तालाबंदी से निकलने के रास्ते

By: May 8th, 2020 12:06 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

यह आर्थिक और पारिस्थितिकीय लॉकआउट होगा। हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर घरों को लौट रहे हैं और उद्योग वाले उनके पीछे भाग रहे हैं क्योंकि श्रम के बिना कुछ भी संचालित नहीं हो सकता है। सवाल यह भी है कि गंगा को इतना साफ-सुथरा और प्राचीन समय की तरह स्वच्छ कैसे रखा जाए? प्रदूषित शहरों में सांस कैसे लेनी है और लॉकडाउन के दौरान उभरे उनके निखार को किस तरह कायम रखना है? सरकार को बिना देरी किए आर्थिक दृष्टि से भी सोचना है क्योंकि आर्थिक और रोजगार क्षेत्र की ओर ध्यान दिए जाने की सख्त जरूरत है। मोदी जी कहेंगे कि जान तो है, पर जहान बनाना पहाड़ खोदना है। हमें पुनर्निर्माण का चुनौतीपूर्ण अभियान शुरू करना होगा। पुनर्निर्माण के लिए हमें नए विचारों व सोच के साथ आगे आना होगा। मिसाल के तौर पर प्रवासी मजदूरों का प्रश्न ही उठाते हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने काम के स्थलों से अपने घरों की ओर लौटना शुरू किया, इसके बावजूद जबकि उन्हें पता था कि उन्हें अपने गृह नगर या राज्य में कोई काम नहीं मिलने वाला है। पंजाब, हरियाणा व अन्य प्रदेशों में मजदूरों की मांग है जहां कृषि संबंधी जरूरतों के कारण सीजनल श्रमिकों की मांग है। यहां पर स्थानीय श्रमिकों की उपलब्धतता नहीं है…

अगर किसी नेता को कैद में ले लिया जाता है तो बड़ा शोर-शराबा होता है तथा सभी राजनीतिक दल इसके विरुद्ध प्रदर्शन करना शुरू कर देते हैं। कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की घर में ही नजरबंदी के बाद भी यही सब कुछ हुआ। अब चूंकि देश में लॉकडाउन चल रहा है, इसलिए कोई नहीं रिरिया रहा है। हम तालाबंदी के मुहाने पर हैं, घरों में प्रसन्नता से रह रहे हैं, पिछले काफी दिनों से न कोई प्रदर्शन हो रहा है, न कोई शोर-शराबा। बड़े स्तर पर शटडाउन ने भारत की एकता को प्रदर्शित किया है तथा हमारा संघवाद सफल हुआ है, यह भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि एक नेता के पीछे पूरा देश एकजुट हुआ है। बड़े स्तर पर देश की गति के पहिए जाम होने के बाद आश्चर्यजनक रूप से हर व्यक्ति कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मिशन का हिस्सा बनने से खुश है। जिस तरह इस मिशन का नरेंद्र मोदी ने साहस के साथ नेतृत्व किया है, ऐसा कोई भी नहीं कर पाता। लॉकडाउन के बाद अब हमें उद्योग से संबंधित तालाबंदी का पूरे देश में सामना करना पड़ सकता है। यह आर्थिक और पारिस्थितिकीय लॉकआउट होगा। हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर घरों को लौट रहे हैं और उद्योग वाले उनके पीछे भाग रहे हैं क्योंकि श्रम के बिना कुछ भी संचालित नहीं हो सकता है। सवाल यह भी है कि गंगा को इतना साफ-सुथरा और प्राचीन समय की तरह स्वच्छ कैसे रखा जाए? प्रदूषित शहरों में सांस कैसे लेनी है और लॉकडाउन के दौरान उभरे उनके निखार को किस तरह कायम रखना है? सरकार को बिना देरी किए आर्थिक दृष्टि से भी सोचना है क्योंकि आर्थिक और रोजगार क्षेत्र की ओर ध्यान दिए जाने की सख्त जरूरत है। मोदी जी कहेंगे कि जान तो है, पर जहान बनाना पहाड़ खोदना है। हमें पुनर्निर्माण का चुनौतीपूर्ण अभियान शुरू करना होगा। पुनर्निर्माण के लिए हमें नए विचारों व सोच के साथ आगे आना होगा। मिसाल के तौर पर प्रवासी मजदूरों का प्रश्न ही उठाते हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने काम के स्थलों से अपने घरों की ओर लौटना शुरू किया, इसके बावजूद जबकि उन्हें पता था कि उन्हें अपने गृह नगर या राज्य में कोई काम नहीं मिलने वाला है। पंजाब, हरियाणा व अन्य प्रदेशों में मजदूरों की मांग है जहां कृषि संबंधी जरूरतों के कारण सीजनल श्रमिकों की मांग है। यहां पर स्थानीय श्रमिकों की उपलब्धतता नहीं है। मेरा सुझाव है कि सरकार को सहकारी या एनजीओ टाइप संगठन की स्थापना करनी चाहिए, इसकी वित्तीय सहायता करनी चाहिए या वे सीजनल श्रमिकों को उपलब्ध करवाने के लिए उद्योग से धन एकत्र कर सकते हैं। उन्हें इस पूरी प्रक्रिया में समन्वय करना चाहिए तथा अदायगी व स्वास्थ्य मसलों को सुनिश्चित करना चाहिए। श्रम विभाग इसमें सहयोग कर सकता है। परंतु जो संगठन स्थापित किया जाना है, वह सरकारी क्षेत्राधिकार में नहीं होना चाहिए। हालांकि सरकार को इसका समर्थन करना चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वह अपने ही राज्य में प्रवासी मजदूरों को काम उपलब्ध कराएंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने भी प्रवासी मजदूरों को राज्य में रहने व वापस आने के लिए कहा है क्योंकि उनकी जरूरत है। उन्होंने यह आश्वासन भी दिया है कि वह स्वयं उनके मामलों की देखरेख करेंगे तथा उन्हें कोई असुविधा नहीं होने देंगे। इसे श्रमिक समन्वय समिति कहा जाना चाहिए तथा हर राज्य में इसे श्रमिकों के मसलों में समन्वय करना चाहिए। मध्यम व छोटे उद्योगों की ऋण व छूट संबंधी जरूरतों  से निपटने के लिए व्यवस्था बनाने की भी जरूरत है। विदेशी निवेश लाने की बहुत बड़ी जरूरत है। उत्तर प्रदेश सरकार कहती है कि राज्य में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए दुकानें और ऐसे ही अन्य संस्थान स्थापित करने के लिए विदेशों से सैकड़ों कंपनियों का पोटेंशियल राज्य में है। इसके लिए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी होना चाहिए जिसका अग्निशामक प्रकार का कार्यालय होना चाहिए।

