सांस्कृतिक मूल्यों को समृद्ध करता रक्षासूत्र: बंडारू दत्तात्रेय, राज्यपाल, हि. प्र.

By: Aug 3rd, 2020 12:07 am

बंडारू दत्तात्रेय

राज्यपाल, हि. प्र.

बड़ी हैरानी की बात है कि जहां एक ओर पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रही है, वहीं महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, अत्याचार व अपराध नहीं रुके हैं। हालांकि, भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के पूर्ण प्रयास किए गए हैं। कानून की ऐसी धाराएं हैं जो उनके प्रति अपराध को रोकने के लिए लागू की गई हैं। महिला सुरक्षा कानूनों को लागू करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें अपने स्तर पर प्रयासरत हैं। बावजूद इसके, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध चिंता का विषय हैं…

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा, सभ्यता व सामाजिक समरसता से जुड़े हैं हमारे त्योहार। इन त्योहारों के पीछे छिपा संदेश ही समाज में नया उत्साह व खुशियों का रस भरते हैं। इनके माध्यम से समाज को जोड़ने की परंपरा पुरातन है, इसलिए आज भी ये त्योहार पारिवारिक, सामाजिक व राष्ट्रीय एकता को प्रगाढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। तीन अगस्त को हम रक्षाबंधन का पर्व मना रहे हैं। मैं समस्त देशवासियों को रक्षाबंधन की बधाई देता हूं। रक्षाबंधन का पावन पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम और भाई का बहन की आजीवन रक्षा करने के संकल्प को याद करवाता है। श्रावण या सलूनो का यह पर्व रक्षासूत्र से जुड़ा है।

रानी पद्मावती से लेकर पीछे मान्यताओं पर जाएं तो इस पर्व की शुरुआत सतयुग से कही जाती है और कई कथाएं पुराणों में हैं। देवी लक्ष्मी का राजा बलि को राखी बांधना, महाभारत में द्रौपदी द्वारा अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेटना तथा युधिष्ठिर द्वारा अपने सैनिकों को रक्षासूत्र बांधना, इंद्राणी शची द्वारा इंद्रदेव को राखी बांधना इत्यादि घटनाएं रक्षासूत्र के महत्त्व को बताती हैं। इसके अलावा, एक महत्त्वपूण ऐतिहासिक संदर्भ भी रक्षाबंधन से जुड़ा है। यह संदर्भ है पराक्रमी भारतीय राजा पोरस और विश्व विजय पर निकले सिकंदर के बीच युद्ध का। रक्षासूत्र ने इस युद्ध में जहां सिकंदर के हृदय को परिवर्तित किया, वहीं उसे देश लौटने को भी मजबूर किया। इतिहासकारों के अनुसार, सिकंदर की प्रियसी रुखसाना जानती थी कि पोरस एक पराक्रमी राजा है।

उसने अपने प्रेमी की रक्षा के लिए गुप्त रूप से पोरस से भेंट कर सिकंदर के प्राणों की रक्षा के लिए राखी के पवित्र बंधन का सहारा लिया। युद्ध से पूर्व रुखसाना ने पोरस को राखी बांधकर अपना मुंहबोला भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर की प्राणभिक्षा का वचन लिया। युद्ध के दौरान ऐसी स्थिति आई जब पोरस सिकंदर की जान ले सकता था, लेकिन जैसे ही वह भाले से सिकंदर पर प्रहार करने वाला था, उसे अपनी कलाई पर बांधी राखी नजर आ गई और उसे अपना वचन याद आ गया। परिणामस्वरूप, उसने सिकंदर की जान बख्श दी। राजपूत राजाओं के युद्ध में जाते समय उनकी पत्नी उनके माथे पर कुमकुम का तिलक कर कलई पर रेशमी धागा बांधती थी।

इसके साथ उनका विश्वास जुड़ा होता था कि वे विजयश्री के साथ लौटेंगे। मतलब साफ  था, यह त्योहार मातृभूमि की रक्षा और माताओं को उनकी सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता था ताकि हमारा समाज सुखी व समृद्ध हो। यह एक संस्कार के रूप में एक परिरक्षण की योजना थी। प्रेम और भाईचारे का संदेश ही इसका आधार है। प्रेम, सद्भाव व आदर की जहां इतनी उच्च परंपरा रही हो, उस देश में महिला उत्पीड़न, अत्याचार व अपराध किसी के भी मन को व्यथित करता है। बड़ी हैरानी की बात है कि जहां एक ओर पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रही है, वहीं महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, अत्याचार व अपराध नहीं रुके हैं।

हालांकि, भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के पूर्ण प्रयास किए गए हैं। कानून की ऐसी धाराएं हैं जो उनके प्रति अपराध को रोकने के लिए लागू की गई हैं। महिला सुरक्षा कानूनों को लागू करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें अपने स्तर पर प्रयासरत हैं। बावजूद इसके, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध चिंता का विषय हैं और हैरानी तब होती है जब हम कोरोना के दौर में भी अपराध को देखते हैं। ऐसे में यह विचार जरूर पैदा होता है कि जिस देश में मातृ शक्ति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, वहां इन अपराधों के चलते इनकी रक्षा कौन करेगा? यदि आचरण में भेदभाव हो तो विचार की उच्चता भी मायने नहीं रखती है। समाज में असमानता, वर्ण भेद, छुआछूत, ऊंच-नीच, जातिवाद एवं मजहब के नाम पर भेदभाव इत्यादि समाज को उन्नत नहीं बनाते हैं। यह वह देश है जहां चींटियों को भी गुड़ और पक्षियों को दाना देकर उनका ध्यान रखा जाता है।

फिर यह बुराई कहां स्थान रखती है? सामाजिक समरसता का संदेश हमारे पुरातन धार्मिक ग्रंथों के रचनाकारों से मिलता है, जो एक सामान्य वर्ग से थे। आजादी के बाद भी प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल जैसी महान विभूतियों के बावजूद संविधान को लिखने का जिम्मा एक साधारण कुल के डा. भीमराव अंबेडकर को दिया गया। आज समाज में फैली भेदभाव की कुरीति को दूर करने की आवश्यकता है और रक्षाबंधन के इस पर्व पर राखी बांधकर इन सब बुराइयों को दूर करने का प्रण लें। साथ ही रक्षाबंधन का यह पर्व उन वीर सैनिकों को रक्षासूत्र बांधकर विजय कवच देना है, जो वर्षा, बर्फ  और धूप में खड़े रहकर सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं। कोरोना के हमारे जितने भी कर्मवीर हैं, उन्हें रक्षासूत्र बांधकर शुभकामनाएं देने का वक्त है क्योंकि वह भी मानवता की रक्षा में समर्पित हैं।


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