चोरों की दुनिया

By: Feb 18th, 2021 12:05 am

सुरेश सेठ

sethsuresh25U@gmail.com

जनाबे आली, आपको क्या बताएं, आजकल हमारी दुनिया में चोर-सिपाही खेलने का रिवाज़ खत्म हो गया है। अब जब चौकीदार चोर कहलाने लगें और सिपाही गिरहकट तो भला चोर-सिपाही का खेल खेलें भी तो कैसे? पिछले ज़माने में भी यह खेल अधूरा ही रहता था। सिपाही चोर के पीछे भागता तो था, कभी उसे पकड़ नहीं पाता, चोर कभी पकड़ में आ जाता तो फिसल कर हाथ से निकल जाता। बड़े दाऊ बताया करते थे कि उन दिनों चोर नंग धड़ंग, बदन पर तेल की मालिश करके निकलते। कोई उन्हें रंगे हाथों पकड़ने का प्रयास करता तो झट उसके हाथ से फिसल जाते। फिर दूर जाकर खिलखिला कर हंसते, ‘ता-री-री-रा’। लेकिन अब ज़माना बदल गया। चोरों को नंगा होने की ज़रूरत क्या, जबकि अच्छे दिनों का सपना देखते हुए दो-तिहाई जनता अब अधनंगी हो गई और सब नेता इस हमाम में नंगे। देश तरक्की के सूचकांक में नीचे फिसला तो भुखमरी के सूचकांक में ऊपर चढ़ गया।

 सूचकांक बनाने वाले विदेशियों ने कहा कि आओ, इस देश में निवेश करो, यहां व्यापार करने की सुविधा बढ़ गई है। लेकिन उसके साथ ही भ्रष्टाचार का तापमान मापने वाला सूचकांक बोला, ‘आइए जनाब, जेब कटवाइए, हमारे हाथ गर्म करते रहिए क्योंकि देश भ्रष्टाचारी देशों की सूची में कुछ पायदान और ऊपर चढ़ गया।’ इस देश के लक्षण-विलक्षण हैं और अंदाज़ निराले। सरकार नौकरशाही के गले में लगाम डालने और लालफीताशाही का अंकुश ढीला करने के लिए एकल खिड़की योजना शुरू करती है तो इसका अर्थ यह बन जाता है कि अब अपनी फाइल को एक मेज़ से दूसरी मेज़ तक ले जाने के लिए हर कदम चांदी के पहिए नहीं लगाने पड़ेंगे। बस एक ही जगह अपने पत्र पुष्पम अर्पित कर दो। तुरंत दान महाकल्याण।

 सत्ता के दलालों का विशिष्टिकरण हो गया है। अब एक खिड़की पर दे दो, सिंह द्वार खुल जाएगा। यह बात दीगर है कि खिड़कियां बनाने वाले ऐसे संग तराश हो गए कि एक ही बड़ी इमारत में इतनी खिड़कियां बना डालीं कि जैसे जयपुर का हवा महल हो। अब हर खिड़की में दीया जलाओ। ध्यान रहे, इसकी बाती जलती रहे। कहीं दहन हो कि खेल खत्म पैसा हज़म की तरह तुम्हारी रेंट में बंधा तेल खत्म हो जाए और तुम अस्वीकृत रचना की तरह मुंह बिसूरते लौट आओ। अगर अपने काम पर मंजूरी की चिडि़या बिठवानी है तो तुम अपने साथ तेल का कोल्हू बांध कर चलो बंधु, कोल्हू तेरे पास है तो तुझे हवाई जहाज खरीदने की डील मिल जाएगी। विरोधी झीखते रहे कि ‘भाई जान घपला हो गया’। तो भी क्या। अधिक से अधिक जांच पड़ताल के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी की मांग कर लेंगे। अजी करने दीजिए। ईमानदारी के ये तकाज़े शोरोगुल और हंगामों के सैलाब में बह जाएंगे। संसद या विधानसभा के सत्र बाधित हो जाएंगे। इन पर खर्च हो रही जनता की गाढ़े पसीने की कमाई का राजस्व नाबदान का श्रृंगार हो जाएगा, तो क्या? सोर और कोलाहल नहीं तो लोकतंत्र की जि़ंदगानी क्या? बरसों से यूं ही होता है, होता रहेगा। देखो बरसों से नारी आरक्षण बिल और अब तीन तलाक बिल ऐसे ही सत्र-वसानों का शिकार है। ‘ऐसे में कैद में है बुलबुल, सय्याद मुस्कराए’, किसके लिए कहें?


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App