गीता रहस्य

By: Oct 31st, 2020 12:20 am

स्वामी रामस्वरूप

भाव यह है कि यज्ञ, नाम, सिमरन एवं योगाभ्यास इसका वर्णन पहले के श्लोकों में कर दिया गया है। यह ईश्वर की उपासना/पूजा है।जीव नम्रता धारण करते हुए नित्य यह उपासना करें। केवल हाथ जोड़कर सिर झुका करके कोई कहे कि मैंने ईश्वर को नमस्कार कर लिया है, यह केवल पढ़ा, सुना, रटा ज्ञान हो जाएगा। जिसका कोई लाभ नहीं…

गतांक से आगे…

सामवेद मंत्र 14 में कहा ‘वयम धिया नमः भरतः’  कि हे प्रभु ! हम मन से नमस्कार करते हुए ‘दिवै-दिवै’ प्रतिदिन ‘दोषावस्तु’ सायंकाल एवं प्रातःकाल’ उपएयसि’ तेरी उपासना करें। भाव यह है कि यज्ञ, नाम, सिमरन एवं योगाभ्यास इसका वर्णन पहले के श्लोकों में कर दिया गया है। यह ईश्वर की उपासना/पूजा है।जीव नम्रता धारण करते हुए नित्य यह उपासना करें। केवल हाथ जोड़कर सिर झुका करके कोई कहे कि मैंने ईश्वर को नमस्कार कर लिया है, यह केवल पढ़ा, सुना, रटा ज्ञान हो जाएगा। जिसका कोई लाभ नहीं।

नमस्कार करने का भाव मंत्र 14 में स्पष्ट का दिया गया है कि नम्रता ही नमस्कार है और जब हम ईश्वर की उपासना के लिए तैयार होते हैं, तो पूर्ण रूप से नम्रता धारण करें और आसन पर बैठकर गायत्री आदि मंत्रों से ईश्वर की स्तुति में, उपासना में ध्यान लगाते हुए यज्ञ, नाम सिमरन, योगाभ्यास करें। भाव यह है कि प्रति नम्रता धारण करके हम उपासना करें। यजुर्वेद मंत्र 25/13 में कहा ‘यस्य छायाऽमृतं’ अर्थात अमृत अर्थात ईश्वर की सच्ची छाया/शरण प्राप्त कर लेना। उसका मन भी सामवेद मंत्र 197 के अनुसार जैसे नदियां समुद्र में प्रवेश कर जाती हैं वैसे मन सहित चित्त की सारी वृत्ति उस साधक की परमात्मा में लीन हो जाती है। जैसा यजुर्वेद मंत्र 37/2 में कहा कि ऐसा साधक/योगी अपने मन, आत्मा एवं कर्म को परमातमा में जोड़ देता है। जो कि वेदों में कही परमात्मा की सच्ची उपासना है और उन्हीं वेदों के मंत्रों का भाव श्रीकृष्ण महाराज ने श्लोक 9/34 में कहा ‘मतपरायणःआत्मानम युक्तवा माम एव एत्यसि। श्लोक 10/ 1 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि हे विशालबाहु वाले अर्जुन फिर भी मेरा परम वचन सुन। जो मैं तुझे प्रीति रखने वाले के लिए हित की कामना से कहूंगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App