सौरभ कालिया के जख्मों का हिसाब बाकी

By: Jul 25th, 2020 12:07 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं

भारतीय सेना ने दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र पर पाक फौज की कब्र खोद कर उस पर अपनी फतह का रक्तरंजित मजमून लिख कर विश्व को अपने रुतबे व हैसियत का पैगाम दे दिया कि जमीनी युद्धों में भारतीय थलसेना विश्व में सर्वोत्तम है। आखिर 26 जुलाई 1999 को सेना ने आधिकारिक तौर पर ‘ऑपरेशन विजय’ को सफल घोषित कर दिया। भारतीय सैन्यशक्ति के पराक्रम के आगे पाक हुकमरानों की कश्मीर को हथियाने की हसरत पूरी नहीं हुई और न ही होगी। पूरा भारत अपने रणबांकुरों को नमन करता है…

26 जुलाई को भारतीय थलसेना अपने उन रणबांकुरों को नमन करेगी जिन्होंने 21 वर्ष पूर्व कारगिल के 18 हजार फुट ऊंचे युद्धक्षेत्र में पाक सेना को धूल चटाकर उसके नापाक मंसूबों को सुपुर्देखाक करके भारतीय सैन्य इतिहास के शिलापट्ट पर शौर्यगाथा का एक और सुनहरा अध्याय जोड़ दिया था। मगर यह दिन हमसाया मुल्क पाकिस्तान व उसकी नामुराद सेना के लिए बेहुरमती व जिल्लत भरा दिवस है। दरअसल 1999 के शुरुआती दिनों में पाक सिपहसालारों ने लद्दाख का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले 168 किलोमीटर तक फैले कारगिल के उपखंडो द्रास, कोकसर, मुश्कोह व बटालिक क्षेत्रों पर पाक सेना की ‘नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री’ तथा ‘स्पेशल सर्विस ग्रुप’ के जवानों की सिविल लिबास में खुफिया  तरीके  से  भारत की उन चोटियों पर घुसपैठ करवाकर मसुंबाबदी को अंजाम दिया था जिन्हें भारतीय सेना सर्दियों के मौसम में खाली कर देती थी। पाक सैन्य कमांडरों ने उस अभियान को ‘कोह-ए-पैमा’ का नाम दिया था।

तीन मई 1999 को भारतीय सीमा में दुश्मन की घुसपैठ की भनक लगने के बाद कारगिल क्षेत्र पर रक्षात्मक मोर्चा संभाल चुके दुश्मन को नेस्तनाबूद करने के लिए भारतीय सेना ने पूरी तजबीज के साथ ‘ऑपरेशन विजय’ लॉंच किया। प्रतिशोध से भरी भारतीय थलसेना का ताकत व शिद्दत भरा पलटवार, आसमान से भारतीय वायुसेना के मिग व मिराज फाइटर विमानों की बमवर्षा तथा जमीन से आग उगलने में कुख्यात बोफोर्स तोपों की शदीद बमबारी से पाक सेना की हुई तबाही ने पाक सुल्तानों की कश्मीर को हथियाने की वहशत व उन्माद को मातम में तब्दील कर दिया, साथ ही कारगिल में घुसी पाक सेना को भारतीय सेना के पराक्रमी तेवरों व खौफनाक कहर से बचाने के लिए चार जुलाई 1999 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री को अमरीका जाकर अमन की पैरोकारी के लिए उनके ‘सदर’ की खुशामद करनी पड़ी। कारगिल के योद्धाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है, मगर कैप्टन मनोज पांडे (11 गोरखा) ने 25 जून 1999 को अपना 24वां जन्मदिन कारगिल की पहाडि़यों पर ही मनाया था तथा अपने सैनिकों के साथ बटालिक सेक्टर के ‘खालूबार’ टॉप पर पाक सेना द्वारा कब्जाए बंकरों पर भयंकर आक्रमण के दौरान गोलियों से छलनी होने के बावजूद दुश्मन को नेस्तनाबूद करके वह जांबाज सैन्य अधिकारी वीरगति को प्राप्त हुआ था। उस अद्भुत अदम्य साहस के लिए भारत सरकार ने कैप्टन मनोज पांडे को सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से अलंकृत किया गया था। मनोज पांडे से ‘एनडीए’ के साक्षात्कार में शीर्ष सैन्य अधिकारी ने पूछा था कि वह सेना में क्यों जाना चाहता है, जवाब था ‘परमवीर चक्र जीतने के लिए’ और उससे दो वर्ष बाद मनोज पांडे ने कारगिल युद्ध में अपनी उस तहरीर को साबित कर दिया जो कि शूरवीरता की चश्मदीद गवाही है। इसी बटालिक सेक्टर में बिलासपुर के नायक अश्वनी कुमार ने एक पोस्ट को दुश्मन के चंगुल से छुड़वाने के एक आक्रामक मिशन के दौरान चार घुसपैठियों को मौत के घाट उतार कर 25 जुलाई 1999 को अपनी शहादत देकर पोस्ट को आजाद करवाने में मजीद किरदार अदा किया था। युद्ध क्षेत्र में शौर्य पराक्रम के लिए उस योद्धा को ‘सेना मेडल’ से नवाजा गया था। इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों ने अपना बलिदान दिया था जिनमें 52 शहीद जांबाजों का संबंध हिमाचल से था। युद्ध के चार परमवीर चक्र विजेताओं में 17 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित प्वाइंट 4875 व 5140 जैसे दुर्गम व महत्त्वपूर्ण शिखरों पर तिरंगा फहराने वाले शहीद कैप्टन विक्रम बत्तरा तथा संजय कुमार दोनों परमवीरों का संबंध भी हिमाचल से है। इसके अलावा चार वीर चक्र व पांच सेना मेडल भी राज्य के शूरवीरों ने अपने नाम किए थे। चार जुलाई 1999 को टाइगर हिल पर कब्जे के दौरान आठ सिख के भीषण हमले में मारे गए पाक सेना की 12 नार्दर्न लाइट के कैप्टन शेर खान की मय्यत को भारतीय सेना ने रेडक्रास के जरिए पूरे सम्मान से पाकिस्तान को सौंपकर आदमियत की मिसाल पेश की थी।

