धर्मनिरपेक्षता और राम मंदिर: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: Aug 7th, 2020 12:07 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

नेहरू की विफलताओं और तीन बड़ी गलतियों के बावजूद मैं ऐसे विचारों से सहमत नहीं हूं। वह नेता व बौद्धिक रूप में एक महान व्यक्ति थे। उनकी पहली गलती यह थी कि उन्होंने भारत का विभाजन स्वीकार कर लिया। दूसरी बड़ी गलती चीन के साथ भारत की लड़ाई में देश की रक्षा में विफल होना तथा कृष्णा मेनन का समर्थन करना था। उनकी तीसरी बड़ी गलती यह थी कि वह कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र के हवाले करने के लिए सहमत हो गए। लेकिन दिल से वह भारत से प्यार करते थे। वे लोग जो कि आरोप लगाते हैं कि नेहरू संस्कृति में मुसलमान थे, उन्हें डिस्कवरी ऑफ इंडिया तथा उनके अन्य सृजन को पढ़ना चाहिए। वह अपने देश की इतनी चिंता करते थे कि उनकी इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी अस्थियां गंगा व अन्य नदियों में विसर्जित की जाएं…

अयोध्या में राम मंदिर के लिए लोगों ने करीब 470 वर्षों तक इंतजार किया। अब जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके निर्माण के लिए नींव-पत्थर रखने वाले हैं, निर्माण में देरी करने के लिए कानाफूसी का अभियान शुरू हो गया है। यह कहा जा रहा है कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को देखते हुए मंदिर निर्माण के लिए यह अनुकूल समय नहीं है। अयोध्या के रास्ते में इसी प्रकार की अन्य बाधाएं भी खड़ी की जा रही हैं।

सबसे बड़ा फंसाने का रास्ता यह है कि तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की ओर से बाधा डालते हुए कहा जा रहा है कि चूंकि सरकार का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए उसे धार्मिक गतिविधियों में भाग नहीं लेना चाहिए। अब चूंकि शुरुआत हो चुकी है, इसलिए धर्मनिरपेक्षता का प्रश्न हमेशा के लिए सुलझा देना चाहिए। समझने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास समारोह भय और घृणा की आग को नहीं भड़काएगा, जो कि मंदिर तैयार होने के बाद जारी रह सकता है। हमें इससे पूरी समझ और पक्के इरादे के साथ निपटना चाहिए। संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द को शामिल करने की पृष्ठभूमि विचित्र है।

मौलिक संविधान में यह कहीं नहीं लिखा गया है कि देश धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी होगा। वास्तव में प्रारूप समिति ने इस पर विस्तृत विचार किया था। जवाहर लाल नेहरू और डा. भीमराव अंबेडकर इस शब्द को संविधान की प्रस्तावना में डालने के पक्ष में नहीं थे। यहां मैं नेहरू के विचारों का उद्वरण देना चाहूंगा जो कि देश द्वारा तैयार किए गए भविष्य के चार्टर के पीछे मुख्य दिमाग थे। वह उच्च तौर पर बौद्धिक तथा भावुक व्यक्ति थे जिनके बारे में महात्मा गांधी भी सोचते थे कि वह भारत का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं। संविधान के निर्माण से इसी तरह कई अन्य समान विवेक व प्रतिभा वाले लोग भी जुड़े थे। डा. राजेंद्र प्रसाद भी एक दक्ष तथा निपुण हस्ती थे जो भारतीय संस्कृति से काफी हद तक प्रभावित थे।

समस्या धर्म पर आधारित आरक्षण के प्रति कटिबद्धता के कारण भी उत्पन्न हुई। जवाहर लाल नेहरू इस पक्ष में थे कि धर्म की स्वतंत्रता का गारंटी मौलिक अधिकारों में दी जानी चाहिए। नागरिकों की समानता के स्पष्ट प्रावधान के साथ इसे संगति से बाहर माना गया। किस प्रकार धर्म के आधार पर विशेष व्यवहार करने के लिए संकेत करने के वास्ते प्रयोग किया गया? अंततः संविधान के बाहर धर्मनिरपेक्षता को छोड़ देना दूरदर्शिता माना गया। वैयक्तिक विश्वास को कोई मसला नहीं माना गया। यह वह था जो राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को तब बताया जब उन्होंने सोमनाथ मंदिर के धार्मिक समारोह से परहेज करने के लिए धर्मनिरपेक्षता की याद दिलाई। राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की सलाह को अनदेखा कर दिया था। वर्ष 1976 में इंदिरा गांधी के पास लोकसभा में भारी बहुमत था। इसी के चलते उन्होंने वामपंथ के प्रति अपना झुकाव दर्शाने के लिए संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को जोड़ दिया।

भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रति नेहरू के प्यार को उन्होंने ग्रहण नहीं किया। दिमाग संबंधी संताप के बावजूद नेहरू का देश से बड़ा प्यार था। हिंदू महासभा ने उनकी मिश्रित व्यक्तित्व के रूप में व्याख्या की और कहा, ‘वह शिक्षा से अंग्रेज, संस्कृति से मुसलमान और जन्म से हिंदू थे।’ नेहरू की विफलताओं और तीन बड़ी गलतियों के बावजूद मैं ऐसे विचारों से सहमत नहीं हूं। वह नेता व बौद्धिक रूप में एक महान व्यक्ति थे। उनकी पहली गलती यह थी कि उन्होंने भारत का विभाजन स्वीकार कर लिया। दूसरी बड़ी गलती चीन के साथ भारत की लड़ाई में देश की रक्षा में विफल होना तथा कृष्णा मेनन का समर्थन करना था।

उनकी तीसरी बड़ी गलती यह थी कि वह कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र के हवाले करने के लिए सहमत हो गए। लेकिन दिल से वह भारत से प्यार करते थे। वे लोग जो कि आरोप लगाते हैं कि नेहरू संस्कृति में मुसलमान थे, उन्हें डिस्कवरी ऑफ इंडिया तथा उनके अन्य सृजन को पढ़ना चाहिए। वह अपने देश की इतनी चिंता करते थे कि उनकी इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी अस्थियां गंगा व अन्य नदियों में विसर्जित की जाएं। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का अर्थ वही है जो बाद में नरेंद्र मोदी ने ‘सर्वे भवंतु सुखिना’ के वैदिक संदेश के साथ व्याख्यायित किया है। यही कारण है कि उन्होंने अमरीकी पत्रकार अर्नाल्ड एम. चायलिस को बताया कि भारत में मुसलमान हिंदुओं की संतति हैं।

धर्मनिरपेक्षता को नेहरू ने इस वर्णक्रम में देखा, किंतु उनके अनुयायियों ने इसे विवादास्पद नजरिए से देखा। धर्मनिरपेक्षता सभी के साथ समान व्यवहार का आश्वासन देती है तथा यह अल्पसंख्यकों के साथ पक्षपात का समर्थन नहीं करती है। लेकिन धीरे-धीरे वोट बैंक की राजनीति ने सभी के लिए चिंता को घटा दिया तथा बराबर के अधिकारों की उपेक्षा होने लगी, साथ ही वोट एकत्र करने के लिए एक समुदाय को प्रलोभित किया जाने लगा। यह भुला दिया गया कि भारत की हिंदू संस्कृति है और अन्य धर्मों के साथ बराबर का व्यवहार होगा, लेकिन उनका विशेष समर्थन नहीं होगा। अल्पसंख्यकों के लिए जो समान था, वह मुस्लिम समर्थक बन गया।

परिभाषा ऐसे बदल गई कि मनमोहन सिंह ने कह दिया कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। पक्षपातपूर्ण आचरण कभी भी धर्मनिरपेक्षता नहीं हो सकता। मैं कांग्रेस व भाजपा के सदस्यों को याद दिलाना चाहूंगा कि उन्हें वह नहीं भूलना चाहिए जो नेहरू ने कहा था। ‘भारत हिंदू सचेतना की भूमि है जो कि हमेशा के लिए हिंदुओं के लिए स्वाभाविक घर होगा।’ मेरे लिए धर्मनिरपेक्षता देश की प्राधान्य संस्कृति है जो अल्पसंख्यकों को से समान आचरण की बात करती है। अंसारी, अयोध्या के राम मंदिर भूमि विवाद में जो वादी थे, को मंदिर शिलान्यास समारोह में बुलाया गया और वह इसमें शामिल भी हुए। यह धर्मनिरपेक्षता की सच्ची आत्मा है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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