शारीरिक शिक्षा हर छात्र को जरूरी

By: May 8th, 2020 12:05 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथेलेटिक्स प्रशिक्षक

चालीस वर्ष के व्यक्ति आज जब बुढ़ापे की विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं और अब वे फिटनेस के दीवाने हो रहे हैं। यदि स्कूल के समय में शारीरिक शिक्षा व स्वास्थ्य शिक्षा के सही ज्ञान का प्रयोग शुरू हो गया होता तो पूरा जीवन व्यक्ति निरोग काट लेता। आज का विद्यार्थी और कल का फिट व जिम्मेदार नागरिक कैसे बने, इसके लिए जब शिक्षा पर बहस हो रही है तो एक बात सामने आ रही है कि हमारी शिक्षा में शारीरिक फिटनेस के लिए शारीरिक शिक्षा का होना बेहद अनिवार्य है। साथ ही शिक्षा संस्थान के लिए हर छात्र की फिटनेस जरूरी है…

आज जब हम कोरोना से भयभीत हैं तो हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तरीके खोज रहे हैं। शारीरिक व मानसिक विकास करने के लिए हम अपने बच्चों को हजारों साल पहले गुरुकुलों में और आज विभिन्न स्तर की शिक्षा के लिए विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय में भेज रहे हैं। शिक्षा से मानव अपने जीवन में आने वाले संघर्षों को सफलतापूर्वक पार करता हुआ अपना तथा समाज का उत्थान करता है। पूरे विश्व में शारीरिक शिक्षा व स्वास्थ्य विज्ञान किसी भी संस्थान की फैकल्टी का एक-चौथाई हिस्सा होता है। स्कूली जीवन में विद्यार्थी को जहां शिक्षा के आधारभूत सिद्धांतों को प्रारंभिक स्तर से सीखना होता है, वहीं उसे इतनी सारी शारीरिक योग्यता भी बनानी होती है जिससे वह अपने जीवन में लगभग 60 वर्षों तक जहां देश की सेवा कर सके और अपना शेष जीवन भी स्वस्थ रूप से जी सके। इसलिए देश में इस सदी के शुरू होते-होते ही स्कूलों में जमा एक व जमा दो कक्षाओं के लिए पांचवें विषय के रूप में शारीरिक शिक्षा को रखा गया। इसके शुरू होने से राज्य के हजारों विद्यार्थियों ने इसे विषय के रूप में पास किया। यह अलग बात है कि इसके लिए शिक्षा विभाग ने किसी भी प्रवक्ता की नियुक्ति नहीं की। जो डीपी खेल प्रबंधन व सवेरे की सभा में फिटनेस के लिए नियुक्त थे, उन्हीं शिक्षकों ने स्कूली स्तर पर पढ़ाने का जिम्मा भी अपने ऊपर ले लिया। बाद में जो डीपी स्नातकोत्तर तथा शारीरिक शिक्षा में डिग्री धारक थे, उन्हें प्रवक्ता का दर्जा भी दे दिया है। शारीरिक शिक्षा विषय में स्वास्थ्य विज्ञान के साथ खेल व खेल विज्ञान के पाठ विद्यार्थियों को पढ़ाए जाते हैं। जीवन में मनोरंजन व प्रेरणा का महत्त्व है, यह प्रयोगात्मक रूप में भी लिखित पढ़ाई के साथ-साथ समझाया जाता है। कुछ वर्ष पहले स्कूली शिक्षा उत्थान मंच ने सरकार को सुझाव दे डाला कि शारीरिक शिक्षा का विषय बंद करके जमा एक और दो कक्षाओं में किसी वोकेशनल ट्रेड वाले विषय को जोड़ देना चाहिए। विषयों को कभी बंद नहीं किया जाता है। हां, नए विषय और अधिक जरूर जोड़ दिए जाते हैं। जब शारीरिक शिक्षा संपूर्ण शिक्षा का आधा हिस्सा है तो फिर