किसी अजूबे से कम नहीं हैं

By: Dec 5th, 2020 12:14 am

रामायण के पात्र

वन में जाने से पहले सीता जी की रक्षा के लिए लक्ष्मण जी ने अपने बाण से एक रेखा खींची तथा सीता जी से निवेदन किया कि वे किसी भी परिस्थिति में इस रेखा का उल्लंघन नहीं करें, यह रेखा मंत्र के उच्चारणपूर्वक खिंची गई है, इसलिए इस रेखा को लांघ कर कोई भी इसके अंदर नहीं आ पाएगा। लक्ष्मण जी ने देवी सीता की रक्षा के लिए जो अभिमंत्रित रेखा अपने बाण के द्वारा खिंची थी, वह लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है…

-गतांक से आगे…

सीता जी का अपहरण

वनवास के समय रावण ने सीता जी का हरण किया था। रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था। रामायण के अनुसार जब राम, सीता और लक्ष्मण कुटिया में थे, तब एक स्वर्णिम हिरण की वाणी सुनकर पर्णकुटी के निकट उस स्वर्ण मृग को देखकर देवी सीता व्याकुल हो गईं। देवी सीता ने जैसे ही उस सुंदर हिरण को पकड़ना चाहा, वह हिरण या मृग घनघोर वन की ओर भाग गया। वास्तविकता में यह असुरों द्वारा किया जा रहा एक षड्यंत्र था ताकि देवी सीता का अपहरण हो सके। वह स्वर्णमृग या सुनहरा हिरण राक्षसराज रावण का मामा मारीच था। उसने रावण के कहने पर ही सुनहरे हिरण का रूप धारण किया था ताकि वह योजना अनुसार राम-लक्ष्मण को सीता जी से दूर कर सकें और सीता जी का अपहरण हो सके।

उधर षड्यंत्र से अनजान सीता जी उसे देख कर मोहित हो गईं और रामचंद्र जी से उस स्वर्ण हिरण को जीवित एवं सुरक्षित पकड़ने का अनुरोध किया ताकि उस अद्भुत सुंदर हिरण को अयोध्या लौटने पर वहां ले जाकर पाल सकें। रामचंद्र जी अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पड़े और लक्ष्मण जी से सीता की रक्षा करने को कहा। कपटी मारीच राम जी को बहुत दूर ले गया। श्री राम को दूर ले जाकर मारीच ने जोर से ‘हे सीता! हे लक्ष्मण!’ की आवाज लगानी प्रारंभ कर दी ताकि उस आवाज को सुन कर सीता जी चिंतित हो जाएं और लक्ष्मण को राम के पास जाने को कहें जिससे रावण सीता जी का हरण सरलतापूर्वक कर सके। इस प्रकार छल या धोखे का अनुमान लगते ही अवसर पाकर श्री राम ने तीर चलाया और उस स्वर्णिम हिरण का रूप धरे राक्षस मारीच का वध कर दिया। दूसरी ओर सीता जी मारीच द्वारा लगाए अपने तथा लक्ष्मण के नाम के ध्वनियों को सुन कर अत्यंत चिंतित हो गईं तथा किसी प्रकार की अनहोनी को समीप जानकर लक्ष्मण जी को श्री राम के पास जाने को कहने लगीं। लक्ष्मण जी राक्षसों के छल-कपट को समझते थे, इसलिए लक्ष्मण जी देवी सीता को असुरक्षित अकेला छोड़कर जाना नहीं चाहते थे, पर देवी सीता द्वारा बलपूर्वक अनुरोध करने पर लक्ष्मण जी अपनी भाभी की बातों को अस्वीकार नहीं कर सके। वन में जाने से पहले सीता जी की रक्षा के लिए लक्ष्मण जी ने अपने बाण से एक रेखा खींची तथा सीता जी से निवेदन किया कि वे किसी भी परिस्थिति में इस रेखा का उल्लंघन नहीं करें, यह रेखा मंत्र के उच्चारणपूर्वक खिंची गई है, इसलिए इस रेखा को लांघ कर कोई भी इसके अंदर नहीं आ पाएगा। लक्ष्मण जी ने देवी सीता की रक्षा के लिए जो अभिमंत्रित रेखा अपने बाण के द्वारा खिंची थी, वह लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है। लक्ष्मण जी के घोर वन में प्रवेश करते ही तथा देवी सीता को अकेला पाकर पहले से षड्यंत्र पूर्वक घात लगाकर बैठे रावण को सीता जी के अपहरण का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया।

रावण शीघ्र ही राम-लक्ष्मण-सीता के निवास स्थान उस पर्णकुटी या कुटिया में, जहां परिस्थितिवश देवी सीता इस समय अकेली थीं, आ गया। उसने साधु का वेष धारण कर रखा था। पहले तो उसने उस सुरक्षित कुटिया में सीधे घुसने का प्रयास किया, लेकिन लक्ष्मण रेखा खिंचे होने के कारण वह कुटिया के अंदर जहां देवी सीता विद्यमान थीं, नहीं घुस सका। तब उसने दूसरा उपाय अपनाया। साधु का वेष तो उसने धारण किया हुआ ही था, सो वह कुटिया के बाहरी द्वार पर खड़े होकर ‘भिक्षां देही-भिक्षां देही’ का उद्घोष करने लगा। इस वाणी को सुन कर देवी सीता कुटिया के बाहर निकलीं (लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन किए बिना)। द्वार पर साधु को आया देख कर वह कुटिया की चौखट से ही (लक्ष्मण रेखा के भीतर से ही) उसे अन्न-फल आदि का दान देने लगीं। तब धूर्त रावण ने सीता जी को लक्ष्मण रेखा से बाहर लाने के लिए स्वयं के भूखे-प्यासे होने की बात बोल कर भोजन की मांग की।

                                        -क्रमशः


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