भारत की संप्रभुता का पहला पड़ाव: डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार

By: Jun 6th, 2020 12:06 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान अपने देश के मुसलमानों को लाकर गिलगित-बलतीस्तान में बसा रहा है। शिया समाज को खतरा है कि पाकिस्तान की इस साजिश के कारण वे अपने इलाके में ही अल्पसंख्यक होकर रह जाएंगे। इसके कारण शिया समाज और पाकिस्तानी मुसलमानों में झगड़े होते रहते हैं, लेकिन पाकिस्तान सरकार पर शिया समाज के इस विरोध का शायद कोई असर नहीं हुआ। पाकिस्तानी मुसलमान शिया समाज को प्रताडि़त ही नहीं करते, बल्कि उनको दूसरी श्रेणी का नागरिक मानते हैं। चीन की इस क्षेत्र पर अरसे से नजर है क्योंकि चीन इसी रास्ते से अरब सागर या सिंधु सागर में आ सकता है, जहां वह बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह का निर्माण कर रहा है…

जम्मू-कश्मीर का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा गिलगित व बलतीस्तान है जो अब पाकिस्तान के कब्जे में है। अक्तूबर 1947 में जब पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों की ढाल बनाकर जम्मू-कश्मीर पर हमला किया था, तब भी उसकी नजर गिलगित-बलतीस्तान पर ही लगी हुई थी। लेकिन उसे गिलगित में लड़ाई लड़ने की भी जरूरत नहीं पड़ी। 1947 में ब्रिटिश सरकार को आशा थी कि जम्मू-कश्मीर रियासत को महाराजा हरि सिंह पाकिस्तान में शामिल करेंगे। इसके लिए स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड माऊंटबेटन ने उन पर काफी दबाव भी डाला, लेकिन जब ब्रिटिश सरकार को लगा कि महाराजा जम्मू-कश्मीर रियासत को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनाएंगे, बल्कि उसे हिंदुस्तान की संवैधानिक व्यवस्था का हिस्सा ही रखेंगे, तो उसने रियासत के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हिस्से गिलगित को रियासत में से निकालने का षड्यंत्र रचा। उस समय वहां तैनात गिलगित स्काऊट्स के कमांडिंग आफिसर मेजर विलियम ब्राउन ने ब्रिटिश योजना को लागू करते हुए महाराजा हरि सिंह की सेना की टुकडि़यों पर कब्जा कर लिया, वहां के गवर्नर घनसारा सिंह को बंदी बना लिया, वहां तैनात रियासती सेना के सभी हिंदू-सिख सैनिकों का निर्भयता से कत्ल कर दिया और गिलगित पाकिस्तान के हवाले कर दिया। छावनी में ब्राउन ने पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया। गिलगित पर कब्जा करने के बाद पाकिस्तानी सेना स्वयं सक्रिय हुई और उसने बलतीस्तान पर कब्जा कर लिया। यह सेना तो लद्दाख की ओर बढ़ रही थी और उसने कारगिल पर कब्जा भी कर लिया था, लेकिन बाद में भारतीय सेना ने हिमालय के शिखरों तक टैंक पहुंचा कर कारगिल को तो मुक्त करवा लिया, शायद भारतीय सेना गिलगित-बलतीस्तान भी मुक्त करवा लेती, लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लार्ड माऊंटबेटन दंपति के जाल में आकर सीजफायर लागू कर दिया। तभी से गिलगित-बलतीस्तान पाकिस्तान के कब्जे में हैं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि भारत सरकार ने इस इलाके का प्रश्न कभी पाकिस्तान के साथ नहीं उठाया। गिलगित-बलतीस्तान अफगानिस्तान, पूर्वी तुर्कमेनिस्तान  और रूस की सीमा के साथ लगने के कारण सामरिक लिहाज से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। पूर्वी तुर्कमेनिस्तान पर आजकल चीन का कब्जा है, जिसे चीन वाले आजकल सिक्यिंग के नाम से प्रचारित कर रहे हैं। बागान गलियारा भी इसके साथ लगता है जो भारत को अफगानिस्तान के साथ जोड़ता है। