना पड़ा। कोरोना के कारण यह बात भी उभर कर सामने आई कि मानव अस्तित्व के लिए शराब कितनी जरूरी है। उर्दू के प्रख्यात कवि फिराक गोरखपुरी लिखते हैं, ‘पाल ले कोई रोग बंदे जिंदा रहने के लिए, इक मोहब्बत के सहारे जिंदगी कटती नहीं।’ कोरोना काल में सामाजिक संबंध भी बदल रहे हैं। लॉकडाउन के उल्लंघन के कारण एक पुत्र ने अपने पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस की भूमिका में भी बदलाव देखने को मिला है। वह दमनकारी भूमिका से कल्याणकारी भूमिका में आई है। इंदौर में देखा गया कि पुलिस उन प्रवासी मजदूरों को चप्पल उपलब्ध करवा रही थी, जो नंगे पैर ही यात्रा कर रहे थे। कोरोना अपना चेहरा भयंकर से बदलकर परवाह करने वाले व्यवहार के रूप में बदल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व प्रमुख ने भविष्यवाणी की है कि कोरोना महामारी वैक्सीन के बिना ही धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। हमें उन अच्छे दिनों की आशा करनी चाहिए।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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