विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Nov 14th, 2020 12:20 am

भेडि़ये ने अपनी प्रेम की पीड़ा शांत करने के लिए दूसरे जीवों की ओर दृष्टि डाली। कुत्ता, भेडि़ये का नंबर एक का शत्रु होता है, पर आत्मा किसका मित्र, किसका शत्रु? क्या तो वह कुत्ता- क्या संसार जान जाए, तो फिर क्यों लोगों में झगड़े हों, क्यों मन-मुटाव, दंगे-फसाद, भेदभाव, उत्पीड़न और एक-दूसरे से घृणा हो। विपरीत परिस्थितियों में भी प्रेम जैसे स्वर्गीय सुख की अनुभूति आत्मदर्शी के लिए ही संभव है। इस घटना का सार-संक्षेप भी यही है…

-गतांक से आगे…

कुछ ऐसा हुआ कि एक बार उन सज्जन को किसी काम से बाहर जाना पड़ गया। वह भेडि़या एक चिडि़याघर को दे गए। भेडि़या चिडि़याघर तो आ गया, पर अपने मित्र की याद में दुखी रहने लगा। मनुष्य का जन्मजात बैरी मनुष्य के प्रेम के लिए पीडि़त हो यह देखकर चिडि़याघर के कर्मचारी बड़े विस्मित हुए। कोई भारतीय दार्शनिक उनके पास होता और आत्मा की सार्वभौमिक एकता का तत्त्वदर्शन उन्हें समझता तो संभव था, ये भी जीवन को एक नई आध्यात्मिक दिशा में मोड़ने में समर्थ होते, उनका विस्मय चर्चा का विषय भर बनकर रह गया। भेडि़ये ने अपनी प्रेम की पीड़ा शांत करने के लिए दूसरे जीवों की ओर दृष्टि डाली। कुत्ता, भेडि़ये का नंबर एक का शत्रु होता है, पर आत्मा किसका मित्र, किसका शत्रु? क्या तो वह कुत्ता- क्या संसार जान जाए, तो फिर क्यों लोगों में झगड़े हों, क्यों मन-मुटाव, दंगे-फसाद, भेदभाव, उत्पीड़न और एक-दूसरे से घृणा हो। विपरीत परिस्थितियों में भी प्रेम जैसे स्वर्गीय सुख की अनुभूति आत्मदर्शी के लिए ही संभव है। इस घटना का सार-संक्षेप भी यही है। भेडि़या अब कुत्ते का प्रेमी बन गया, उसके बीमार जीवन में भी एक नई चेतना आ गई। प्रेमी की शक्ति कितनी वरदायक है कि वह निर्बल और अशक्तों में भी प्राण की गंगोत्री पैदा कर देती है। दो वर्ष पीछे मालिक लौटा।

 घर आकर वह चिडि़याघर गया। अभी वह वहां के अधिकारी से बातचीत कर ही रहा था कि उसका स्वर सुनकर भेडि़या भागा चला आया और उसके शरीर से शरीर जोड़कर खूब प्यार जताता रहा। कुछ दिन फिर ऐसे ही मैत्रीपूर्ण जीवन बीता। कुछ दिन बाद उसे फिर जाना पड़ा। भेडि़ये के जीवन में लगता है भटकाव ही लिखा था, फिर उस कुत्ते के पास जाकर उसने अपनी पीड़ा शांत की। इस बार मालिक थोड़ा जल्दी आ गया। भेडि़या इस बार उससे दूने उत्साह से मिला, पर उसका स्वर शिकायत भरा था। बेचारे को क्या पता था कि मनुष्य ने अपनी जिंदगी ऐसी व्यस्त जटिल सांसारिकता से जकड़ दी है कि उसे आत्मीय भावनाओं की ओर दृष्टिपात और हृदयंगम करने की कभी सूझती ही नहीं। मनुष्य की यह कमजोरी दूर हो गई होती, तो आज संसार कितना सुखी और स्वर्गीय परिस्थितियों से आच्छादित दिखाई देता।

 (यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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