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के कब्जाए गए हिस्से को दो भागों में बांट रखा है। एक हिस्से को वह आजाद कश्मीर कहता है, जिसमें जम्मू संभाग के पंजाबी बोलने वाले इलाके और पंजाबी बोलने वाला मुजफ्फराबाद है। इस इलाके में मुसलमानों का पूर्ण बहुमत है। गिलगित-बलतीस्तान को पाकिस्तान सरकार तथाकथित आजाद कश्मीर में शामिल नहीं करती। गिलगित-बलतीस्तान में शिया समाज का बहुमत है और वह पिछले कुछ अरसे से पाकिस्तान के मुसलमानों के निशाने पर है। शिया समाज के अनेक लोगों की हत्या आतंकवादी मुसलमानों द्वारा होती रहती है। गिलगित-बलतीस्तान का नाम कुछ साल पहले पाकिस्तान सरकार ने उत्तरी क्षेत्र कर दिया था, लेकिन यहां के शिया समाज द्वारा इसका जबरदस्त विरोध करने के कारण सरकार को एक बार फिर पुराना नाम ही बहाल करना पड़ा। पाकिस्तान के संविधान में देश के जिन इलाकों का नाम शामिल किया हुआ है, उसमें गिलगित-बलतीस्तान शामिल नहीं है। पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने भी निर्णय किया है कि गिलगित और बलतीस्तान पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है। पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान अपने देश के मुसलमानों को लाकर गिलगित-बलतीस्तान में बसा रहा है। शिया समाज को खतरा है कि पाकिस्तान की इस साजिश के कारण वे अपने इलाके में ही अल्पसंख्यक होकर रह जाएंगे। इसके कारण शिया समाज और पाकिस्तानी मुसलमानों में झगड़े होते रहते हैं, लेकिन पाकिस्तान सरकार पर शिया समाज के इस विरोध का शायद कोई असर नहीं हुआ। पाकिस्तानी मुसलमान शिया समाज को प्रताडि़त ही नहीं करते, बल्कि उनको दूसरी श्रेणी का नागरिक मानते हैं। चीन की इस क्षेत्र पर अरसे से नजर है क्योंकि चीन इसी रास्ते से अरब सागर या सिंधु सागर में आ सकता है, जहां वह बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह का निर्माण कर रहा है। कहने को यह बंदरगाह पाकिस्तान के क्षेत्र में है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह चीन का अड्डा बन रहा है। पाकिस्तान भी शिया समाज पर नियंत्रण के लिए चीनी सेना का डर बिठाना चाहता है। यह क्षेत्र यूरेनियम का भी भंडार है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में आने के लिए चीन को सभी सुविधाएं प्रदान कर दी हैं। चीन और पाकिस्तान के इस व्यवहार से गिलगित-बलतीस्तान में चीन व पाकिस्तान के प्रति विरोध तो बढ़ ही रहा है, साथ ही अपनी मूल संस्कृति और भाषा के प्रति रुझान भी बढ़ रहा है। अभी यहां की भाषाएं अरबी लिपि में लिखी जाती हैं, लेकिन अब यह मांग भी उठ रही है कि इसे भोटी लिपि में लिखा जाए जो बलतीस्तान की अपनी लिपि है। इसी प्रकार शीना भाषा, बुरुशसकी को पढ़ाने की मांग भी उठने लगी है। युवा पीढ़ी एक बार फिर बुद्ध में रुचि लेने लगी है। यही कारण है कि पाकिस्तान से लाकर बसाए गए मुसलमानों, अरब मूल के सैयदों और मध्य एशिया मूल के तुर्कों व मुगलों ने मांग करनी शुरू कर दी है कि गिलगित-बलतीस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बना दिया जाए। चीन भी पाकिस्तान पर इसके लिए दबाव बना रहा है। लेकिन गिलगित-बलतीस्तान का शिया समाज इसका डट कर विरोध कर रहा है। इमरान खान की सरकार किसी प्रकार वहां की स्थानीय सरकार को भंग कर प्रशासन का नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहती है। उसने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट से ऐसा आदेश भी पारित करवा लिया है। भारत सरकार ने पाकिस्तान के कदम का सख्त विरोध ही नहीं किया बल्कि उसके राजदूत को विदेश मंत्रालय में बुला कर अपना विरोध दर्ज करवाया। यह पहली बार है कि दिल्ली ने पाकिस्तान की गिलगित-बलतीस्तान में असंवैधानिक गतिविधियों पर अपना विरोध दर्ज करवाया है।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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