प्रवीण कुमार शर्मा सतत विकास चिंतक

पूर्व सरकार द्वारा पांच वर्षों के दौरान ठेकों की नीलामी न किए जाने के पीछे क्या कारण रहे, यह तो पूर्व सरकार के कार-कारिंदे ही बेहतर बता पाएंगे, पर इस बार की नीलामी ने पूर्व सरकार की कार्यप्रणाली को पूरी तरह नीलाम कर दिया है। चंद ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के चक्कर में प्रदेश के

प्रदेश सरकार सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक बसों के उपयोग को लेकर कितनी गंभीर है, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा, पर अगर प्रदेश सरकार अपने स्तर पर भी निजी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए रोड टैक्स व रजिस्ट्रेशन फीस में रियायत को लेकर नीति बनाती है तो तय है आने वाले समय में

इन परिस्थितियों में पर्यटकों को हिमाचल में रोकने के लिए हमें अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। ऐसे में प्रदेश के वन्य जीवन को पर्यटन के साथ जोडऩे से निश्चित तौर पर सुखद परिणाम मिल सकते हैं। इस दिशा में सबसे बड़ी पहल होगी कि हम हिमाचल प्रदेश में भी एक टाइगर रिजर्व बनाने का प्रयास करें।

इन दोनों योजनाओं के आवंटन से प्रदेश के फार्मा उद्योग को प्राण वायु मिली है। अगर मेडिकल डिवाइस पार्क और बल्क ड्रग पार्क प्रदेश को नहीं मिलते तो निश्चित रूप से प्रदेश को एक बहुत बड़ा झटका लगता और प्रदेश सरकार के लिए भी डबल इंजन सरकार की सार्थकता को सिद्ध करना मुश्किल हो जाता।

एनपीएस के तहत आने वाले कर्मचारी लंबे समय से शांतिपूर्ण संघर्ष कर रहे हैं और हमें यह समझना होगा कि वह भीख नहीं बल्कि अपना अधिकार मांग रहे हैं। पेंशन का अर्थ ही ‘वेतनांश’ है जो एक कर्मचारी पूरा जीवन सरकारी सेवा में खपाने के पश्चात अपने लिए अर्जित करता है ताकि बुढ़ापे में सम्मान

इस निर्णय को अगर समग्रता से देखा जाए तो इसका लाभ समाज के सभी वर्गों को समान रूप से मिलेगा, अन्यथा यह देखा गया है कि वर्ग विशेष की आवश्यकताओं या मांगों को पूरा करने के लिए फैसले लिए जाते रहे हैं। मुफ्त या सबसिडी युक्त बिजली के स्लैब के निर्धारण से जनता में बिजली

नए जिलों के निर्माण से अगर किसी को सर्वाधिक लाभ पहुंचेगा तो वह है अधिकारी वर्ग। एक नए जिले के निर्माण का अर्थ मात्र एक जिलाधीश या एक पुलिस अधीक्षक की तैनाती नहीं है। 2 आईएएस अधिकारियों के अतिरिक्त 2 आईपीएस, कम से कम पांच एचएएस अधिकारियों सहित लगभग 25 विभागों के जिला स्तरीय विभाग

संस्था के निदेशक जितेंद्र वर्मा का कहना है कि अधिकारियों का यह कहना तर्कसंगत नहीं है कि इस कानून से अवैध कब्जों की प्रवृत्ति बढ़ेगी क्योंकि एफआरए में बिल्कुल स्पष्ट है कि जिस भूमि पर वर्ष 2005 से पहले का कब्जा है, उन्हीं दावों को स्वीकृतियां मिलेंगी, बाद का कोई भी दावा मान्य नहीं होगा…

वित्त आयोग की यह अनुशंसाएं  प्रदेश के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश  की वित्तीय व्यवस्था का 67 फीसदी केंद्र सरकार की आर्थिक सहायता और अनुदान पर निर्भर है। वित्त आयोग ने  प्रदेश को उदार मन से धन अवश्य उपलब्ध करवाया है, पर साथ में कुछ चिंताएं

कृषि कानूनों के संदर्भ में प्रदेश में विपक्ष भी भ्रमित नजर आ रहा है। इन कानूनों के किसी भी एक प्रावधान को गलत सिद्ध करने के बजाय वह भविष्य में होने वाले नुक्सान की आशंकाओं के कारण अगर विरोध कर रहे हैं तो ऐसा करके वह सिर्फ और सिर्फ पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।