नई अर्थव्यवस्था का स्वरूप: भरत झुनझुनवाला, आर्थिक विश्लेषक

By: Jun 9th, 2020 12:06 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

अर्थव्यवस्था के अगले चरण में रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दबदबा रहेगा। मैन्युफेक्चरिंग यानी भौतिक माल के उत्पादन में रोबोट का उपयोग बढ़ेगा। चीन में ऐसी फैक्टरियां स्थापित हो चुकी हैं जिनमें एक भी श्रमिक काम नहीं करता है। संपूर्ण काम जैसे कच्चे माल को ट्रक से उतारना, उसे मशीन में डालना और फिर तैयार माल को बाहर जाने वाले ट्रक में लोड करना इत्यादि सभी काम रोबोट द्वारा किए जाते हैं। इसी प्रकार बौद्धिक कार्य भी कम्प्यूटर द्वारा किए जाने लगेंगे चूंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास हो चुका है। इसमें कम्प्यूटर द्वारा किसी विषय पर बहुत अधिक  मात्रा में डाटा को खंगाला जाता है और उसके आधार पर वह कम्प्यूटर आपको सारांश बताता है। जैसे यदि डाक्टर को मरीज का परीक्षण करना है तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा मरीज के इतिहास, ब्लड रिपोर्ट, ब्लड प्रेशर इत्यादि तमाम सूचना को खंगाला जाएगा, उसको डाइजेस्ट किया जाएगा और उसके बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डाक्टर को सलाह देगा कि कम्प्यूटर के गणित के अनुसार उस मरीज को क्या बीमारी होने की संभावना है और उसके उपचार के लिए क्या सुझाव हैं। डाक्टर का कार्य सिर्फ  इतना होगा कि उस मरीज की परिस्थिति को समझते हुए वह कम्प्यूटर द्वारा बताए गए विकल्पों में जो उसे उपयुक्त लगे, उसका चयन करे। लेकिन पूरी सूचना जैसे ब्लड रिपोर्ट और ब्लड प्रेशर, इन सबको सोचने-समझने की डाक्टर को जरूरत नहीं पड़ेगी।

