कोरोना कारोबार लाचार, स्वास्थ्य सेवाएं बीमार

By: May 6th, 2021 12:06 am

कोरोना की दूसरी लहर ने प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य विभाग के तमाम इंतजामात की पोल खोल कर रख दी है। सबसे बड़ी चिंता की बात संक्रमण से होने वाली मौतें हैं। इस महामारी का असर सिर्फ प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर ही नहीं; बल्कि शिक्षा, कारोबार, पर्यटन व परिवहन आदि पर भी पड़ा है। इस बार के दखल में जानते हैं कोविड ने किन क्षेत्रों को कितना प्रभावित किया है…

स्वास्थ्य विभाग ने नहीं लिया कोई सबक

एक साल की अवधि में भी स्वास्थ्य विभाग ने महामारी के दौरान ज्यादा सबक नहीं लिए। आज भी हिमाचल उसी जगह पर खड़ा है जहां पर एक साल पहले था। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार दूसरी लहर रोजाना नए-नए रिकॉर्ड बना रही है। जिस समय अन्य सभी देश दूसरी लहर से निपटने की तैयारियों में जुटे हुए थे और लॉकडाउन लगाकर स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत कर रहे थे, ऑक्सीजन, दवाओं, उपकरणों की कमी को पूरा कर रहे थे, वहीं भारत एक ऐसा देश था, जो चुनावों में उलझा हुआ था। केंद्र सरकार जहां बंगाल और अन्य चुनावों में व्यस्त थी, वहीं हिमाचल में नगर निगम, पंचायती राज चुनावों का प्रचार चला हुआ था। बाद में जब स्थिति सरकार के हाथों से निकली तो संक्रमण फैलाने का आरोप भी जनता पर लगा दिया गया। पिछले साल जब लॉकडाउन लगाया गया था तो अस्पतालों को तैयार करने के लिए यह लॉकडाउन लगाया गया था। काफी हद तक पहली लहर को रोकने में कामयाब हो गए थे।

 दिसंबर के बाद जैसे ही मामले कम होना शुरू हुए, तो सरकार चिंतामुक्त होकर बैठ गई। जनवरी, फरवरी में एक्टिव मरीज भी 200 से कम हो गए। सरकार ने सोचा कि हिमाचल में सब कुछ शांत है। अब मामले बढ़ेंगे भी तो ज्यादा नहीं, लेकिन दूसरी लहर ने बिलकुल विपरीत असर डाला। मार्च के बाद मामले बढ़ना शुरू हुए, जो आज तक बढ़ते ही जा रहे हैं। राज्य में एक्टिव मरीजों की संख्या दो महीने में ही 20 हजार के पार पहुंच गई। मौतें भी दो महीने के भीतर 500 से ज्यादा हो गई। जब तब सरकार और स्वास्थ्य विभाग कुछ सोच पाता, तब तक हिमाचल दूसरी लहर की जद में आ चुका था। अब सरकार जिलों में बिस्तरों, ऑक्सीजन, दवाइयों की आपूर्ति को लेकर रोजाना प्लान तैयार कर रही है, लेकिन कांगड़ा और शिमला जिला में मरीजों को बिस्तर मिलना भी मुश्किल होता जा रहा है। महामारी ने हिमाचल सरकार और स्वास्थ्य विभाग को यह सबक तो जरूर दिया है कि स्वास्थ्य ढांचा आने वाले समय के लिए पहले से 100 गुणा ज्यादा मजबूत करने की जरूरत है। अब विभाग को चाहिए कि हिमाचल में डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टॉफ का कोटा बढ़ाया जाए।

…जब संभलने का वक्त था तो चुनावों में व्यस्त थी सरकार

सबसे बड़ा सवाल है कि जब हिमाचल में संक्रमण की दूसरी लहर फैल रही थी, तब सरकार एमसी चुनावों में व्यस्त थी। कांगड़ा, सोलन, मंडी में एमसी चुनाव हो रहे थे। जगह-जगह रैलियां और भीड़ एकत्रित हो रही थी। जाने-अनजाने में ही लोग बड़ी परेशानी की ओर बढ़ रहे थे। सरकार की लापरवाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंडी, सोलन, कांगड़ा में सैंपलिंग कम कर दी गई। चुनाव संपन्न हुए और एकाएक सैंपल्स में बढ़ोतरी हुई।

