कुशा खाओ, पाप मिटाओ

By: Jul 21st, 2020 12:06 am

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अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

मार्निंग वॉक के दौरान पंडित जॉन अली कोे न जाने क्या सूझी कि पार्क में एक जगह रुक कर कुशा चबाने लगे। मैंने पूछा तो बोले कि पिछले दिनों खबर छपी थी कि कुलंत पीठ में लोगों द्वारा अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए घास खाते ही देवता उन्हें मुआ़फ कर देते हैं। पापों का प्रायश्चित करने का इससे बढि़या और कोई तरी़का नहीं हो सकता। पर हमारे लाल जी महराज तो कई सालों तक पाप करने के लिए केवल घास ही खाते रहे। उन्होंने गाय-भैंसों, यहां तक कि मुर्गियों की भी ऐसी बाट लगाई कि लोग आज तक उनके नाम की माला जपते हैं। स्कूटरों पर चारे के अलावा गाय-भैंसे तक ढोईं। बजाज, वेस्पा तथा अन्य दुपहिया वाहन निर्माता लाल जी महराज एंड कंपनी से दुपहियों पर चौपाओं को ढोने की तकनीक पूछते रहे। लेकिन जब सीबीआई भी उनसे कुछ नहीं उगलवा सकी तो बजाज-वेस्पा किस खेत की मूली थे।  एक ़खबरिया चैनल ने बताया है कि स्वर्ग लोक से प्राप्त समाचार के अनुसार हमारे नेताओं तथा हुक्कामों ने पाप करने के जो नए तरी़के ईजाद किए हैं, उससे प्रभावित होकर देवराज इंद्र ने उनके सारे गुनाह मुआ़फ कर दिए हैं। कबूतरबाजी की जो एक नई विधि एक सांसद भाई ने ढूंढी थी, उससे तो दाऊद भाई भी उनका मुरीद हो गया। पराई बीवियों को अपनी बताकर वह कितनी ही विदेश छोड़ आए और हमसे अभी तक अपनी भी नहीं छोड़ी गई। का़गजों में अनाज से भरी जो रेलगाडि़यां सुदूर पूर्वी क्षेत्रों तक चलती हैं, वे न जाने किस बरमूडा त्रिकोण में ़गायब हो जाती हैं। सरकार ने जब योजनाओं में धांधली रोकने के लिए चैक सिस्टम आरंभ किया तो जनप्रतिनिधियों ने फर्जी मस्ट्रोल भरकर बैंक के बाहर ही कमीशन वसूलना आरंभ कर दी। इसके अलावा दफ्तरों में चीज़ों के रिपेयर करवाने के नाम पर लिए गए बिलों से साहिबों के घरों के डीटीएच, फ्रिज़ व़गैरह के अलावा उनके गंजी-बनियान तथा अंडरवियर तक एडजस्ट किए जाते हैं। कुशा खाकर गुनाह मुआ़फकरवाने का तरी़का ज़रूर नया है। लेकिन हमारे यहां तो सारी उम्र पाप करने के बाद लंगर खिलाने, गंगा स्नान करने या मरते व़क्त हरि नाम लेकर तरने का उपाय तो हिंदू सभ्यता के आरंभ से ही मौजूद है। मज़े की बात है कि लोग इसका भरपूर लाभ भी उठाते हैं। सालभर जमाखोरी करने वाले वर्ष में एक बार पेटुआें को लंगर खिलाने के बाद अपने ़गुनाहों से छुटकारा पा लेते हैं। इसी तरह सारी उम्र लोगों के लहू से स्नान करने वाले गंगा माई में डुबकी लगाकर अपने सारे पुराने पाप बहाकर, पापों की नई बुआई आरंभ कर देते हैं। उम्रभर पराई औरतों के नाम की माला जपने वाले अजामल की तरह एक ही बार विष्णु का नाम लेकर तर जाते हैं। पर ऐसा तो भारतीय सदियों से करते आ रहे हैं, नया कुछ भी नहीं। अगर नया है तो केवल देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कुशा खाने का तरी़का। इसके बाद और नए तरी़के क्या हो सकते हैं? मैं अब इसी पर विचार कर रहा हूं।


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