धर्मशाला की हरी कोठी में 11 दिन रहे थे स्वामी विवेकानंद; मरम्मत भूली सरकार, बड़े कार्यक्रमों के लिए सजती हैं दीवारें

By: Jan 13th, 2021 12:06 am

ऐतिहासिक इमारत की मरम्मत भूली सरकार, सिर्फ बड़े कार्यक्रमों के लिए सजती हैं शहर की दीवारें

नरेन कुमार – धर्मशाला

मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ की टीम ने इतिहास के सुनहरे पन्नों से कुछ यादगार पल देशवासियों के लिए विशेष रूप से तराशे हैं। साथ ही कुछ ज़मीनी हकीकत से भी लोगों को अवगत करवाया है। बता दें कि धर्मशाला में स्वामी विवेकानंद ने हरी कोठी में 11 दिन बिताए थे। करोड़ों भारतीय व युवाओं के प्रेरणास्रोत विवेकानंद जयंती पर उसी हरी कोठी से विशेष प्रसारण को दर्शक ‘दिव्य हिमाचल टीवी’ के पेज में जाकर देख सकते हैं। गौर हो कि भारतीय संस्कृति व सभ्यता को नई बुंलदियों पहुंचाने वाले स्वामी विवेकानंद धर्मशाला में 11 दिन रहे थे। कुटलैहड़ के राजपरिवार की धर्मशाला के खड़ा डंडा रोड़ में कोतवाली से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरी कोठी इस बात की साक्षी है कि स्वामी विवेकानंद यहां ठहरे थे। हरी कोठी के बाहर एक पत्थर पर उकेरे शब्दों के अनुसार विवेकानंद ने 1887 में धर्मशाला का भ्रमण किया था।

उनके साथ शिमला के सेवियर दंपति भी थे। यह सूचना तत्कालीन मुख्य सचिव मधुसूदन मुखर्जी की ओर से उकेरी गई है। इसके साथ ही कुटलैहड़ स्टेट के गेट पास की दीवार में ही स्वामी विवेकानंद का आकर्षक मुद्रा में चित्र भी उकेरा गया है, लेकिन हमारी सरकारें व प्रशासन इस ऐतिहासिक महत्त्व के भवन व विवेकानंद की स्मृतियों को जीवंत रखने में दिलचस्पी कम दिखाते हैं। हालांकि जब कोई बड़ा आयोजन होना होता है, तब शहरों की हर दीवार पर रातों-रात पेंटिंग बन जाती हैं। धर्मशाला में विवेकानंद के ऐतिहासिक पलों के साक्षी पत्थर भी मरम्मत को तरस रहे हैं। हालांकि विवेकानंद जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन उनके दिखाए मार्ग पर चलने वाली युवा पीढ़ी को उनके साक्षात पदचिन्ह दिखाने में सरकारें रुचि नहीं दिखाती हैं। मात्र राजनीतिक दिखावा करने के लिए देश के महापुरुषों के चित्रों के आगे मार्लापण किया जाता है, लेकिन ज़मीनी हकीकत को पहचानते हुए भी उस पर कोई काम नहीं करता है।  बता दें कि धर्मशाला में स्थित हरीकोठी भवन कुटलैहड़ के वंशजों की निजी संपति है। अब भी वे कभी-कभी यहां पहुंचते हैं।

हिमाचल कब आए, पुख्ता प्रमाण नहीं

जानकारी के अनुसार रामकृष्ण मिशन के प्रचार-प्रसार के दौरान स्वामी विवेकानंद ने पांच मई, 1897 को भगिनी निवेदिता यानी मिस मार्गरेट नोबल को लिखे पत्र में कहा था, ‘मैं कुछ दिनों बाद हिमालय जाऊंगा, जहां के हिमाच्छादित वातावरण में विचार और स्पष्ट होंगे…बजाय अभी के मेरे विचारों के’। हालांकि कुछ मतभेद भी इस विषय में हैं कि वह कौन से सन को हिमाचल के धर्मशाला में 11 दिनों के लिए रहे। कुछ प्रमाण यह भी इशारा करते हैं कि वह 1897 में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में 11 दिनों तक रहे थे। उनका स्वास्थय खराब होने के बाद 1902 में स्वामीजी ने शरीर छोड़ दिया था।


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