आत्मनिर्भरता के लिए धर्मयुद्ध: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: Jul 10th, 2020 12:07 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

भारत भी कोरोना की गिरफ्त में है और उसने कभी यह नहीं सोचा था कि चीन की ओर से उसे नए खतरे का सामना करना पड़ेगा। चीन का न केवल भारत से विवाद चल रहा है, बल्कि उसने हांगकांग, ताईवान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भी विवाद की स्थिति उत्पन्न कर दी है। चीन के इन कारनामों को पूरा विश्व उसकी विस्तारवादी नीति के रूप में देख रहा है। नई विश्व व्यवस्था में अपना अहम स्थान बनाने के लिए चीन विस्तारवादी नीति को आवश्यक मान रहा है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चीन विश्व भर में एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है। इसी के साथ भारत भी एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है, जिसके चीन के साथ सीमा विवाद के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा भी है। चीन पूरे विश्व के लिए सबसे सस्ते उत्पाद बना रहा है और दुनिया में उसकी धाक बन गई है…

कोरोना वायरस विश्व भर में बड़ी तबाही लेकर आया है। इसके कारण पूरी दुनिया में अब तक करीब सवा करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि साढ़े पांच लाख लोगों की जान चली गई है। इससे पहले विश्व ने कभी भी महामारी की ऐसी विकरालता नहीं झेली और न ही ऐसी मानव त्रासदी के कारण कभी जीवन के विविध पहलू इस तरह प्रभावित होते देखे गए। यह एक विध्वंस है, लेकिन सभी विध्वंस की तरह यह तबाही कार्य के सृजन के लिए नए रास्ते लेकर आई है। शिक्षा के साथ-साथ आर्थिक विकास के लिए नए दृष्टिकोण इस विध्वंस ने विकसित किए हैं। इधर भारत पर दोहरी मार पड़ी है। वह कोरोना का हमला ही नहीं झेल रहा है, बल्कि चीन की ओर से वह नए खतरे का सामना कर रहा है जिसने सीमा पर गलवान घाटी में 21 शस्त्रहीन भारतीय सैनिकों को शहीद कर दिया। विश्व भर में कोरोना के कारण उपजे तनाव के बीच पूरी दुनिया चीन को संदेह की दृष्टि से देख रही है और आशंका है कि इस महामारी को चीन ने ही अपने कारनामे के रूप में ईजाद किया है।

भारत भी कोरोना की गिरफ्त में है और उसने कभी यह नहीं सोचा था कि चीन की ओर से उसे नए खतरे का सामना करना पड़ेगा। चीन का न केवल भारत से विवाद चल रहा है, बल्कि उसने हांगकांग, ताईवान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भी विवाद की स्थिति उत्पन्न कर दी है। चीन के इन कारनामों को पूरा विश्व उसकी विस्तारवादी नीति के रूप में देख रहा है। नई विश्व व्यवस्था में अपना अहम स्थान बनाने के लिए चीन विस्तारवादी नीति को आवश्यक मान रहा है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चीन विश्व भर में एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है। इसी के साथ भारत भी एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है, जिसके चीन के साथ सीमा विवाद के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा भी है। कम कीमत पर ज्यादा उत्पादन, पर्यावरण का क्षरण तथा कम कीमत के स्पेशल इकोनॉमिक जोन के कारण चीन पूरे विश्व के लिए सबसे सस्ते उत्पाद बना रहा है और दुनिया में उसकी धाक बन गई है। वैश्विक बाजार पर उसका कब्जा हो गया है। प्रतिस्पर्धात्मक विश्व में अब हर चीज चाइनीज है। अब पूरे विश्व के लिए चुनौती यह है कि वह चीनी उत्पादों को हटाने के लिए सस्ते मूल्य के और बेहतर क्वालिटी के उत्पाद बनाए। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित रूप से ही आत्मनिर्भरता का आह्वान किया है। उन्होंने देश को याद दिलाया है कि इससे न केवल हम आर्थिक रूप से स्वतंत्र होंगे, बल्कि चीन को आर्थिक रूप से मात भी दी जा सकेगी। इसके लिए चीनी उत्पादों का बहिष्कार करना होगा। इससे चीन की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी। हमें पीछे की ओर देखना चाहिए तथा देश विभाजन के बाद के विकास मॉडल को देखना चाहिए जो कि गुटनिरपेक्ष और समाजवादी था। इसने हमें आजाद बनाए रखा, किंतु तेज आर्थिक विकास के बिना हम गरीब बने रहे। परिणाम यह हुआ कि जब मैं विदेश गया तो विदेशी भारत में बनी कारों पर हंसा करते थे क्योंकि हम आयात नहीं करते थे। विदेशी हम पर हमारी कारों के लिए ‘टिन बॉक्सिज’ की टिप्पणी करके मजाक उड़ाते थे। फिर उदारीकरण का दौर आया और अर्थव्यवस्था विश्व के लिए खुल गई। इससे पूंजी का बहाव बढ़ा तथा सरकारी नियमन में ढील संभव हुई। अर्थव्यवस्था को विश्व के लिए खोलने वाले नरसिम्हा राव अथवा मनमोहन सिंह नहीं थे, बल्कि यह आर्थिक विनियमन की लहर थी, जो विश्व भर में चली।

