श्रीकृष्ण स्तोत्रम

By: Oct 3rd, 2020 12:25 am

-गतांक से आगे…

संसारारण्यवीथीषु परिभ्रान्तात्मनेकधा।

पाहि मां कृपया नाथ त्वद्वियोगाधिदुःखिताम्॥ 28॥

संसाररूपी अरण्य की गलियो में अनेक रूप से विचरण करने वाले एवं आपके वियोग से दुखित, हे नाथ! आप कृपया मेरी रक्षा कीजिए॥ 28 ॥

त्वमेव मातृपित्रादिबन्धुवर्गादयश्च ये।

विद्या वित्तं कुलं शील त्वत्तो मे नास्ति किञ्चन॥ 29॥

हे कृष्ण! आप ही मेरे माता-पिता, बन्धु-बान्धव आदि सभी कुछ हैं। विद्या, धन-सम्पत्ति, कुल एवं शील आदि गुण आप ही हैं। आपको छोड़कर मेरा इस संसार में कुछ भी नहीं है॥ 29 ॥

यथा दारुमयी योषिच्चेष्टते शिल्पिशिक्षया।

अस्वतन्त्रा त्वया नाथ तथाहं विचरामि भोः॥ 30॥

जैसे लकड़ी की बनी हुई नारी-कठपुतली की भांति जैसे-जैसे डोरी से उसे चलाया जाए, चलती रहती है, उसी तरह मैं भी हे नाथ! आपके आश्रित हूं, आप जैसे मुझे प्रेरित करते हैं मैं वैसे ही विचरण करता हूं॥ 30॥

सर्वसाधनहीनां मां धर्माचारपराङ्मुखाम्।

पतितां भवपाथोधी परित्रातुं त्वमहंसि॥ 31॥

हे स्वामि! मैं सभी साधनों से हीन हूं तथा मैं तो धर्माचरण से भी विमुख हूं। अतः इस संसार समुद्र से उद्धार करने में आप ही समर्थ हैं॥ 31 ॥

मायाभ्रमणयन्त्रस्थामूर्ध्वाधोभयविह्वलम्।

अदृष्टनिजसकेतां पाहि नाथ दयानिधे॥ 32॥

हे स्वामि। हे दयानिधान! माया मोह में फंसे रहने से व्याकुल, यन्त्रस्य के समान ऊपर नीचे दोनों ओर घूमने वाले तथा भय से व्याकुल मुझ निरुद्देश्य चक्कर काटने वाले की रक्षा कीजिए॥ 32 ॥

अनर्थेऽर्थदृशं मूढां विश्वस्तां भयदस्थले।

जागृतव्ये शयानां मामुद्धरस्व दयापरः॥ 33॥

अनर्थ परम्परा में ही दृष्टिपात करने वाले मूढ़ और भयदायी विषयों में ही विश्वास रखने वाले और जागने वालों में सोने वाले मेरा, हे दयावान प्रभु! उद्धार कीजिए॥ 33 ॥

अतीतानागत भवसन्तानविवशान्तराम्।

बिभेमि विमुखी भूय त्वत्तः कमललोचन॥ 34॥

हे कमलनयन! मैं अतीत एवं अनागत (भूत एवं भविष्य) में होने वाली दुःख परम्परा में पड़कर विवश हुआ मैं आपसे विमुख होकर भयग्रस्त हूं॥ 34॥


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App