क्यों न हो पुरखों का स्मरण : कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार

By: Aug 22nd, 2020 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

अयोध्या के इस साम्राज्य के उत्थान-पतन की लंबी कहानी है। लेकिन श्री रामचंद्र की शासन व्यवस्था इतनी उत्तम थी कि उनकी राज्य व्यवस्था भविष्य के शासकों के लिए भी नजीर बन गई। इसीलिए अनेक बार राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्रों में मतदाताओं से वायदा भी करते हैं कि वे सत्ता में आने पर राम राज्य जैसी व्यवस्था लागू करेंगे। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने अपने हिंद स्वराज में राम राज्य का वायदा किया था। यह अलग बात है कि उनके उत्तराधिकारी ने उसकी स्थापना की बात तो दूर, उसे आदर्श के रूप में भी स्वीकार नहीं किया। लेकिन प्रश्न फिर भी अनुत्तरित है, यदि कोई भारतीय अपने पुरखे श्री रामचंद्र जी को स्मरण करता है, उसकी आरती उतारता है, मुल्ला मौलवी उसकी गर्दन क्यों काट लेना चाहते हैं? सैयद मुल्ला मौलवियों का तर्क है कि जो भारतीय ईश्वर की पूजा के लिए नमाज पद्धति का प्रयोग करते हैं, वे अपने पुरखों का स्मरण नहीं कर सकते…

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में पांच अगस्त का दिन वहां की दो भारतीय लड़कियों पर भारी पड़ा। इन लड़कियों ने उस दिन अपने घर में दशरथनंदन श्री रामचंद्र जी की आरती की थी। इन लड़कियों के लिए यह बिलकुल साधारण बात थी। दोनों लड़कियां आस्तिक थीं। यानी वे ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करती थीं। ईश्वर या अल्लाह की वे पूजा, जिसे अरबी-फारसी में इबादत कहते हैं, भी करती ही हैं। पूजा के लिए वे नमाज पढ़ती हैं, लेकिन शहर में कुछ मुल्लाओं को इस बात की खबर मिली कि दोनों बहनों ने श्री रामचंद्र जी की आरती भी अपने घर में की है। उसके बाद शहर भर में पोस्टर चस्पां कर दिए गए।

इन पोस्टरों में दोनों बहनों को जान से मार देने की धमकियां दी गई थीं। लड़कियां हैरान हैं कि उन्होंने क्या अपराध किया है, जिसके लिए मुल्ला मौलवी उनकी हत्या करना चाहते हैं। मामला पुलिस तक पहुंच गया है। हो सकता है पुलिस उन्हें सुरक्षा भी प्रदान करे। लेकिन सैयदों मौलवियों की इस प्रकार की धमकियों के पीछे क्या कारण है? क्या कोई भारतीय जो अल्लाह की इबादत करता है, वह अपने पूर्वज रामचंद्र के आगे माथा नहीं टेक सकता? यह कारण जानने के लिए श्री रामचंद्र जी के इतिहास को जान लेना जरूरी है।  अयोध्या नरेश श्री दशरथ के चार पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र श्री रामचंद्र थे। यह परिवार इक्ष्वाकु  वंश से ताल्लुक रखता था। अयोध्या के इस साम्राज्य के उत्थान-पतन की लंबी कहानी है। लेकिन श्री रामचंद्र की शासन व्यवस्था इतनी उत्तम थी कि उनकी राज्य व्यवस्था भविष्य के शासकों के लिए भी नजीर बन गई।

इसीलिए अनेक बार राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्रों में मतदाताओं से वायदा भी करते हैं कि वे सत्ता में आने पर राम राज्य जैसी व्यवस्था लागू करेंगे। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने अपने हिंद स्वराज में राम राज्य का वायदा किया था। यह अलग बात है कि उनके उत्तराधिकारी ने उसकी स्थापना की बात तो दूर, उसे आदर्श के रूप में भी स्वीकार नहीं किया। लेकिन प्रश्न फिर भी अनुत्तरित है, यदि कोई भारतीय अपने पुरखे श्री रामचंद्र जी को स्मरण करता है, उसकी आरती उतारता है, मुल्ला मौलवी उसकी गर्दन क्यों काट लेना चाहते हैं? सैयद मुल्ला मौलवियों का तर्क है कि जो भारतीय ईश्वर की पूजा के लिए नमाज पद्धति का प्रयोग करते हैं, वे अपने पुरखों का स्मरण नहीं कर सकते।