जिस किसी की भी निवेश करने में रुचि है, वह किसी भी विपत्ति में इस अधिकारी से संपर्क कर सकता है तथा वह अधिकारी संबंधित मंत्री से सीधे बात कर सकता हो। ऐसे मसलों की नामावली मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के समक्ष रखी जानी चाहिए। इस अधिकारी का सचिवालय स्टाफ के अलावा अपना कोई दफ्तर नहीं होना चाहिए तथा उसे सीएम या पीएम आफिस में काम करना चाहिए। व्यापार में निवेश प्रक्रिया की तेज गति सुनिश्चित की जानी चाहिए। मनरेगा टाइप के ‘डोल डिस्ट्रीब्यूशन’ हमारी मदद नहीं करेंगे, जबकि उत्पादक कार्य हमें गरीबी व बेरोजगारी से राहत पहुंचा सकता है। लॉकडाउन के बाद कार्य संस्कृति को तेज गति के साथ मजबूत किया जाना चाहिए। एक सप्ताह में हमें छह दिन जरूर काम करना चाहिए। पश्चिमी देशों की तरह आराम के लिए ज्यादा समय देने की नकल हमें नहीं करनी चाहिए। तेल की खपत में भी हमें बचाव करना होगा। 25 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन के बाद इसका अब तीसरा चरण चल रहा है, इस दौरान खोई हुई जमीन को प्राप्त करने के लिए हमें कठिन परिश्रम करना होगा। सबसे बेहतर रास्ता यह रहेगा कि हमें नृत्य, बैंड या किसी मनोरंजन संबंधी गतिविधि में समय नष्ट करने के बजाय ज्यादा उत्पादकता के साथ काम करना होगा। रक्षा प्रमुख ने ‘फ्लाई पास्ट’ में ऐसी ‘डिसरप्शन’ उत्पन्न की जिससे बचा जा सकता था। राष्ट्र की सेवा करने वाले लोगों का धन्यवाद करने के लिए यह किया गया। कोरोना पर नियंत्रण जरूर हुआ है, किंतु इस पर विजय पाना बाकी है। रक्षा प्रमुख की जगह स्वास्थ्य मंत्री को कोरोना योद्धाओं का सम्मान करना चाहिए था। जिन निवेशकों का चीन के साथ मोहभंग हुआ है, उन्हें भारत की ओर आकर्षित करने के लिए देश को काम करना चाहिए तथा भारत के समक्ष यह चुनौती इस समय खड़ी है। हवाई कलाबाजियां दिखाने के बजाय हमें आर्थिक वातावरण और पुनर्निर्माण पर फोकस करना चाहिए।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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