बैंकों की सुनहरी तस्वीर का सच: डा. भरत झुनझुनवाला, आर्थिक विश्लेषक

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

वास्तव में देश की अर्थव्यवस्था दो भागों में विभक्त हो गई है। एक हिस्सा सार्वजनिक इकाइयों और बड़ी कंपनियों एवं इनके कर्मचारियों का है जो सुदृढ़ है। इस हिस्से को ही हमारे बैंक ऋण दे रहे हैं। मेरी गणना के अनुसार देश की 133 करोड़ जनता में से 10 करोड़ ही इस हिस्से में आते होंगे। इनके अतिरिक्त जो 123 करोड़ देश के नागरिक हैं, उनकी परिस्थिति कठिन है, जैसा कि दुकानदारों आदि के वक्तव्यों से ऊपर बताया गया है। इन्हें ही हमारी बैंकिंग व्यवस्था ऋण भी कम ही दे रही है। यानी बैंकों की सुदृढ़ता इसलिए है कि वे आम आदमी और देश कीजनता को ऋण दे ही नहीं रहे हैं। उनका कार्य क्षेत्र बड़ी कंपनियों व सरकारी कर्मियों तक सिमट कर रह गया है…

संपूर्ण विश्व के बैंक आज संकट में हैं। अमरीका के बैंकों के लाभ जून में ही 30 प्रतिशत गिर गए थे। आज इनकी स्थिति ज्यादा कठिन है। कई विद्वानों का मानना है कि संपूर्ण वैश्विक बैंकिंग व्यवस्था पर संकट आ सकता है। इसके विपरीत भारत के बैंक, विशेषकर सार्वजनिक बैंक, बहुत ही सुदृढ़ दिख रहे हैं। इनके लाभ उत्तरोत्तर बढ़ रहे हैं और इन पर किसी प्रकार का संकट नहीं दिखता है। बैंकों की इस सुदृढ़ता पर संदेह उठता है क्योंकि जमीनी स्तर पर ऋण लेने वालों की स्थिति अच्छी नहीं दिखती है। उत्तराखंड के एक दुकानदार ने बताया कि कोचिंग और प्राइवेट स्कूलों का कारोबार लगभग शून्यप्राय हो गया है। दूसरे ने बताया कि उद्यमियों ने लोन लेते समय जो पोस्ट डेटेड चेक दे रखे थे, उनका भी भुगतान वे नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी आय में गिरावट आ गई है।

तीसरे ने बताया कि कुछ व्यापारी अपने व्यक्तिगत खर्चों में कटौती करके बैंकों से लिए गए ऋण का भुगतान कर रहे हैं क्योंकि सरकार ने इस समय बैंकों के ऋण की अदायगी पर सख्ती कर रखी है। वे झंझट नहीं मोल लेना चाहते हैं। एक छोटे चार्टर्ड एकाउंटेंट ने बताया कि पूर्व में जो छोटे व्यापारी जीएसटी रिटर्न भरने के लिए 1000 रुपए की फीस अदा करते थे, वे आज 600 से 700 रुपया ही दे रहे हैं क्योंकि उनके पास आय नहीं है। वैश्विक मूल्यांकनों के अनुसार भारत का जीडीपी पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 7 प्रतिशत कम रहेगा। अतः प्रश्न यह है कि इस जमीनी दबाव के बावजूद हमारे बैंक इतने सुदृढ़ कैसे दिख रहे हैं। विषय की तह में जाने के लिए हमें अपने बैंकों के द्वारा दिए गए ऋणों की तह में जाना होगा। एक रपट के अनुसार हमारे बैंकों द्वारा दिए गए कुल ऋण में बड़ी कंपनियों का हिस्सा 33 प्रतिशत, विदेशी कंपनियों का 13 प्रतिशत और कृषि का 9 प्रतिशत हिस्सा है। ये तीनों क्षेत्र मूल रूप से सुदृढ़ हैं। इसलिए इन्हें दिए गए ये 55 प्रतिशत ऋण सुदृढ़ होंगे, ऐसा हम मान सकते हैं। शेष 45 प्रतिशत में 33 प्रतिशत रिटेल को एवं 12 प्रतिशत ऋण छोटे उद्योगों को दिए गये हैं।

 इनकी सुदृढ़ता पर विचार करना होगा। रिटेल क्षेत्र में दिए गए ऋण का एक हिस्सा वाहनों के लिए है। इसमें 80 प्रतिशत सरकारी कर्मियों अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को दिए गए हैं। रिटेल का दूसरा हिस्सा पर्सनल लोन यानी व्यक्तिगत लोन है। इसमें 94 प्रतिशत सरकारी अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को दिए गए हैं। तीसरा हिस्सा प्रापर्टी का है जिसमें 50 प्रतिशत ऋण सरकारी अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को और 20 प्रतिशत ऋण बड़ी कंपनियों के कर्मियों को दिए गए हैं। इस प्रकार बैंकों के द्वारा रिटेल क्षेत्र में दिए गए ऋण में से 81 प्रतिशत ऋण सरकारी अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों अथवा बड़ी कंपनियों के कर्मियों को दिए गए हैं। इन्हें हम सुदृढ़ मान सकते हैं। लेकिन इस सुदृढ़ता का रहस्य यह है कि ये लोग मूल अर्थव्यवस्था के बाहर हैं। टैक्सी चालक की टैक्सी चले या न चले, ट्रांसपोर्ट ऑफिसर द्वारा लिए गए ऋण की अदायगी हो ही जाएगी, चूंकि उसके वेतन सुरक्षित हैं। हमारे बैंकों द्वारा दिए गए शेष 12 प्रतिशत ऋण छोटी इकाइयों को दिए गए हैं। इनमें भी संकट नहीं दिखता है जिसके तीन कारण हमें ध्यान में रखने होंगे। पहला यह कि कोविड संकट के दौरान सरकार ने बैंकों को लोन के रिपेमेंट को स्थगित करने को कहा था जिसे ‘मोरिटोरियम’ कहा जाता है। इसलिए छोटी इकाइयों पर रिपेमेंट का बोझ तत्काल नहीं पड़ा है।