हिंदुस्तान में ईश्वर की पूजा करने के हजारों तरीके हैं। जो लोग हिंदुस्तान के इतिहास और संस्कृति से वाकिफ हैं, वे इसे अच्छी तरह जानते हैं। ईश्वर के हजारों नामों में से अल्लाह, खुदा, रब्ब भी शामिल हैं। हिंदुस्तानी यह बेहतर जानते हैं कि कोई भी नाम इस्तेमाल करो, इबादत पहुंचती एक ही जगह है। लेकिन सैयद मौलवी कहते हैं कि नमाज के माध्यम से ईश्वर की इबादत अरबी तरीका है। जिन भारतीयों ने पूजा-इबादत का यह तरीका चुन लिया है, अब वे रामचंद्र की आरती नहीं उतार सकते। इसका अर्थ यह हुआ कि जिन भारतीयों ने ईश्वर को अल्लाह कहना शुरू कर दिया है और ईश्वर की पूजा के लिए नमाज पढ़ना चुन लिया है, वे अपने पुरखों का स्मरण नहीं कर सकते। इन दोनों बहनों ने यही गुनाह किया है। वे ईश्वर को अल्लाह भी कहती हैं और अपने पुरखे श्री रामचंद्र के आगे माथा भी टेकती हैं।

मौलवियों की निगाह में उनका यह गुनाह माफी के काबिल नहीं है। शायद इसीलिए अलीगढ़ में इन दोनों बहनों को मारने का फतवा जारी कर दिया है। सैयद मौलवियों का शायद इसमें ज्यादा दोष नहीं है।  अरब, मुगल, तुर्क मूल के इन मुल्ला  मौलवियों के पुरखा श्री रामचंद्र जी नहीं हैं।

यह ठीक है कि ये मुल्ला मौलवी शताब्दियों से  भारत में रह रहे हैं, लेकिन केवल रहने भर से रामचंद्र उनके पुरखे तो नहीं हो जाएंगे। हिंदुस्तान में रह रहे किसी गिलानी, हमदानी, बुखारी, सैयद को यदि कहा जाए तो कुछ शताब्दियां पहले उनके पुरखे अरब और मध्य एशिया में मिल जाएंगे।

इसलिए ये रामचंद्र को अपना पुरखा कैसे मान लें? लेकिन हिंदुस्तानी मुसलमानों के पुरखे तो रामचंद्र हैं ही। मोहम्मद इकबाल ने तभी श्री रामचंद्र जी को इमामे हिंद कहा था। लेकिन ध्यान रखना होगा मोहम्मद इकबाल कश्मीरी पंडित थे, वे सैयद या गिलानी या बुखारी नहीं थे। लेकिन एक बात का ध्यान रखना होगा कि सैयद रामचंद्र जी को अपना पुरखा न मानें, क्योंकि वे उनके पुरखे थे भी नहीं, लेकिन उनको उन हिंदुस्तानियों की गर्दन काट लेने की धमकी देने का भी अधिकार नहीं है जो ईश्वर को अल्लाह भी कहते हैं और अपने पुरखे रामचंद्र जी की आरती भी उतारते हैं। आखिर मुल्ला मौलवियों ने ईश्वर के किसी विशेष नाम और नमाज़ का पेटेंट तो नहीं करवाया हुआ है। यह प्रश्न अलीगढ़ की केवल इन्हीं दो बहनों का नहीं है, बल्कि हिंदुस्तान के उन तमाम मुसलमानों का है जिनके पूर्वज मुगल काल में मतांतरित हो गए थे। यह मात्र कट्टरपन का उदाहरण है।

भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है, यहां इस तरह की कट्टरता को स्थान नहीं मिलना चाहिए। इस तरह की कट्टरता ही हिंदू-मुसलमानों के बीच नफरत फैलाती है। इसलिए भारतीय मुसलमानों को स्वयं आगे आकर इस तरह के कट्टरवाद का विरोध करना चाहिए। कट्टरवादी ताकतों के इरादे पूरे नहीं होने चाहिए। भारत में हिंदू-मुसलमान मिलजुल कर रहते हैं।

उनके बीच नफरत फैलाने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है। इस तरह की कट्टरवादी सोच रखने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। वास्तव में सभी भारतीय परंपरागत रूप से हिंदू ही हैं। कुछ लोगों के पूर्वज मुगल काल में मतांतरित हो गए थे। अब इन लोगों को अपने पुरखे की पूजा का अधिकार तो होना ही चाहिए। इस हक को कोई छीन नहीं सकता है।

 ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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