समस्या और समाधान

By: Jan 7th, 2021 12:08 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

लेकिन यह कैसे होगा? यह तब होगा जब हम सरकार पर निर्भर होना छोड़ेंगे, सरकार को कोसना बंद करेंगे, नौकरशाही को दोष देने के बजाय खुद को दोष देंगे, गुस्सा तो आएगा, पर दूसरों पर नहीं, बल्कि खुद पर। यह तब होगा, जब हमारा व्याकरण बदलेगा और हम कहेंगे, ‘हां, मैं करूंगा।’ हमें अपना व्याकरण बदलना होगा, ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए कहने के बजाय हम कहेंगे, ‘मैं सुनिश्चित करूंगा कि ऐसा हो’, या कम से कम हम ये कहें कि ‘मैं प्रयास करूंगा कि ऐसा हो’। हमें व्याकरण बदलने की आवश्यकता है, व्याकरण में क्रांति की आवश्यकता है। ऐसा होगा, तो सरकारें बदल जाएंगी, उनका रवैया बदल जाएगा, देश में समृद्धि होगी, कानून की व्यवस्था होगी…

अक्सर हम ऐसी खबरों से दो-चार होते हैं जहां कोई ठग किसी को नोट दोगुने करने का लालच देकर मूल राशि भी लेकर चंपत हो जाता है। चिट फंड कंपनियों के छोटे रूप में कहीं ‘कमेटी’, कहीं ‘किटी’ या किसी और नाम से जानी जाने वाली बैंकिंग व्यवस्थाओं में ठगे जाने की बहुत सी घटनाएं होती रहती हैं। लोगों का पैसा डूब जाता है और फिर वे पुलिस और सरकारी विभागों में शिकायतें देते रहते हैं या सिर धुन कर चुप हो जाते हैं। ऐसा बार-बार होता है। इसके चार कारण हैं। पहला ः अज्ञान, दूसरा ः आलस्य, तीसरा : भय और चौथा : लालच। अज्ञान, आलस्य, भय और लालच का घालमेल मिलकर लोगों को ठगों के जाल में फंसाता है। अगर मैं इसे राष्ट्रीय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखूं तो मैं कहना चाहूंगा कि हम सब, मैं दोहराना चाहता हूं ः हम सब, अज्ञान, आलस्य, भय और लालच के चक्कर में फंस कर देश को तबाह होता देख रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था की तस्वीर निराशाजनक है, नए कृषि कानून महंगाई को उस ऊंचाई तक ले जाएंगे कि निम्न वर्ग और मध्य वर्ग का जीना मुहाल हो जाएगा, भ्रष्टाचार हमारी रगों में खून बनकर दौड़ता है और हम दूसरों के भ्रष्टाचार पर दुखी होते हैं, लेकिन मौका मिलने पर खुद भ्रष्टाचार में लिप्त होने से बाज नहीं आते। हमारे राजनीतिज्ञ ठगों के सरताज हैं, फिर भी हम उन्हें ही वोट देते हैं और खुद को दोष देने के बजाय ‘टीना’ (देअर इज़ नो आल्टरनेटिव), यानी कोई विकल्प नहीं है, कहकर अपनी जि़म्मेदारी से बच निकलते हैं।

सत्तापक्ष और विपक्ष बारी-बारी से बदलते रहकर हमें और देश को लूटते रहते हैं और हम अपनी मजबूरियों का रोना रोते रहते हैं। अपने छोटे-छोटे तात्कालिक स्वार्थों की खातिर विरोध करने से बचते हैं, विरोध करने वाले का साथ नहीं देते, विरोध करने वाले का अहित होने पर अन्याय का विरोध नहीं करते, विरोध करने वाले को अकेला और मजबूर बनाकर छोड़ देते हैं और हमारी चुप्पी आततायी की ताकत बन जाती है। आइए देखें अज्ञान, आलस्य, भय और लालच की क्या भूमिका है। हम जानते हैं कि अमरीका में ग्राहक आंदोलन मुखर है और कोई कंपनी ग्राहकों को ठगते रहकर चल नहीं सकती। उसका कारण यह है कि ग्राहक के रूप में हर व्यक्ति शिक्षित है और अपने अधिकारों को जानता है। ग्राहक के रूप में अपने अधिकारों से अनजान रहना ‘अज्ञान’ है। अमरीका में यदि कोई कंपनी ग्राहकों को घटिया उत्पाद दे या पूरी सेवा न दे तो ग्राहक चुप नहीं बैठते, वे तुरंत शिकायत करते हैं और शिकायत का रिकार्ड रखते हैं ताकि गलती करने वाली कंपनी उनके साथ कोई चालाकी न कर सके। हम ठगे जाकर भी शिकायत नहीं करते, मन मार कर रह जाते हैं, चक्कर लगाने से डरते हैं, समय की कमी का बहाना बनाते हैं, यह हमारा ‘आलस्य’ है। अमरीका में ग्राहक आंदोलन इसलिए मजबूत हो सका क्योंकि वहां लोग बड़ी कंपनियों के आकार, पैसे, रसूख और लंबी प्रक्रिया से आक्रांत नहीं होते, विरोध करने वाला व्यक्ति अकेला नहीं पड़ जाता। इसके विपरीत हमारे देश में ज्य़ादातर लोग खुद शिकायत नहीं करते और शिकायत करने वाले का साथ भी नहीं देते। ‘हमारा कोई बड़ा नुकसान न हो जाए’ के भय से हम जड़वत चुप रह जाते हैं और अपने या अपने साथियों के नुकसान को ‘वक्ती  मजबूरी’ मान कर चुप लगा जाते हैं। यह हमारा ‘भय’ है।

