साधुओं की हत्या और राजनीति

By: May 1st, 2020 12:06 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

महाराष्ट्र में कांग्रेस, सरकार में भागीदारी कर रही है, इसी कारण अर्नब तथा कुछ अन्य सोशल कमेंटेटर इस पार्टी को इस हत्याकांड में जिम्मेवारी लेने के लिए जोर दे रहे हैं। लिंचिंग के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले अर्नब और उनकी पत्नी पर हमले से स्थिति और भी खराब हो गई है। महाराष्ट्र सरकार ने साधुओं की हत्या में जांच शुरू कर दी है, किंतु उसने अर्नब पर हुए इस हमले की जांच शुरू नहीं की है। पुलिस साधुओं पर पालघर हमले को सांप्रदायिक आधार देने तथा हिंदुओं व मुसलमानों में नफरत उकसाने के नजरिए से जांच कर रही है। वास्तव में यह मात्र यह पूछना है कि वह जो कर रहा है, वह क्यों कर रहा है। अर्नब से 12 घंटे की लंबी पूछताछ में उन्होंने पुलिस का पूरा सहयोग किया तथा अब तक कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया। मैं हैरान हूं कि पुलिस के क्या सवाल थे जो इतनी लंबी पूछताछ करनी पड़ी। अर्नब के पास छुपाने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि वह केवल सोनिया गांधी की प्रतिक्रिया की खुलेआम मांग कर रहे हैं। वास्तव में सोनिया गांधी ने एक ऐसे जघन्य अपराध पर रहस्यमयी चुप्पी साध ली है जिसके कई राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं। कांग्रेस ने उन सभी प्रदेशों में, जहां वह सत्ता में है, एक पत्रकार के खिलाफ मामले दर्ज कर गलती की है…

महाराष्ट्र में हाल ही में पुलिस की मौजूदगी में एक लिंचिंग हमले में दो साधुओं की लाठियों से पीट-पीट कर जघन्य हत्या कर दी गई। ये साधु एक कार में अपने चालक के साथ जा रहे थे। हमले में चालक की भी हत्या कर दी गई। दुखदायी यह है कि वहां मौजूद पुलिस यह सब कुछ तमाशबीन बनी देखती रही। यह घटना ऐसे समय में हुई जब राष्ट्रवादी सरकार को अस्थिर करने की नीयत से देश का एक मौलाना कोरोना फैलाने के आरोप झेल रहा है। देश इस विवाद से गुजर ही रहा था कि यह नया मामला सामने आ गया है। महामारी फैलाने के अमानवीय प्रयासों से देश व्यथित हो ही रहा था कि इस जघन्य हत्याकांड ने देश को विचलित कर दिया। दिल्ली के निजामुुुद्दीन क्षेत्र में मौलाना की इस हरकत के साथ ही महाराष्ट्र में साधुओं की हत्या ने देश में विभिन्न धर्मों व संप्रदायों के मध्य सद्भावना को ऐसी क्षति पहुंचाई है जिसकी भरपाई कर पाना कठिन होगा। दोनों समुदायों के मध्य बंधुत्व व समझ को इन दोनों घटनाओं ने क्षति पहुंचाई है। इन परिवर्तनों को समझना एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। भाईचारे को खत्म करने वाली इन घटनाओं पर अभी देश में बहस हो ही रही थी कि इससे जुड़ी एक अन्य घटना ने देश को शर्मसार कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से साधुओं की हत्या पर चुप्पी साधने को लेकर किए गए सवाल के जवाब में पत्रकार अर्नब गोस्वामी व उनकी पत्नी पर कांग्रेस से जुड़े कुछ लोगों ने हमला कर दिया। आरोप है कि सोनिया गांधी के इशारे पर यह हमला युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने किया। अर्नब की ओर से सोनिया से सवाल पूछने की प्रतिक्रियास्वरूप यह हमला हुआ। उल्लेखनीय है कि जिस प्रदेश में साधुओं की यह जघन्य हत्या हुई, वहां सरकार में कांग्रेस भागीदारी कर रही है। इस संबंध में कई बिंदु उठाए गए हैं। इन साधुओं की हत्या पर अभी तक विपक्ष ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है। अखिलेश यादव, ममता बैनर्जी, मायावती, सीताराम येचुरी और वाम नेताओं ने इस हत्याकांड की अभी तक निंदा नहीं की है। कोई भी नहीं जानता कि छह पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में हुई इस जघन्य हत्या पर इतनी चुप्पी क्यों है?

इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस हत्या के विरोध में अर्नब का अपने चैनल पर जोरदार प्रदर्शन न्यासंगत है। जिस तरह यह जघन्य हत्या हुई है, मेरी नजर में यह लिंचिंग की अति निंदनीय घटना है। आश्चर्यजनक यह भी है कि राहुल गांधी, जो छोटे-छोटे मसलों पर भी अपनी प्रतिक्रिया देते रहते हैं, इस मामले में चुप हैं। किंतु अर्नब को इतने जोरदार तरीके से सोनिया गांधी को क्यों आरोपित करना चाहिए? उन्होंने सोनिया को उनके कुलनाम हेडविग एंटोनिया माइनो कहा। सोनिया ने यह नाम अपने पासपोर्ट में दर्ज किया था। मेरे विचार में सोनिया का कुलनाम प्रयोग करने तथा इस जघन्य हत्या पर चुप्पी साधने पर सवाल उठाने में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। चुप्पी साधने पर अर्नब का चिल्लाना या कुलनाम प्रयोग करना किसी तरह गाली भी नहीं है। वैसे यह सब कुछ सोनिया की इच्छा पर निर्भर करता है, फिर भी एक ऐसा मामला जो हिंदू तथा अन्य धर्मों के बीच संबंधों को अपनी काली छाया में ले सकता है, ऐसे मामले को सोनिया गांधी को संबोधित करना चाहिए था। इस बात में कोई संदेह नहीं कि जब एक वरिष्ठ व्यक्ति को संबोधित किया जाता है, तो उसमें सम्मान झलकना चाहिए, किंतु अपराध व उसके संभावित परिणाम देश में राजनीति और सांप्रदायिक वातावरण के लिए बड़ा महत्त्व रखते हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस, सरकार में भागीदारी कर रही है, इसी कारण अर्नब तथा कुछ अन्य मीडिया कर्मी इस पार्टी को इस हत्याकांड में जिम्मेदारी लेने के लिए जोर दे रहे हैं। लिंचिंग के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले अर्नब और उनकी पत्नी पर हमले से स्थिति और भी खराब हो गई है। महाराष्ट्र सरकार ने साधुओं की हत्या में जांच शुरू कर दी है, किंतु उसने अर्नब पर हुए इस हमले की जांच शुरू नहीं की है। पुलिस साधुओं पर पालघर हमले को सांप्रदायिक आधार देने तथा हिंदुओं व मुसलमानों में नफरत उकसाने के नजरिए से जांच कर रही है। वास्तव में यह मात्र यह पूछना है कि वह जो कर रहा है, वह क्यों कर रहा है।

अर्नब से 12 घंटे की लंबी पूछताछ में उन्होंने पुलिस का पूरा सहयोग किया तथा अब तक कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया। मैं हैरान हूं कि पुलिस के क्या सवाल थे जो इतनी लंबी पूछताछ करनी पड़ी। अर्नब के पास छुपाने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि वह केवल सोनिया गांधी की प्रतिक्रिया की खुलेआम मांग कर रहे हैं। वास्तव में सोनिया गांधी ने एक ऐसे जघन्य अपराध पर रहस्यमयी चुप्पी साध ली है जिसके कई राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं। कांग्रेस ने उन सभी प्रदेशों में, जहां वह सत्ता में है, एक पत्रकार के खिलाफ मामले दर्ज करवाकर एक बड़ी गलती की है। अगर उसके नेता चुप हैं, तो उनके कार्यकर्ता इसका क्योंकर नोटिस लेंगे। पूरे देश में एक संगठित मांग को आवाज क्यों दी जा रही है। कांग्रेस रहस्यमयी ढंग से काम क्यों कर रही है, जबकि लिंचिंग के रूप में हत्या निंदनीय होती है। कारण चाहे कुछ भी हो, कांग्रेस की प्रतिक्रिया सामान्य व्यवहार से भी परे है। स्थिति पेचीदा है क्योंकि महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी भागीदार हैं, वे अपने-अपने रुख के साथ आगे आ सकते हैं। इससे इस गठबंधन को क्षति हो सकती है, वैसे भी यह गठबंधन किन्हीं सिद्धांतों तथा आदर्शों के आधार पर नहीं हुआ है। शिवसेना हिंदू संतों पर इस हमले की उपेक्षा नहीं कर सकती क्योंकि उसकी विचारधारा भी हिंदुवादी है। तबलीगी जमातियों द्वारा कोरोना वायरस को फैलाने के कारनामे करना तथा महाराष्ट्र में साधुओं की हत्या जैसी घटनाओं के शीघ्र ही राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ने वाले हैं तथा विभिन्न दलों के मध्य संबंधों के लिहाज से भविष्य में कई परिवर्तन हो सकते हैं।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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