कांगड़ा लोकसाहित्य परिषद का योगदान

By: Feb 28th, 2021 12:04 am

प्रो. सुरेश शर्मा,  मो.-9418026385

हिमाचल प्रदेश का जिला कांगड़ा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक दृष्टि से अपना विशेष महत्त्व रखता है। इस जनपद की भाषा, बोली, खानपान, रहन-सहन, परिधान, रीति-रिवाज, त्योहार, उत्सव, मेले, विश्वास, मान्यताएं, परंपरागत कलाएं, लोक संगीत, लोक नाट्य, लोक साहित्य, लोक वाद्य, लोक नृत्य तथा चित्रकला अनायास ही सभी का मन मोह लेते हैं।

बैजनाथ, पालमपुर, अंदरेटा, कांगड़ा, प्रागपुर, हरिपुर गुलेर, डाडासीबा, नूरपुर आदि क्षेत्र वर्षों से सांस्कृतिक केंद्र रहे हैं जहां अनेकों कला प्रेमियों द्वारा कांगड़ा की संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्धन होता रहा है। कांगड़ा के अनेक हिंदी तथा लोक साहित्यकारों ने नवीन साहित्य का सृजन किया है। इस धरती से जुड़े हुए विभिन्न धर्मों, वर्गों तथा जातियों के परंपरागत एवं पुश्तैनी गायकों, वादकों एवं नर्तकों ने जीवनयापन के उद्देश्य से संरक्षित करने के प्रयास किए।

कांगड़ा जनपद की इस विशाल, समृद्ध धरोहर एवं अमूल्य संस्कृति को जानने एवं समझने तथा इसकी परंपरागत विरासत को संकलित, संगठित तथा संरक्षित करने के उद्देश्य से नेरटी गांव साहित्य, संगीत एवं संस्कृति का मुख्य केंद्र बन चुका है।

यह गांव ऐतिहासिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने के कारण भारतवर्ष में विख्यात है। देश-विदेश से सांस्कृतिक अध्ययन के लिए शोधकर्ता, साहित्यकार, कलाकार, लोकसाहित्यकार, लोककलाकार तथा सांस्कृतिक कर्मी जो भी कांगड़ा में आते हैं, वे इस गांव की  संस्कृति को जानने तथा समझने के लिए किसी बहाने यहां दस्तक देते हैं। कांगड़ा की लोक संस्कृति, लोकसाहित्य, लोक संगीत की विभिन्न लोक गायन शैलियों तथा लोक नाट्यों को सहेजने, संवारने, संवर्धन तथा संरक्षित करने के उद्देश्य से सन् 1974 में कांगड़ा लोक साहित्य परिषद की स्थापना की गई थी। यह संस्था वर्षों से विभिन्न परंपरागत सांस्कृतिक विधाओं, परंपराओं का मंचीकरण, डाक्यूमेंटेशन, ध्वनि अंकन तथा शोधकार्य कर रही है।

इसके संस्थापक सदस्यों में ओम प्रकाश प्रेमी, शेष अवस्थी, डा. शमी शर्मा, केसरी लाल वैद्य, डा. प्रेम भारद्वाज, डा. गौतम शर्मा व्यथित आदि थे। कालांतर में कमल हमीरपुरी, मनोहर सागर पालमपुरी, संतोष स्नैही, हरिकृष्ण मुरारी, रमेश मस्ताना, स्वरूप धीमान भी इससे जुड़ते गए। कांगड़ा महिला लोकनृत्य झमाकड़ा का संयोजन एवं मंचीय स्वरूप देने में परिषद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

डा. व्यथित इसके संस्थापक निदेशक हैं। कांगड़ा जनपद की लोक नाट्य परंपरा भगत को नागरी मंच पर प्रस्तुत करने और भारतीय संयंत्र पहचान दिलाने में सराहनीय योगदान है। परिषद ने संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली के सहयोग से तेरह प्रोजेक्ट्स पर डाक्यूमेंटरी फिल्में बनाकर जनपदीय सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने, सुरक्षित रखने तथा संवर्धन करने का कार्य किया है।

इसके अतिरिक्त भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश के माध्यम से कांगड़ा जिले के सतारह जीवित  स्वतंत्रता सेनानियों पर भी डाक्यूमेंटरी बनाई है।

डा. व्यथित के निर्देशन में यह संस्था हिंदी साहित्य के साथ लोक साहित्य तथा निष्पादन कलाओं का मंच्चीयकरण के माध्यम से उन्हें समृद्ध, संरक्षित तथा विकसित करने का प्रयास कर रही है। नेरटी गांव में स्थित राजमंदिर परिसर में स्थापित इस गैर सरकारी परिषद द्वारा हिमालयी लोक संस्कृति व साहित्य के अध्ययन हेतु स्वैच्छिक पुस्तकालय की स्थापना भी की गई है। ग्रामीण स्तर पर लोक कलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन की यह पहल अन्य जनपदों के सांस्कृतिक केंद्रों के लिए अनुकरणीय है।

इस पुस्तकालय में चंबा-कांगड़ा जनपदीय लोक कलाओं तथा परंपराओं से संबंधित सांस्कृतिक कार्य, वीडियो सीडी, डीवीडी, दस्तावेजों का संग्रह भी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है। परिषद के निदेशक डा. व्यथित ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य लेखन, लोकसाहित्य, लोकसंगीत की विभिन्न परंपरागत शैलियों तथा लोकनाट्य के संरक्षण एवं संवर्धन में लगा दिया है।

परिणामस्वरूप यह परिसर शोधकर्ताओं के अध्ययन तथा शोध का केंद्र बन गया है। हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने तथा विकास के लिए यह संस्था अग्रणी भूमिका निभा रही है। न केवल कांगड़ा के शोध तथा सांस्कृतिक केंद्रों, बल्कि कांगड़ा लोक साहित्य परिषद नेरटी जैसे प्रदेश में कई सांस्कृतिक केंद्रों को शोध की दृष्टि से विकसित करने की आवश्यकता है ताकि प्रदेश की समृद्ध कला एवं संस्कृति का पुनः शोधन कर संरक्षण एवं संवर्धन किया जा सके।


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