एक ही डाक्टर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से बहुत अधिक संख्या में रोगियों का उपचार कर सकेगा। इस परिस्थिति में हमारे सामने संकट है। हमें विशाल जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराना है जो कि फैक्टरियों और दफ्तरों दोनों में ही कम होता चला जाएगा। इस परिस्थिति में एक उपाय यह है कि हम भी स्वयं रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बनाने की तरफ बढ़ें। इन कार्यों में रोजगार बनाएं, जैसे रोबोट बनाने की फैक्टरियां स्थापित करें जिससे कि हम पूरे विश्व को रोबोट सप्लाई कर सकें अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रोग्राम बनाएं जिससे कि डाक्टर को सही सुझाव देने की हमारे प्रोग्राम की क्षमता हो। यह सही दिशा है, लेकिन मेरे आकलन में हमारी विशाल जनसंख्या के लिए इस कार्य में बहुत रोजगार उत्पन्न नहीं हो सकेंगे। हमें दूसरे उपाय भी ढूंढने पड़ेंगे। इस समय हमारे नागरिक विशेषकर युवा स्मार्ट फोन से परिचित हो चुके हैं। आज स्मार्ट फोन में शेयर मार्केट में खरीद-बेच करना, ऑनलाइन ट्यूटोरियल देना, दस्तावेज का ट्रांसलेशन करना, वीडियो को एडिट करना इत्यादि सारे कार्य किए जा रहे हैं। आने वाले समय में इस प्रकार के कार्यों की मांग विशेषतः बढ़ेगी। जापानी दस्तावेज को  जर्मन में ट्रांसलेशन करने की समाज को अधिकाधिक जरूरत पड़ेगी क्योंकि वैश्वीकरण हो ही रहा है और हर देश का नागरिक जानकारी चाहता है कि दूसरे देश में क्या हो रहा है। इस प्रकार के कार्यों को हमारे युवा स्मार्ट फोन पर आसानी से कर सकते हैं। इसलिए हमको रोजगार उत्पन्न करने के लिए स्मार्ट फोन आधारित सेवाएं जैसे ऑनलाइन ट्यूटोरियल देना, ट्रांसलेशन, वीडियो एडिट करना इत्यादि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस रास्ते रोजगार बनाने का एक विशेष लाभ यह है कि इससे हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में सीधे अपने माल को बेच सकते हैं। दरभंगा में बैठा युवा जापानी से जर्मन में ट्रांसलेशन करके उस दस्तावेज को जर्मनी को सप्लाई कर सकता है। इसलिए स्मार्ट फोन आधारित सेवाओं को बढ़ाने के लिए हमें विशेष प्रयास करने चाहिएं। तीसरा उपाय यह है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत में अंग्रेजी ज्यादा अच्छी है। भारत सरकार एक कार्यक्रम ले सकती है जिसमें हम अपने युवाओं की अफ्रीका, दक्षिण अमरीका और एशिया के दूसरे विकासशील देशों को मुफ्त सेवाएं उपलब्ध कराएं। इसके कई लाभ होंगे। पहला यह कि हमारे युवाओं को रोजगार मिलेगा। दूसरा यह कि हमारी वैश्विक पहुंच बनेगी। वर्तमान में चीन संपूर्ण विश्व में अपनी पैठ बनाने की ओर बढ़ रहा है। चीन अपने धन-बल के आधार पर दूसरे देशों में प्रवेश करने का प्रयास कर रहा है। हमारे पास चीन के समकक्ष धन-बल नहीं है, लेकिन हमारे पास शिक्षा बल है। इसलिए हम अपने युवाओं को एक कार्यक्रम के अंतर्गत संपूर्ण विश्व के विकासशील देशों में सेवा देने के लिए भेज सकते हैं। अमरीका ने 1960 के दशक में पीस कोर नाम का एक कार्यक्रम बनाया था। उसमें अमरीकी युवाओं को कुछ समय के लिए विकासशील देशों में सेवा करने के लिए भेजा जाता था। इसी प्रकार का कार्यक्रम लेकर भारत दूसरे देशों को शिक्षा सप्लाई कर सकता है। ऐसा करने से बड़ी संख्या में अपने देश में रोजगार बनेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्मार्ट फोन आधारित सेवाओं के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा हमारी शिक्षा व्यवस्था है। हमारी शिक्षा व्यवस्था का उद्देश्य अभी भी मूल रूप से सरकारी नौकरी हासिल करने का है। युवा कालेज में इसलिए नहीं जाते कि विषय का ज्ञान हो, वे कुछ नया सीख सकें और कर सकें। वे इसलिए जाते हैं कि उन्हें एक डिग्री का सर्टिफिकेट मिल जाए, जिससे कि वे सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने के लायक हो जाएं और घूस देकर उसे प्राप्त कर लें। हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था को स्मार्ट फोन की तरफ मोड़ना होगा। यहां बाधा यह है कि सरकारी शिक्षकों की सेवाएं सुरक्षित हैं। वे बच्चों को पढ़ाएं या न पढ़ाएं, उनके प्रश्नों का उत्तर दें या न दें, होमवर्क चैक करें या न करें, उनका वेतन सुरक्षित है। यदि किसी शिक्षक की क्लास में बच्चे अधिक संख्या में फेल होते हैं तो उसके ऊपर कोई गाज नहीं गिरती है। इसलिए यदि हमको आने वाले समय में अपने युवाओं को स्मार्ट फोन आधारित शिक्षा देनी है तो हमको अपनी सरकारी शिक्षा का स्वरूप बदलना होगा। उपाय यह है कि हम हर कालेज और यूनिवर्सिटी के बजट में हर वर्ष 25 प्रतिशत की कटौती कर दें। उन्हें कहें कि वह इस रकम को सेल्फ  फाइनांसिंग कोर्सों से अर्जित करें जिससे कि कालेजों के लिए जरूरी हो जाए कि वे अच्छी शिक्षा दें, जिससे कि वे बच्चों को कालेज में ऊंची फीस देकर दाखिला लेने के लिए आकर्षित कर सकें। ऐसा करने से हमारी शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप बदलेगा, हमारे शिक्षक वास्तव में इस प्रकार की शिक्षा देंगे जिससे युवाओं को स्मार्ट फोन आधारित रोजगार मिल सकेगा। इससे हमारी आर्थिकी चल निकलेगी।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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