तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Nov 7th, 2020 12:20 am

उसने मुझे घूरकर देखा- ‘तो क्या तुम भी…।’ मैं मुस्करा उठा। मैंने अपने हाथ से कुछ विशेष तांत्रिक मुद्रा का प्रदर्शन किया जो एक तांत्रिक दूसरे तांत्रिक को अपना परिचय देते समय करता है। उसका चेहरा तनाव रहित हो गया। सामान्य हो गई वह, मां काली के पास अपने आसन पर बैठ गई वह। वह इतनी सुगठित कंचन काया और वह भी आवरणहीन…

-गतांक से आगे…

एक पल के लिए करंट-सा मार गया मुझे, पर मैंने अपना साहस न गंवाया। वह तमतमाई- ‘तु…तुम कौन हो? यहां झांकने की हिम्मत कैसे की?’ ‘मां काली के दर्शन करने आ गया।’ मैंने बात बदलनी चाही। ‘यहां का रास्ता किसने बताया?’ वह गुर्राई। ‘राजेश ने…।’ वह चौंक गई। ‘राजेश ने… राजेश कैसे बता सकता है?’ वह सकपकाई। ‘उसी ने बतलाया है। मैं जानता हूं कि कैसे उससे पता लगाया जा सकता है।’ मैंने साहस बटोरकर कहा। उसने मुझे घूरकर देखा- ‘तो क्या तुम भी…।’ मैं मुस्करा उठा। मैंने अपने हाथ से कुछ विशेष तांत्रिक मुद्रा का प्रदर्शन किया जो एक तांत्रिक दूसरे तांत्रिक को अपना परिचय देते समय करता है। उसका चेहरा तनाव रहित हो गया। सामान्य हो गई वह, मां काली के पास अपने आसन पर बैठ गई वह। वह इतनी सुगठित कंचन काया और वह भी आवरणहीन, खुदा भी हो तो बहक जाए, आदमी क्या है। मेरी निगाहें उसके अंग-प्रत्यंग पर फिसलने लगीं, पर वासना से नहीं, वरन उस साधना की तलाश में, जिसके कारण वह इस प्रकार अद्वितीय हो गई थी। ‘आखिर, तुमने मेरा पता लगा ही लिया।’ ‘मैंने नहीं, मां काली की कृपा ने।’ वह हंस पड़ी। उसकी हंसी बड़ी मादक, बड़ी चंचल थी। ‘तुम तो सौम्य शाखा के हो?’ ‘हां…।’ मैंने सिर हिलाया। ‘मैं वामाचारिणी…खैर। क्या चाहते हो?’ ‘जानकर भी अंजान…।’ मैं मुस्कराया। वह फिर हंस पड़ी। एकाएक उसका चेहरा गंभीर हो गया। वह बोली- ‘प्रथम तो राजेश ने अपनी पत्नी पर बेतरह जुल्म किया, उसे अकाल मृत्यु देकर प्रेत योनि में झोंक दिया और जब वह प्रेत योनि में भी उसे न छोड़ सकी तो अनेक तांत्रिकों, ओझाओं को बुलाकर उसे दुखी किया।

 कुछ तांत्रिक प्रेत योनियों को अनावश्यक रूप में तंग करते हैं और उनको शक्तिहीन कर देते हैं। ऐसे अन्याय के खिलाफ ही मैं वामाचारिणी बनी हूं। उनको अतिरिक्त शक्ति देती हूं ताकि तांत्रिकों की एक न चले। बोलो क्या दोष है? बोलो।’ कहते-कहते आवेश में उसका चेहरा लाल हो गया। ‘दोष उसका तो नहीं है।’ ‘तब राजेश को अपनी करनी का फल भोगने दो। रोकते क्यों हो। वामाचारिणी के कारण मैं केवल ऐसे प्रेतों का ही समर्थन करती हूं, जिनके साथ अन्याय होता है।’ ‘आप ठीक करती हैं, पर किसी एक को क्षमा तो किया जा सकता है?’ वह मुस्कराई- ‘बड़े चालाक हो।’ मेरा आशय उसने समझ लिया था। फिर बोली- ‘ठीक है, राजेश ठीक हो जाएगा। तुम्हारी हिम्मत और तर्क पर मुग्ध हूं मैं।’ ‘आपका परिचय।’ मैंने जानना चाहा। ‘मैं श्यामली हूं। कायाकल्प कर मैं इस रूप में आ गई। प्रेतगणों के हितों की रक्षा के लिए गुरुदेव ने मुझे वामाचारिणी बना दिया।’ सपने में भी न सोचा था कि अतीत की भैरवी, श्यामली इस रूप में मिलेगी। वामाचारिणी की कृपा से अब राजेश बिल्कुल ठीक है।


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