अमरीकी संसद में हंगामा

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

आने वाले चार सालों में ट्रंप इस मामले को ठंडा नहीं होने देंगे कि वर्तमान राष्ट्रपति जो बाईडेन अमरीका का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि वह चुनाव में धांधली करके चोर दरवाज़े से राष्ट्रपति बने हैं। यदि यह बहस चलती रही तो यक़ीनन बाईडेन की सरकार के आगे, विदेशों में न सही, लेकिन देश के भीतर लैजीटिमेसी का संकट खड़ा हो जाएगा। लेकिन यक़ीनन रिपब्लिकन पार्टी के भीतर भी कुछ क़द्दावर नेता ट्रंप के खिलाफ होंगे। कुछ ने धांधली को लेकर लगाए जा रहे आरोपों में ट्रंप का साथ नहीं भी दिया। लगता है ट्रंप एक साथ दो मोर्चों पर लड़ेंगे। डैमोक्रेटिक पार्टी से भी और अपनी ही पार्टी के भीतर अपने विरोधियों से भी। अमरीकी संसद के भीतर हुए जनरोष को इस लिहाज़ से भी देखा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि डेमोक्रेटिक पार्टी ट्रंप की इस चाल को समझती नहीं है। वह आम जनता में ट्रंप की पैठ को जानती भी है और ट्रंप की लड़ने की क्षमता को भी जानती है। इसीलिए ट्रंप को महाभियोग के जरिए हटाने की बात होने लगी है…

अमरीका की संसद, जिसे कैपिटल कहा जाता है, में पिछले दिनों हज़ारों लोग घुस गए। उस समय संसद की बैठक चल ही रही थी। इस भीड़ ने वहां पर तोड़फोड़ ही नहीं की बल्कि सभापति के आसन पर क़ब्ज़ा भी कर लिया। संसद के दोनों सदनों के सदस्य तो भाग निकले। पुलिस इन लोगों को क़ाबू में करने की कोशिश करती रही। इसी आपाधापी में गोलियां भी चलीं और कहा जाता है उससे चार लोगों की जान चली गई। कड़ी मशक्कत के बाद सुरक्षा बलों ने किसी तरह संसद भवन को उपद्रवियों  से ख़ाली करवाया। दरअसल अमरीका में सारा विवाद राष्ट्रपति के लिए हाल ही में हुए चुनावों को लेकर है। अमरीका में इस पद के लिए पिछले अनेक दशकों से टक्कर डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी में होती रही है। पहले मतदान के लिए मतदाता को मतदान केन्द्र पर आना पड़ता था। लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मतदान के तरीके में तब्दीली करनी पड़ी। अब मतदाता घर बैठे डाक से भी मतदान कर सकता था।

अमरीका में इस बात को लेकर शुरू से ही विवाद चल पड़ा कि डाक से प्राप्त वोटों में गड़बड़ी हो रही है। जाली वोटें डाली जा रही हैं और मरे हुए मतदाता भी डाक से अपनी वोटें डाल रहे हैं। ये आरोप डैमोक्रेटिक पार्टी पर ज़्यादा लगे क्योंकि डाक से ज़्यादा मतदान इस पार्टी के समर्थकों ने ही किया। रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक ज़्यादातर गांवों में रहने वाले लोग हैं और वे बड़ी संख्या में मतदान केन्द्रों पर ही मतदान करने के लिए आए। प्रत्यक्ष मतदान में धांधली की संभावना कम रहती है। ज़्यादा हल्ला डाक से प्राप्त मतों को लेकर ही है। इसलिए शक के घेरे में डेमोक्रेटिक पार्टी है। चुनाव में धांधली को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है, उसका एक और कारण भी है। अमरीका में भारत की तरह कोई केन्द्रीय चुनाव आयोग नहीं है।

