बड़े उद्योगों पर टैक्स बढ़ाएं

By: May 5th, 2020 12:07 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

इसी प्रकार सरकार यदि बिजली पर लगाई गई एक्साइज ड्यूटी की भी वृद्धि कर दे तो बिजली की खपत कम होगी। हम देश के पर्यावरण को भी बचाएंगे क्योंकि ऊर्जा को बनाने में हम कार्बन का उत्सर्जन बहुत कर रहे हैं और अपनी नदियों को नष्ट कर रहे हैं। जो लोग सामान्य जीवन या ऊर्जा न्यून जीवन शैली अपनाते हैं, उनको भारी लाभ होगा। तात्पर्य यह है कि हम टैक्स उन लोगों पर लगाएं जो कि ऊर्जा की खपत करते हैं और छूट उन लोगों को दें जो ऊर्जा की खपत कम करते हैं। ऐसा करने से अर्थव्यवस्था पर कुल भार उतना ही रहेगा, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था चल निकलेगी क्योंकि ऊर्जा न्यून खपत करने वाले लोगों के द्वारा बाजार से कपड़ा, जूता, कागज जैसे माल खरीदे जाएंगे…

अर्थव्यवस्था का चक्र उत्पादन से प्रारंभ होता है। उत्पादन की प्रक्रिया में श्रमिक को वेतन मिलता है। वेतन से वह बाजार में कपड़े आदि खरीदता है जिससे बाजार में माल की मांग बनती है। इस मांग की आपूर्ति करने के लिए पुनः उद्यमी निवेश और उत्पादन करता है। उत्पादन का यह सुचक्र दो स्थानों पर टूट सकता है। पहला यह कि उत्पादन यदि बड़े उद्योगों और रोबोटों से किया गया तो उस उत्पादन में वेतन कम ही दिया जाता है। तदोनुसार बाजार में कपड़े आदि की मांग कम बनती है और यदि वेतन बांटे भी गए और बाजार में मांग भी बढ़ी तो भी उस मांग की आपूर्ति यदि आयातित माल से हुई तो अपने देश में पुनः निवेश और उत्पादन का सुचक्र स्थापित नहीं होगा। जैसे आपने एक फैक्टरी लगाई, फैक्टरी में वेतन बांटा, उस वेतन से श्रमिक ने चीन का कपड़ा खरीदा तो दोबारा निवेश और उत्पादन चीन में होगा, न कि भारत में। वर्तमान संकट में बड़े उद्योगों की मांग है कि उन्हें टैक्स में छूट दी जाए। मेरा मानना है कि इसके ठीक विपरीत बड़े उद्योगों को उबारने के लिए ही उन पर ही टैक्स को बढ़ाना पड़ेगा। कारण यह कि अर्थव्यवस्था में बड़े और छोटे उद्योग दोनों तब ही पनपेंगे जब हमारे घरेलू बाजार में मांग उत्पन्न होगी। इस मांग उत्पन्न करने के तीन स्रोत हो सकते हैं। पहला स्रोत यह कि यदि हम बड़े उद्योगों जैसे बड़ी कपड़ा मिल पर टैक्स लगा दें तो पॉवरलूम का कपड़ा बिकेगा और पॉवरलूम चलाने वाले छोटे उद्यमी द्वारा वेतन बांटा जाएगा, जिससे बाजार में मांग बनेगी।

दूसरा यह कि चीन आदि में बड़े उद्योगों द्वारा बनाए गए सस्ते माल पर आयात कर बढ़ा दें। यदि ऐसा किया गया तो विदेशी बड़े उद्योगों का माल महंगा हो जाएगा और पुनः अपने देश के छोटे उद्योग उत्पादन में आ जाएंगे और उनके द्वारा वेतन अधिक दिया जाएगा। तीसरा स्रोत यह हो सकता है कि देश के हर नागरिक को एक रकम सीधे प्रति माह उसके खाते में हस्तांतरित कर दी जाए। इससे देश के नागरिकों की क्रय शक्ति बढ़ेगी, वे बाजार में माल खरीदेंगे और उस माल की आपूर्ति करने के लिए उद्यमी निवेश करेगा। मान लीजिए सरकार के पास इस संकट से उबरने के लिए एक लाख करोड़ रुपए की रकम है। यदि इस एक लाख करोड़ रुपए को बड़े उद्योगों को टैक्स में छूट के लिए दिया गया तो निश्चित रूप से वे कुछ उत्पादन बढाएंगे, लेकिन वह बढ़ा हुआ उत्पादन एक चक्र के बाद पुनः ठप्प हो जाएगा क्योंकि बड़े उद्योगों द्वारा रोबोट से बनाई गई कार को खरीदने के लिए बाजार में मांग उत्पन्न नहीं होगी। इसके विपरीत यदि उस एक लाख करोड़ रुपए को आम आदमी को यूनिवर्सल बेसिक इनकम के रूप में उसके खाते में डाल दी जाए तो उस रकम से बाजार में मांग बनेगी जिस मांग की आपूर्ति के लिए छोटे उद्योग कपड़ा बनाएंगे और बड़े उद्योग बाइक बनाएंगे। दोनों का काम चल निकलेगा। इसलिए बड़े उद्योगों को उबारने के लिए उन पर टैक्स लगना होगा। उन पर टैक्स लगाने से छोटे उद्योग पनपेंगे और उनके द्वारा बढ़ाई गई मांग से बड़े उद्योगों का भी माल बिकेगा। कुछ आयुर्वेदिक वैद्य बताते हैं कि यदि किसी रोगी को भूख न लग रही हो तो उसे कुछ समय के लिए धीरे-धीरे भोजन और कम देते हैं। किसी मित्र ने बताया कि उन्होंने दिन में दो बार भोजन, फिर एक बार भोजन, फिर केवल एक गिलास दूध, फिर आधा गिलास दूध, इस तरह कुछ समय तक कम भोजन पर जीवित रखा। उसके बाद उनका भोजन बढ़ाया तो उनकी भूख स्वतः बन गई।

