महात्मा गांधी पुण्यतिथि विशेष: डिस्काउंट व खादी वाले अमर बापू के नाम पाती

बापू! आज आप पढ़ने लिखने वालों के बीच, कलाकारों के बीच आप मात्र एक ‘‘वैचारिक ख़ुराक’’ बन कर रह गए हैं। आपके लिए ईश्वर, सत्य व अहिंसा एक ही थे। आपका विश्वास था कि जो व्यक्ति सत्य पर टिका है वह निश्चय ही अहिंसक होगा। परंतु आज उसी व्यक्ति की ‘‘पूछ’’ है जो सिर से पांव, तक ‘‘असत्य’’ का पुजारी है। क्या आपने ऐसे राम-राज्य की कल्पना की थी?  लोकतांत्रिक मूल्यों और भावना का क्षरण, सामाजिक-राजनीतिक जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। ऐसी विश्व व्यवस्था को देख कर आपका मन कितना दुखता होगा…

प्रिय बापू! हमारे ‘शास्त्र’ व ‘धर्म ग्रंथ’ कहते हैं कि आत्मा, अजर-अमर व अविनाशी है। इस प्रकार तो हर प्राणी अमर है, परंतु, अपके संदर्भ में ‘गोस्वामी तुलसीदास’ द्वारा ‘‘रामचरितमानस’’ के ‘बालकांड’ में वर्णित  चौपाई की यह पंक्ति मुझे सटीक जान पड़ती है – ‘‘गिरा अनयन नयन बिनु बानी’’। आपके जीवन चरित्र के अमरत्व को बखान करने वाली मेरी वाणी ‘‘नयनहीन’’ है। देश व काल की सीमाओं से परे आप हर जगह विद्यमान हैं। प्रथम सत्याग्रही के रूप में, सत्य व अहिंसा के पुजारी के रूप में, राम-राज्य व ग्राम-स्वराज के स्वप्नदृष्टा के रूप में, ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ की अवधारणा के पक्षधर के रूप में, साबरमती के संत के रूप में। ‘अल्बर्ट आइनस्टाइन’ ने सच ही कहा था कि -‘‘आने वाली पीढि़यां शायद ही कभी विश्वास कर पाएं कि हाड़-मांस का ऐसा मानव भी कभी धरती पर आया था’’। आखिर आप किस मिट्टी के बने थे कि सर्वशक्तिमान अंग्रेज़ी सत्ता भी आपसे घबराती थी। सत्य, अहिंसा व सत्याग्रह की जो शुरुआत आपने ‘दक्षिण अफ्रीका’ में की, वह आपके भारत आने पर परतंत्रता के खिलाफ देश के ‘दिशाहीन’ व ‘मृत’ आंदोलन के लिए ‘संजीवनी’ का काम कर गई। ‘चाचा नेहरू’ ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ  इंडिया’ में वर्णन किया है कि आपका आना एक सुखद ‘‘ठंडी बयार की तरह था’’।