दूसरा कारण यह कि कोविड संकट के चलते सरकार ने बैंकों को कहा था कि लिए गए ऋण की अदायगी की मियाद को आगे बढ़ा दें जिसे ‘रीशेड्यूल’ कहा जाता है। लोन रीशेड्यूल होने के कारण फिलहाल छोटे उद्योगों को रीपेमेंट नहीं करना पड़ा है और बैंकों पर अभी संकट नहीं आया है। तीसरा कारण यह है कि सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपए की योजना बनाई है जिसके अंतर्गत बैंकों द्वारा छोटे उद्योगों को दिए गए अतिरिक्त ऋण की गारंटी केंद्र सरकार ने ली है। इस योजना के अंतर्गत छोटे उद्योगों द्वारा जो ऋण लिए जा रहे हैं, उसका एक हिस्सा वे पूर्व में बैंकों से लिए गए ऋण की अदायगी के लिए कर रहे हो सकते हैं, जिसके कारण तत्काल उन पर और उन्हें ऋण देने वाले बैंकों पर संकट नहीं आ पड़ा है। यानी इस क्षेत्र कि सुदृढ़ता वर्तमान देनदारी को पीछे हटाने के कारण दिख रही है। समग्रता से अवलोकन करें तो हमारे बैंकों द्वारा 55 प्रतिशत ऋण बड़ी कंपनियों, विदेशी कंपनियों और कृषि क्षेत्र को दिए गए जो सुदृढ़ हैं। इनके द्वारा 33 प्रतिशत ऋण जो रिटेल को दिए गए, वह मूलतः सरकारी एवं सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को दिए गए हैं, इसलिए ये सुदृढ़ हैं। छोटी इकाइयों को जो 12 प्रतिशत ऋण दिए गए, उन पर तत्काल संकट नहीं दिखता है क्योंकि इन्हें मोरिटोरियम आदि के माध्यम से तात्कालिक राहत दे दी गई है। लेकिन बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की इस वर्तमान स्थिरता का यह अर्थ नहीं है कि हमारी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ है और आगे भी इन ऋणों की स्थिति स्थिर बनी रहेगी।

वास्तव में देश की अर्थव्यवस्था दो भागों में विभक्त हो गई है। एक हिस्सा सार्वजनिक इकाइयों और बड़ी कंपनियों एवं इनके कर्मचारियों का है जो सुदृढ़ है। इस हिस्से को ही हमारे बैंक ऋण दे रहे हैं। मेरी गणना के अनुसार देश की 133 करोड़ जनता में से 10 करोड़ ही इस हिस्से में आते होंगे। इनके अतिरिक्त जो 123 करोड़ देश के नागरिक हैं, उनकी परिस्थिति कठिन है, जैसा कि दुकानदारों आदि के वक्तव्यों से ऊपर बताया गया है। इन्हें ही हमारी बैंकिंग व्यवस्था ऋण भी कम ही दे रही है। यानी बैंकों की सुदृढ़ता इसलिए है कि वे आम आदमी और देश कीजनता को ऋण दे ही नहीं रहे हैं। उनका कार्य क्षेत्र देश की समृद्ध बड़ी कंपनियों एवं सरकारी कर्मियों तक सिमट कर रह गया है। जब जनता को ऋण देंगे ही नहीं, तो संकट कहां से आएगा? बैंकों का जो राष्ट्रीयकरण 1971 में किया गया था, वह आज उलट गया है। इनका राष्ट्रीयकरण इसलिए किया गया था कि ये ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों को ऋण देंगे। आज ये उसी क्षेत्र को ऋण से वंचित कर रहे हैं। इसलिए वर्तमान में बैंकों की सुदृढ़ता वैसी ही है जैसे पानी पर तैरता तेल रंग-बिरंगी झांकी का एहसास पैदा कराता है अथवा एयरकंडीशंड रूम में बैठे हुए व्यक्ति को बाहर चलने वाली आंधी का एहसास नहीं होता है। देश की अर्थव्यवस्था मूलतः कठिनाई में है, यद्यपि बैंक सुदृढ़ हैं, चूंकि इन्हें देश की अर्थव्यवस्था से कुछ लेना-देना नहीं है और संभवतः आगे भी सुदृढ़ ही रहेंगे।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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