इसी प्रकार बड़े उद्योगों पर टैक्स का भार बढाएंगे, तब उनकी स्थिति सुधरेगी। यदि उन्हें हमने टैक्स में छूट दे दी तो एक बार उन्हें राहत मिलेगी, लेकिन उनके द्वारा बनाए गए माल को खरीदने वाला बाजार में कोई नहीं होगा और शीघ्र ही वे पुनः संकट में आएंगे। सरकार के पास इस समय एक और स्वर्णिम अवसर विश्व अर्थव्यवस्था में गिरते हुए तेल के दाम का है। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा तेल पर लगाए गए टैक्स से लगभग चार लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष अर्जित किया जा रहा है। यदि सरकार द्वारा आरोपित टैक्स को वर्तमान के लगभग 23 रुपए प्रति लीटर से बढ़ा कर 100 रुपए प्रति लीटर यानी चार गुना कर दिया जाए तो बाजार में पेट्रोल का दाम वर्तमान में 75 रुपए से बढ़कर 150 रुपए हो जाएगा। सरकार को 12 लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष अतिरिक्त आय तेल से अर्जित हो जाएगी। मान लें कि तेल की कुछ खपत कम होगी तो भी 9 लाख करोड़ रुपए की सरकार की आय होगी, ऐसा माना जा सकता है। अपने देश में 30 करोड़ परिवार हैं। यदि सरकार को 9 लाख करोड़ की अतिरिक्त आय तेल से होती है तो हर परिवार को 30 हजार रुपए प्रति वर्ष या 2500 रुपए प्रति माह दिया जा सकता है। परिणाम यह होगा कि जो उपभोक्ता ऊर्जा सघन माल खपत करते हैं, जैसे जो घर में एल्यूमीनियम की खिड़की लगाता है, जिसके उत्पादन में ऊर्जा अधिक लगती है या स्टील से बनी कार के उत्पादन में ऊर्जा अधिक लगती है, तो ऊर्जा सघन माल की खपत करने वाले पर तेल के बढे़ हुए मूल्य का भार अधिक बढे़गा। तुलना में दूध के उत्पादन में ऊर्जा कम लगती है और जो ऊर्जा न्यून माल की खपत करता है, उस पर तेल के बढे़ हुए मूल्य का भार मामूली पड़ेगा। यह भार भी रकम सीधे मिलने से कैंसल हो जाएगा।

इसी प्रकार सरकार यदि बिजली पर लगाई गई एक्साइज ड्यूटी की भी वृद्धि कर दे तो बिजली की खपत कम होगी। हम देश के पर्यावरण को भी बचाएंगे क्योंकि ऊर्जा को बनाने में हम कार्बन का उत्सर्जन बहुत कर रहे हैं और अपनी नदियों को नष्ट कर रहे हैं। जो लोग सामान्य जीवन या ऊर्जा न्यून जीवन शैली अपनाते हैं, उनको भारी लाभ होगा। तात्पर्य यह है कि हम टैक्स उन लोगों पर लगाएं जो कि ऊर्जा की खपत करते हैं और छूट उन लोगों को दें जो ऊर्जा की खपत कम करते हैं। ऐसा करने से अर्थव्यवस्था पर कुल भार उतना ही रहेगा, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था चल निकलेगी क्योंकि ऊर्जा न्यून खपत करने वाले लोगों के द्वारा बाजार से कपड़ा, जूता, कागज जैसे माल खरीदे जाएंगे। सरकार को टैक्स में छूट देना अथवा ब्याज में छूट देना इन सब प्रपंच में नहीं पड़ना चाहिए, बल्कि इस अवसर पर टैक्स बढ़ाकर अपने ऊपर वित्तीय भार भी नहीं लेना चाहिए और मांग बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर ले आना चाहिए।  जो काम रकम कमा कर किया जा सकता हो, उसके लिए रकम का व्यय क्योंकर किया जाए।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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