मानव कल्याण

By: May 16th, 2020 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

रोम में एक सप्ताह तक रहने के बाद ये दोनों  रोजाना जाकर स्वामी जी की ऐतिहासकि जगहों की सैर करती थीं। फिर यहां से स्वामी जी नेपल्स आ गए, यहां उन्होंने विसृवियत ज्वालामुखी और ध्वस्त पंपाई शहर को देखा। साउथम्पटन से भारत जाने वाला जहाज आ पहुंचा। उसमें श्रीगुडविन को देखकर स्वामी जी बहुत खुश हुए। स्वामी जी ने 30 दिसंबर को अपने सहयोगियों के साथ भारत के लिए यात्रा की। इस वक्त वे भारत भूमि की वंदना के लिए बहुत ज्यादा लालायित थे। दुनिया के बड़े-बड़े देशों को देखने के बाद धर्मप्राण भारत भूमि के प्रति उनकी श्रद्धा द्विगुणित हो गई थी और वे इस निश्चय पर आ पहुंचे कि मानव कल्याण का रास्ता एक रोज भारत ही प्रशस्त करेगा। चार साल विदेशों में रहकर जब स्वामी जी अपने देश लौट रहे थे, तो वे सोचने लगे कि चार साल विदेश में रहने से क्या उपलब्धि हुई। जिस उद्देश्य से वह विदेश गए थे, वह पूरा हुआ या नहीं? इतने अमीर व शक्तिशाली पश्चिमी देशों  से भारत के लिए सहायता प्राप्त करने का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ था, इसमें कोई शक नहीं है। पश्चिम वणिक वृत्ति से भी उनका मानस क्षुब्ध था, लेकिन वहां की कर्मण्यता, उद्योगशीलता, वैज्ञानिक प्रगति और शिक्षा के प्रसार से वे प्रभावित भी हुए थे। अपने भावी कार्य की रूपरेखा भी वे बनाते रहे। उन्होंने इरादा किया कि अब भारत को ही केंद्र बनाकर कार्य करूंगा। स्वामी जी की भारत लौटने की खबर भारत व श्रीलंका में पहले से ही पहुंच चुकी थी। उनके स्वागत के लिए खास-खास शहरों में स्वागत समारोह की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं। मद्रास शहर से उनके दो गुरुभाई और शिष्य स्वामी जी की अगवानी करने के लिए कोलंबो पहुंच गए थे। कोलंबो के हिंदू नागरिक स्वामी जी के सर्वप्रथम स्वागत कर्त्ता होने का गौरव पाकर बड़े खुश हो रहे थे। बड़े उत्साह से स्वागत की तैयारी कर रहे थे। गैरिक पगड़ी द्वारा सुशोभित उनके मस्तक को देखकर हजारों कंठ निनादित हो उठे और मस्तक चरणधूलि का स्पर्श करने के लिए झुक गए। श्रीलंका के हिंदू समाज के अग्रगण्य, भारत भक्त मनस्वी कुमार स्वामी ने आगे बढ़कर पुष्पमाला उनके गले में पहनाई, तब स्वामी जी को पता चला कि यह सब भीड़, यह जय-जयकार किसी और के लिए नहीं, बल्कि उन्हीं के लिए थी। स्वामी जी को दो घोड़ों वाली बग्घी में बैठाकर शहर की तरफ लाया गया। पूरा शहर सजा हुआ था। बग्घी राजपथ से होती हुई दारूचीनी नामक उद्यान के सामने विराट सुसज्जित मंडप के पास रुकी। स्वामी जी जैसे ही गाड़ी से चीने उत्तरे, हजारों स्त्री-पुरुष उनके चरण स्पर्श की धूल लेने के लिए उनके चरणों में झुक गए। महात्मा कुमार स्वामी ने आश्चर्य पूर्वक अभिनंदन पत्र समर्पित किया। स्वामी जी ने अभिनंदन के पश्चात प्रवचन दिया और फिर आराम के लिए चले गए। वहां भी दर्शन वालों की भीड़ इकट्ठा थी। अगले दिन स्वामी जी ने सार्वजनिक भाषण दिया। इसका मुख्य विषय पुण्य भूमि भारत रहा। दूसरे दिन उनका आधे से ज्यादा समय धर्म चर्चा में बीता। तीसरे पहर स्थानीय शिवालय के दर्शनों के लिए गए। शाम के समय कुछ विद्वान शास्त्र चर्चा के लिए स्वामी जी के पास आए।


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