हर राज्य के अपने अलग नियम हैं और अपना-अपना चुनाव आयोग है। सारे देश में वोट बनाने और डालने का एक जैसा नियम नहीं है। इसलिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं। ऐसा नहीं कि चुनावों में धांधली का मुद्दा कोई पहली बार उठा हो। पहले भी यह प्रश्न उठता रहा है। लेकिन मतदान का तरीक़ा बदल जाने से धांधली की आशंका भी गहरी हुई है और बवाल भी। यह पहली बार हुआ है कि इस प्रश्न पर लोग सड़कों पर उतर आए हों। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार और मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप इस मुद्दे को लेकर न्यायालयों में भी गए, लेकिन न्यायालय ने उनका साथ देने से इन्कार कर दिया। राजनीतिक दलों ने इस प्रश्न पर जन जागरण का प्रयास किया तो अमरीका के सिस्टम के भीतर की कई कमज़ोरियां सामने आ गईं। ये कमज़ोरियां अभी तक छिपी हुई थीं। विवाद का कोई न कोई सूत्र अमरीका में काले-गोरे के भीतरी तनाव में भी छिपा हुआ है। अफ्रीकी मूल के अश्वेत अमरीकी ज़्यादातर डैमोक्रेटिक पार्टी के पक्षधर हैं। इसलिए दोनों राजनीतिक दलों के बीच का राजनीतिक तनाव जल्दी ही काले-गोरे के दंगों तक पहुंच जाता है। चुनाव से कुछ अरसा पहले अमरीका में यह दंगा हो चुका था। अब उस विवाद में कहीं न कहीं मुसलमान भी एक पक्ष बन कर उभरने लगा है। शताब्दियों पहले अफ्रीका से जिन लोगों को दास बना कर लाया गया था उनको मतांतरित करके ईसाई तो बना लिया गया था, लेकिन दास प्रथा ख़त्म हो जाने के बाद भी यूरोपीय गोरे उन्हें सामाजिक स्तर पर अपने समान दर्जा नहीं दे सके। प्रतिक्रिया में अश्वेत लोग अब ईसाई मज़हब छोड़ कर मुसलमान बनने लगे हैं।

अमरीका में जिस तेज़ी से मस्जिदें बन रही हैं, वह हैरान करने वाली हैं। रिपब्लिकन पार्टी नहीं चाहती कि अब मध्य एशिया के मुसलमान अमरीका में आएं। लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी को वह अपना वोट बैंक नज़र आता है। रिपब्लिकन पार्टी के साथ कोई इक्का-दुक्का अश्वेत ही दिखाई देता है। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के विध्वंस के बाद यह खाई और बढ़ी है। इस प्रकार की मनोवैज्ञानिक हालत में जब सही या ग़लत, यह धारणा बनने लगे कि डैमोक्रेटिक पार्टी ने चुनाव में ही धांधली कर दी है तो उसका क्या परिणाम हो सकता है, उसका एक नमूना अमरीकी संसद में हुई तोड़फोड़ में देखा जा सकता है। इस तोड़फोड़ की एक और व्याख्या भी है। कहा जा रहा है कि रिपब्लिकन पार्टी ने यह चुनाव हार कर भी, अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। आने वाले चार सालों में ट्रंप इस मामले को ठंडा नहीं होने देंगे कि वर्तमान राष्ट्रपति जो बाईडेन अमरीका का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि वह चुनाव में धांधली करके चोर दरवाज़े से राष्ट्रपति बने हैं।

यदि यह बहस चलती रही तो यक़ीनन बाईडेन की सरकार के आगे, विदेशों में न सही, लेकिन देश के भीतर लैजीटिमेसी का संकट खड़ा हो जाएगा। लेकिन यक़ीनन रिपब्लिकन पार्टी के भीतर भी कुछ क़द्दावर नेता ट्रंप के खिलाफ होंगे। कुछ ने धांधली को लेकर लगाए जा रहे आरोपों में ट्रंप का साथ नहीं भी दिया। लगता है ट्रंप एक साथ दो मोर्चों पर लड़ेंगे। डैमोक्रेटिक पार्टी से भी और अपनी ही पार्टी के भीतर अपने विरोधियों से भी। अमरीकी संसद के भीतर हुए जनरोष को इस लिहाज़ से भी देखा जा सकता है।

ऐसा नहीं है कि डेमोक्रेटिक पार्टी ट्रंप की इस चाल को समझती नहीं है। वह आम जनता में ट्रंप की पैठ को जानती भी है और ट्रंप की लड़ने की क्षमता को भी जानती है। शायद उसी से भयभीत होकर डैमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक न्यूयार्क टाईम्ज ने अपने एक लेख में सुझाव दिया है कि अब पार्टी को तुरंत बीस जनवरी से पहले पहले (बीस जनवरी को ट्रंप का कार्यकाल ख़त्म हो जाएगा) महाभियोग चला कर ट्रंप को राष्ट्रपति पद से हटाना चाहिए ताकि वे अगला चुनाव लड़ ही न सकें।

 ईमेलःkuldeepagnihotri@gmail.com


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