भारतीय सेना की गवाही पर ही उसे पाक ने अपने सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘निशान-ए-हैदर’ से सरफराज किया था। मगर इस युद्ध से पूर्व पांच मई 1999 को कारगिल में पाक सेना की घुसपैठ की पुख्ता जानकारी देने वाले गश्ती दल के छह भारतीय सैनिकों को पाक सेना ने धोखे से बंदी बनाकर उनकी नृशंस हत्या कर दी थी, जो कि जेनेवा कन्वेंशन 1949 का सरासर उल्लंघन था। उस गश्ती दल का नेतृत्व हिमाचल के जांबाज कैप्टन सौरभ कालिया कर रहे थे। कारगिल युद्ध के प्रथम शहीद सौरभ कालिया तथा उसके पांच साथियों के जख्मों का हिसाब बाकी है। उन शूरवीरों के न्याय का मुफीद विकल्प दुश्मन को उसी भाषा में माकूल सैन्य कार्रवाई ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस युद्ध की वास्तविकता को पाक तानाशाहों ने अपनी आवाम से कुछ समय तक छुपाया, लेकिन पाक सेना के पूर्व ले. ज. शाहिद अजीज, कर्नल अशफाक हुसैन तथा पाक लेखिका नसीम जेहरा ने अपनी किताबों से कारगिल युद्ध में पाक सेना की भूमिका तथा वहां मारे गए सैकड़ों पाक सैनिकों की मौत पर खामोशी की चादर ओढ़े पाक हुक्कामों के चेहरे बेनकाब करके अपनी सेना की हकीकत व औकात को दुनिया के सामने पूरी तफसील से बयान कर दिया था। इस युद्ध में मारे गए पाकिस्तानी सैनिक दुर्भाग्यशाली रहे जिनके ताबूतों पर न उनके मुल्क का परचम सजा और न ही उनकी मय्यत को उनके वतन की मिट्टी नसीब हुई।

भारतीय सेना ने दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र पर पाक फौज की कब्र खोद कर उस पर अपनी फतह का रक्तरंजित मजमून लिख कर विश्व को अपने रुतबे व हैसियत का पैगाम दे दिया कि जमीनी युद्धों में भारतीय थलसेना विश्व में सर्वोत्तम है। आखिर 26 जुलाई 1999 को सेना ने आधिकारिक तौर पर ‘ऑपरेशन विजय’ को सफल घोषित कर दिया। भारतीय सैन्यशक्ति के पराक्रम के आगे पाक हुकमरानों की कश्मीर को हथियाने की हसरत पूरी नहीं हुई और न ही होगी। पूरा भारत अपने रणबांकुरों को नमन करता है।


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