अमरीका में जहां ग्राहक सेवा की ही तरह राजनीतिक प्रतिनिधियों के कामकाज पर, विभिन्न समस्याओं पर उनके रुख पर, संसद में उनके वोटिंग पैटर्न पर बारीकी से नज़र रखी जाती है, समाज में उस पर बहस होती है और तदानुसार यह निश्चित किया जाता है कि अमुक जन-प्रतिनिधि को अगली बार वोट दिया जाए या नहीं। इसी तरह प्रशासनिक अधिकारियों के कामकाज की व्यापक समीक्षा होती है और कमी होने पर उन पर कार्यवाही होती है। इसके विपरीत भारतवर्ष में हम अपने छोटे-छोटे लाभ के लिए समाज का बड़ा नुकसान होने देते हैं। यह हमारा ‘लालच’ है। अज्ञान, आलस्य, भय और लालच के कारण भ्रष्टाचार पनपता है और इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे देश की हर बीमारी का कारण भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार दूर हो जाए तो सड़कें ठीक हो जाएंगी, बिना नए टैक्स लगाए भी सरकार के पास फंड की कमी नहीं होगी, जनहित के कानून बनेंगे, महंगाई पर अंकुश लगेगा, सरकारी सेवाएं चुस्त-दुरुस्त होंगी और हम सुरक्षित और विकसित भारत के नागरिक होंगे। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा तो देश की प्रगति होगी। पर हम यह भी कह चुके हैं कि भ्रष्टाचार का कारण हमारा अपना अज्ञान, आलस्य, भय और लालच है तो असली मुद्दा यह नहीं है कि देश का शासन कैसा है, सरकार कैसी है, नौकरशाही कैसी है, महंगाई क्यों बढ़ रही है, रुपया क्यों लुढ़क रहा है और डालर की कीमत क्यों चढ़ती जा रही है। बल्कि असली मुद्दा यह है कि हम जि़म्मेदार नागरिक कब बनेंगे, अपनी जि़म्मेदारी कब समझेंगे और अपने अज्ञान से मुक्ति कब पाएंगे, कैसे पाएंगे, आलस्य कब छोड़ेंगे, कब भयभीत होना बंद करेंगे, कब अपने भय पर विजय पाएंगे और कार्यवाही के लिए तैयार होंगे तथा लालच में फंस कर रिश्वत लेकर या देकर काम करवाने की कोशिश छोड़ेंगे।

लेकिन यह कैसे होगा? यह तब होगा जब हम सरकार पर निर्भर होना छोड़ेंगे, सरकार को कोसना बंद करेंगे, नौकरशाही को दोष देने के बजाय खुद को दोष देंगे, गुस्सा तो आएगा, पर दूसरों पर नहीं, बल्कि खुद पर। यह तब होगा, जब हमारा व्याकरण बदलेगा और हम कहेंगे, ‘हां, मैं करूंगा।’ हमें अपना व्याकरण बदलना होगा, ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए कहने के बजाय हम कहेंगे, ‘मैं सुनिश्चित करूंगा कि ऐसा हो’, या कम से कम हम ये कहें कि ‘मैं प्रयास करूंगा कि ऐसा हो’। हमें व्याकरण बदलने की आवश्यकता है, व्याकरण में क्रांति की आवश्यकता है। ऐसा होगा, तो सरकारें बदल जाएंगी, उनका रवैया बदल जाएगा, देश में समृद्धि होगी, खुशहाली होगी, रोजगार होंगे, स्वास्थ्य होगा, शिक्षा होगी, कार्य कुशलता होगी, कानून की व्यवस्था होगी और समाज में शांति होगी। यही बस क्रांति होगी! और यदि हम अब भी न जागे, अपने अधिकारों के प्रति सचेत न हुए, अपने अधिकारों की लड़ाई न लड़ी, अपने अज्ञान को दूर न किया, अपने आलस्य से न उबरे, अपने भय पर विजय न पाई और अपने लालच को न छोड़ा तो हम झींकते रहेंगे, आपस में ही शिकायतें करते रहेंगे, पर समस्या का हल नहीं होगा क्योंकि अजब-गजब बात यह है कि समस्या भी हम हैं और समाधान भी हम ही हैं।

ईमेलः indiatotal.features@gmail.com


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