उम्मीदों को पंख लगाता 15वां वित्तायोग

वित्त आयोग की यह अनुशंसाएं  प्रदेश के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश  की वित्तीय व्यवस्था का 67 फीसदी केंद्र सरकार की आर्थिक सहायता और अनुदान पर निर्भर है। वित्त आयोग ने  प्रदेश को उदार मन से धन अवश्य उपलब्ध करवाया है, पर साथ में कुछ चिंताएं भी व्यक्त की हैं जिन्हें गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, जैसे राज्य की जीएसडीपी के अनुपात में ऋण अधिक हैं। राज्य में जीएसटी संग्रहण ठीक नहीं है, प्रतिबद्ध व्यय भी अधिक है…

15वां वित्त आयोग हिमाचल के लिए आशा की किरण बनकर आया है। आर्थिक संकट से जूझ रहे प्रदेश की आर्थिकी को 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों से न केवल संबल मिलेगा बल्कि प्रदेश के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने में भी मदद मिलेगी। वित्त आयोग की अनुशंसाओं के चलते प्रदेश को आगामी पांच वर्षों में 81977 करोड़ की राशि का हस्तांतरण केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा। 14वें वित्त आयोग की तुलना में इस बार धन के अधिक आवंटन के चलते प्रदेश सरकार के पास उन सभी योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए सुनहरा अवसर है जो सशक्त व श्रेष्ठ हिमाचल की आधारशिला साबित हो सकती हैं।हिमाचल प्रदेश की दृष्टि से 15वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं का विश्लेषण किया जाए तो केंद्रीय कर एवं शुल्कों में हिस्सेदारी के रूप में प्रदेश को आगामी पांच वर्षों में 35064 करोड़ मिलेंगे जो गत आवंटन की तुलना में 6839 करोड़ अधिक हैं। राजस्व घाटा ग्रांट के रूप में 37199 करोड़ की राशि पिछली बार मिले 40625 करोड़ की तुलना में कम अवश्य  है, परंतु यह भी उल्लेखनीय है कि यह ग्रांट इस बार केवल 17 राज्यों को ही मिल पाई है। इसमें सर्वाधिक राशि पाने वाले राज्यों में हिमाचल का स्थान दूसरा है। 3426 करोड़ की इस कमी के कारण प्रदेश सरकार को झटका तो लगा है, पर आने वाले समय में कर राजस्व में बढ़ोतरी और प्रतिबद्ध व्यय में कमी करके इस कमी से निज़ात पाई जा सकती है।

पहाड़ों में सड़कें भाग्य रेखाएं कही जाती हैं। गांवों को जोड़ती सड़कों का जाल ही विकास का आधार है। इसी अवधारणा को मजबूत करते हुए वित्त आयोग ने ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना’ के तहत हिमाचल में ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए 2222 करोड़ के आवंटन की अनुशंसा की है। इसमें वर्ष 2021 में 246 करोड़ मिलेंगे। पहले दो वर्षों में पीएमजीएसवाई के तहत धनराशि अवश्य कम है, परंतु वर्ष 2025-26 में यह राशि बढ़कर 750 करोड़ तक पहुंच जाएगी। भारी वर्षा, बादल फटने, भूस्खलन, भूकंप जैसी आकस्मिक घटनाओं से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन का तंत्र सुदृढ़ करने हेतु  2258 करोड़ का प्रावधान किया है जो पूर्व की तुलना में 1084 करोड़ अधिक है। हाल ही में प्रदेश में 3 नगर निगम, 6 नगर पंचायत और 412 ग्राम पंचायतों का गठन हुआ है। नवगठित इकाइयों में आधारभूत संरचनाओं के निर्माण पर प्रदेश सरकार का काफी धन व्यय होगा जो सरकार के लिए चिंता का विषय है। स्थानीय निकायों के लिए पूर्व में 1790 करोड़ की तुलना में इस बार 3049 करोड़ का प्रावधान करके आयोग ने प्रदेश सरकार की चिंताओं को काफी हद तक कम कर दिया है, परंतु  ग्रामीण निकायों में इस बजट का आधा हिस्सा पेयजल योजनाओं और ओडीएफ के मानकों को पूरा करने की भी शर्त है। साथ में शहरी निकायों के लिए धन का आवंटन तभी हो पाएगा, जब इन निकायों के बजट न केवल सीए द्वारा चेक हुए होंगे, बल्कि ऑनलाइन भी होंगे।