आप मर कैसे सकते हैं, क्योंकि मानव जीवन में जो भी कुछ ‘अच्छा’ व ‘आदर्शमयी’ संभव हो सकता है, वह सब आप में ‘समाहित’ था। सत्य, अहिंसा, अस्वाद, अपरिगृह, अस्तेय इत्यादि जो बातें किताबों में लिखी मिलती थीं, उन्हें आपने मूर्तरूप में अपने जीवन का अंग बनाया। परंतु दुख है कि जिस ‘‘गांधी’’ के मूल्यों और दर्शन को आज पूरी दुनिया स्वीकार कर रही है, हमारे जीवन से वे मूल्य गायब हो रहे हैं। आज गांधी ‘‘सर्व-सुलभ’’ हैं, व ‘‘सबके’’ ‘‘काम’’ आते हैं। मज़बूरी का नाम आज ‘‘महात्मा गांधी’’ बन गया है। बापू! आपके नाम का आज इतना प्रचार है कि यदि आप भी स्वर्ग से आकर देखें तो पाएंगे कि ‘‘गांधी युग’’ तो अब ही आया है। आज आप एक ‘‘आवश्यक मज़बूरी’’ बन कर रह गए हैं। क्योंकि बाहरी तौर पर सब गांधीगिरी का डंका बजाते हैं, पर जीवन में  आपके मूल्यों को कोई उतारना नहीं चाहता। आज हर जगह आपकी ‘‘बहार’’ है। शहर के पार्कों में व चौराहों पर आप खड़े हैं। स्वच्छ भारत के आपके विज्ञापनों से पटे अखबारों के टुकड़े कूड़ेदानों व नालियों में पड़े मिलते हैं। आपके कथनों के बड़े -बडे़ बोर्ड स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों, हवाई अड्डों, बस स्टेशनों व रेलवे स्टेशनों पर शोभायमान हैं। आपने कहा था कि ‘‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’’। आपका ‘‘खादी-ग्रामोद्योग’’, कपड़ा बनाने और पापड़ बेलने के लिए नहीं था बल्कि वह ‘‘पूंजी’’ और सत्ता की ‘‘दुरभिसंधि’’ को काटने की युक्ति थी। आपको अमर किया उस ग्रामस्वराज के चिंतन ने, जहां की व्यवस्था अपने आप में ‘‘सर्वसाधन संपन्न’’ थी। परंतु आपका वही ‘‘गांव’’ आज हमें शहरों के ‘‘उच्छिष्ट’’ के रूप में हर जगह दिखाई देता है। हमारे आज के नगर, महानगर हमारी मानसिक, शारीरिक व आत्मिक विकृति के नमूने बन गए हैं। आज ‘‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’’ वाली कहावत हर तरफ चरितार्थ हो रही है। हमारे बड़े-बड़े महानगर दमघोटू विषाक्त गैस चैंबर बन गए हैं। आगे बढ़ने की अंधी होड़ में हम अपनों की ही लाशों  पर आशियाना बनाने से भी गुरेज़ नहीं कर रहे हैं। आज कैसा ‘‘राष्ट्रवाद’’ आ गया है कि भारत की 73 फीसदी जीडीपी लगभग एक फीसदी लोगों के हाथ में है। दुनिया की आधी आबादी से ज्यादा की संपत्ति कुछ गिने-चुने ख़रबपतियों के पास है- मानों आपके उस आदर्श की खिल्ली  उड़ा रहा हो जो यह कहता था -‘‘कि अगर आप कभी ग़फलत में हो तो यह सोचो कि आपके इस कार्य से पंक्ति में आखिरी खड़े उस आदमी का क्या फायदा हो सकता है तो आपकी सारी दुविधा मिट जाएगी।’’

बापू! आज आप पढ़ने लिखने वालों के बीच, कलाकारों के बीच आप मात्र एक ‘‘वैचारिक ख़ुराक’’ बन कर रह गए हैं। आपके लिए ईश्वर, सत्य व अहिंसा एक ही थे। आपका विश्वास था कि जो व्यक्ति सत्य पर टिका है वह निश्चय ही अहिंसक होगा। परंतु आज उसी व्यक्ति की ‘‘पूछ’’ है जो सिर से पांव, तक ‘‘असत्य’’ का पुजारी है। क्या आपने ऐसे राम-राज्य की कल्पना की थी?  लोकतांत्रिक मूल्यों और भावना का क्षरण, सामाजिक-राजनीतिक जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। ऐसी विश्व व्यवस्था को देख कर आपका मन कितना दुखता होगा! जिन आदर्शों, मूल्यों को, जीवनपर्यन्त अंगीकार करते हुए, आप ‘‘चले’’ गए और हम आपका नाम जपते-जपते ऐसे ‘‘महापुरुषों’’ को अपना आदर्श बना बैठे, जिनके कारनामों से मानवता भी ‘‘शर्मसार’’ हो जाए। बापू! आप ‘‘शरीर’’ नहीं बल्कि एक ऐसा ‘‘शाश्वत विचार’’ हैं जो सर्वदा ‘‘अच्छा’’ व ‘‘बुरा’’ सोचने वालों के मन को ‘‘आंदोलित’’ करता रहेगा। ‘‘राम-राज्य’’ की कल्पना मानव का एक सुखद स्वप्न रहा है जिसके आप कुशल ‘‘चितेरे’’ बन कर उभरे, परंतु यह मानव मात्र का दुर्भाग्य ही है कि आज तक वह कल्पना साकार न हो सकी।


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