आप किस तरह इस विषय को बंद करने की बात कर सकते हैं। वर्षों पूर्व जब विद्यार्थी अपने मां-बाप के साथ बहुत अधिकतर कृषि कार्य में हाथ बंटाते थे, कई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचते थे, उस समय मास पीटी और शारीरिक शिक्षा जरूर बेमतलब लगती थी। आज जब घर पर स्कूली बच्चों को कोई भी काम नहीं होता है, घर के आंगन से स्कूल परिसर तक विद्यार्थी गाड़ी में सफर करता है, स्कूल के बाद बचे समय में टीवी तथा इंटरनेट के साथ विद्यार्थी अधिक चिपक रहा है, ऐसे में उसके पास फिटनेस के लिए समय कहां से  बचता है। स्वास्थ्य शिक्षा जीवन के लिए बेहद जरूरी है। जब शारीरिक शिक्षा व स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में कोई बताएगा ही नहीं तो फिर भविष्य का फिट नागरिक बनने के लिए आज का विद्यार्थी यह सब कहां से और कैसे सीखेगा। पिछले चार दशकों में स्कूली शिक्षा कार्यक्रम में ऐसा बदलाव आया है जो प्रतिदिन ड्रिल का पीरियड होता था, वह भी पढ़ाई की भेंट चढ़ गया है। हिमाचल प्रदेश में प्रौद्योगिकी तथा चिकित्सा के लिए एक-एक संस्थान था और निजी क्षेत्र में हमें दूर दक्षिण के राज्यों में लाखों रुपए कैपिटेशन फीस देकर शिक्षा मिल पाती थी, तो राज्य में थोड़ी वह बिना फीस की सीटों के लिए बहुत कड़ी स्पर्धा से गुजरना पड़ता था। इसलिए अभिभावकों व अध्यापकों दोनों ने मिलकर शारीरिक फिटनेस की कीमत पर पढ़ाई को जरूरत से अधिक अधिमान दिया। इसका पता आज चल रहा है जब फिटनेस के अभाव में लोग सरकारी नौकरी की सीमा साठ वर्ष भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। चालीस वर्ष के व्यक्ति आज जब बुढ़ापे की विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं और अब वे फिटनेस के दीवाने हो रहे हैं। यदि स्कूल के समय में शारीरिक शिक्षा व स्वास्थ्य शिक्षा के सही ज्ञान का प्रयोग शुरू हो गया होता तो पूरा जीवन व्यक्ति निरोग काट लेता। आज का विद्यार्थी और कल का फिट व जिम्मेदार नागरिक कैसे बने, इसके लिए जब शिक्षा पर बहस हो रही है तो एक बात सामने आ रही है कि हमारी शिक्षा में शारीरिक फिटनेस के लिए शारीरिक शिक्षा का होना बेहद अनिवार्य है। शिक्षा संस्थान के लिए हर विद्यार्थी की फिटनेस जरूरी है, इसके लिए शारीरिक शिक्षा का लिखित व प्रयोगिक होना दोनों जरूरी है। हम अच्छे चिकित्सक, अभियंता, प्रबंधक, अधिकारी व कर्मचारी तो पढ़ाई से निकाल सकते हैं, मगर वे अपनी आयु के साठ वर्षों तक देश की फिट होकर सेवा करें, इसके लिए फिटनेस के गुर शारीरिक व स्वास्थ्य शिक्षा ही सिखा सकती है। इसलिए इस कॉलम के माध्यम से बार-बार कह रहे हैं कि प्रारंभिक स्तर से ही शारीरिक शिक्षा व स्वास्थ्य शिक्षा को पढ़ाई के साथ लिखित तथा प्रायोगिक रूप में जोड़ा जाए ताकि आगे चलकर वह हर मानव की दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बन जाए।

ईमेलः Bhupindersinghhmr@gmail.com


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