इसने पहले के भारत को साफ कर दिया तथा अगर हम इस लहर के साथ न बहे होते, तो हम खो चुके होते। उदारीकरण के बावजूद हम नियंत्रणों का बोझ उठाते रहे जिसे मोदी सरकार की नई नीतियों ने तोड़ दिया। डिजिटलाइजेशन ने काम की तेज गति को प्रस्तुत किया तथा कई अवरोधक चरणों को हटा दिया। मोदी सरकार के काल में कई क्रांतिकारी सुधार हुए हैं जैसे दिवालियापन कानून, विमुद्रीकरण तथा व्यापार व वाणिज्य में अवरोधों का हटाना इत्यादि। कुछ सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण अभी होना है। बैंक सुधारों की वजह से बैंकिंग क्षेत्र में परिवर्तन हुए हैं। इससे बैंक घोटालों पर अंकुश लगा है तथा मुफ्त राशन, सबसिडी युक्त रसोई गैस तथा बिजली की आपूर्ति जैसे कल्याणकारी कार्य संभव हो पाए हैं। अब चीन विवाद तथा आत्मनिर्भरता का धर्मयुद्ध विकासात्मक गतिविधियों को काफी प्रोत्साहन देंगे। चीन से भारत को तीन स्तरों पर निपटना होगा। पहला है सैन्य स्तर जहां प्रोक्योरमेंट तथा उपकरण निर्माण पर काफी काम चला हुआ है। दूसरा स्तर है आर्थिक क्षेत्र जहां प्रतिबंधित किए गए 59 चीनी ऐप्स की जगह लेने के लिए इंडस्ट्री को अचानक अवसर दिया गया है। व्यापार को आसान बनाने के लिए भी अभियान चल रहा है तथा एमएसएम के लिए प्रतिस्थापन करने के काफी अवसर हैं जिसके लिए इनसेंटिवाइजेशन की जरूरत है। जो पहले ही वर्ष में 48000 करोड़ की रिश्वत देता था, वह अदायगी के डिजिटलाइजेशन के कारण राहत महसूस करेगा। इससे किसी के वैयक्तिक भेदभाव से भी बचा जा सकेगा। निर्यात को प्रोत्साहन देना होगा क्योंकि इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव आने वाले हैं। वाहनों और बाइक्स का निर्यात बढ़ने की भी संभावनाएं हैं। भारत ने दवा निर्माण के क्षेत्र में पहले ही धाक जमा रखी है। अब अगर भारत कोरोना की दवा भी बना लेता है तो इस क्षेत्र में भारत के लिए यह क्रांतिकारी पग होगा। छह अन्य देशों के साथ भारत कोरोना की दवा के निर्माण के लिहाज से फाइनल ट्रायल में है। विश्व उत्पादन तथा बाजार को छीनने का सार है कि बड़े या छोटे सेक्टर में जो कुछ भी बनाया जाता है, उसमें निर्णायक गुणवत्ता आश्वासन तथा उच्च स्तर की निपुणता प्राप्त की जाए। निम्न गुणवत्ता के उत्पादों की जगह भारत को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने होंगे, चाहे कीमत कुछ भी क्यों न हो।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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