कोविड के दौर में  स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि हेतु 377 करोड़  के आवंटन से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी। इसमें 100 बेड का एक और 50 बेड की क्षमता वाले तीन क्रिटिकल केअर हॉस्पिटल के निर्माण पर 136 करोड़, स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण पर 145 करोड़, टेस्टिंग लैब पर तीन करोड़ खर्च होंगे। इसी के साथ वित्त आयोग ने सभी प्रदेश सरकारों को निर्देशित किया है कि वर्ष 2022 तक स्वास्थ्य पर कुल बजट का आठ फीसदी हिस्सा खर्च करना चाहिए। छोटे भूमि जोतों में फंसी प्रदेश की कृषि और किसान के लिए यह वित्त आयोग लाभ का सौदा साबित हुआ है। बीज, बुआई, कटाई से लेकर विपणन तक व्यवस्था को सुधारने के लिए 247 करोड़ लाभकारी साबित होंगे। त्वरित न्याय हेतु फास्ट ट्रैक कोर्ट, उच्चतर शिक्षा में ऑनलाइन मॉड्यूल तैयार करने और सांख्यिकी विभाग को मजबूत करने के लिए 141 करोड़ का प्रावधान महत्त्वपूर्ण है।

वित्त आयोग ने इस बार ‘राज्य विशिष्ट अनुदान’ के तहत  सभी प्रदेश सरकारों से उस राज्य के लिए प्राथमिकता के आधार पर महत्त्वपूर्ण  योजनाओं की जानकारी मांगी थी, जिसके तहत प्रदेश सरकार को चार प्रमुख योजनाओं के लिए 1420 करोड़ की धनराशि का प्रावधान किया गया है। इस मद के तहत स्वीकृत राशि मुख्यमंत्री जयराम  ठाकुर के लिए  व्यक्तिगत उपलब्धि ही कही जाएगी, क्योंकि इस राशि में से 1000 करोड़ का आवंटन बल्ह में एयरपोर्ट के निर्माण के लिए किया गया है, जो मुख्यमंत्री की सबसे महत्त्वाकांक्षी परियोजना है। इसी के साथ 200 करोड़ गगल व 200 करोड़ भुंतर हवाई अड्डों के विस्तारीकरण के लिए रखे गए हैं। इसी निधि से 20 करोड़ ज्वालामुखी माता मंदिर परिसर के विकास और सौंदर्यीकरण करने के लिए व्यय होंगे।

वित्त आयोग की यह अनुशंसाएं  प्रदेश के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश  की वित्तीय व्यवस्था का 67 फीसदी केंद्र सरकार की आर्थिक सहायता और अनुदान पर निर्भर है। वित्त आयोग ने  प्रदेश को उदार मन से धन अवश्य उपलब्ध करवाया है, पर साथ में कुछ चिंताएं भी व्यक्त की हैं जिन्हें गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, जैसे राज्य की जीएसडीपी के अनुपात में ऋण अधिक हैं। राज्य में जीएसटी संग्रहण ठीक नहीं है और प्रतिबद्ध व्यय भी बहुत अधिक है। वित्त आयोग की चिंताओं पर प्रदेश सरकार के ठोस कदमों पर ही हिमाचल का भविष्य निर्भर करता है। ऋण लेने की प्रवृत्ति, अनुत्पादक व्यय पर अंकुश लगाना पड़ेगा, अन्यथा प्रदेश आर्थिक दिवालियेपन का शिकार हो जाएगा।  असफल राज्यों की श्रेणी में खड़े होने से बेहतर है कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले धन का योजनाबद्ध उपयोग प्रदेश का उज्ज्वल भविष्य लिखने में किया जाए, जिससे आने वाली पीढि़यां हमें कोसने के बजाय हम पर गर्व कर सकें।


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