 अब कांगड़ा, मंडी, सोलन का हाल सभी के सामने हैं। हालत ऐसी हो गई है कि जहां पर भी स्वास्थ्य विभाग सैंपल ले रहा है, वहीं पर लोग पॉजिटिव आ रहे हैं। इसके बाद सरकार ने धीरे-धीरे पाबंदियां लगाना शुरू कर दिया। अब हालत ऐसी है कि बिना लॉकडाउन के स्थिति कंट्रोल में आना मुश्किल है। जिस तरह से संक्रमण की चेन बन चुकी है, उसे तोड़ना अब मुश्किल होता जा रहा है। हिमाचल में अब रोजाना 2500 से ज्यादा मामले आ रहे हैं। मौतें भी अब 40 के करीब हो रही हैं। स्वास्थ्य विभाग को चाहिए था कि जब दूसरी लहर शुरू हुई थी, तभी से बंदिशें लगाना शुरू कर दी जानी चाहिए थीं, ताकि कम लोग संक्रमित होते

चरमराती स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जिम्मेदार कौन

अभी भी हिमाचल में स्वास्थ्य अधिकारियों के बीच तालमेल की भारी कमी है। उदाहरण के तौर पर अगर आईजीएमसी शिमला और जिला के अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों की बात करें तो इनका आपस में जरा भी तालमेल नहीं है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी कहते हैं कि वे आईजीएमसी के अधीन नहीं हैं, वहीं आईजीएसमी प्रशासन कहता है, उनकी जवाबदेही उनको नहीं है। ऐसे में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

अगर जिला स्वास्थ्य अधिकारियों को कोविड से निपटने के लिए कोई किट या सामान चाहिए तो वे आईजीएमसी से सीधे बात करने की बजाय डायरेक्टर में बात कर रहे हैं। इससे हर एक अंग बिखरा-बिखरा सा लगता है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में इस समय 215 बिस्तरों की व्यवस्था की गई है। आनन-फानन में यहां पर बिस्तरों को बढ़ाना पड़ रहा है। न्यू ओपीडी ब्लॉक में कोविड मरीजों के लिए बिस्तर लगाए गए हैं, लेकिन यहां पर ऑक्सीजन की उपलब्धता नहीं है।

वर्तमान समय में प्रशासनिक फेरबदल की जगह अगर और आईएएस अधिकारियों को भी कोविड ड्यूटी में लगा दिया जाए तो विभाग के अधिकारियों पर से काम का दवाब कम हो सकता है। सरकार को चाहिए कि चार से पांच आईएएस अधिकारियों को कोविड ड्यूटी में लगाकर अलग-अलग जिम्मेदारियां दी जानी चाहिएं, ताकि जो जिम्मेदारी उन्हें दी गई है, वे इस पर बेहतर तरीके से काम कर सके। इन सभी का कंट्रोल एक के पास होना चाहिए।

मजदूरों के पलायन से उद्योगों पर असर

हिमाचल प्रदेश में कोरोना से हुए लॉकडाउन के बाद उद्योग क्षेत्र उभर गया और ज्यादा प्रभाव उस पर नहीं पड़ा, लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत इस इंडस्ट्री को मजदूरों के पलायन से हुई। पिछले साल लॉकडाउन में मजदूरों का जो पलायन हुआ, तो उनके पास मजदूर नहीं बचे, जिससे कामकाज प्रभावित हुआ। उद्योग जगह को ज्यादा समय तक बंद नहीं रखा और खासकर हिमाचल में फार्मा कंपनियों का काम चलता रहा, परंतु जब मजदूर यहां से निकल गए और वापस नहीं लौटे, तो ज्यादा दिक्कतें हुईं।

इसी तरह से वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मजदूर अपने घरों को गए हैं। यह पलायन वहां पारिवारिक शादियों की वजह से तो था ही, वहीं यूपी में पंचायत चुनाव भी थे, जिसके लिए बड़ी संख्या में मजदूर वर्ग यहां से गया और अब वहां के लॉकडाउन में फंस गया है। वहां से अब मजदूर नहीं आ पा रहे हैं, जिसका असर उद्योगों पर दिखना शुरू हो गया है। दूसरे राज्यों के प्रवासी मजदूर यहां पर बने हुए हैं। उद्योगपतियों की मानें तो उत्तर प्रदेश के मजदूर वहां लॉकडाउन में फंस गए हैं जो अब वापस नहीं आ पा रहे हैं। इनका एक बड़ा वर्ग यहां पर मजदूरी करता है, जो नहीं आ सका है, जिससे काम प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा उद्योगों में एक्सपोर्ट कंपनियों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। वहां के मजदूरों को समय पर वेतन तक नहीं मिल पा रहा है। वहीं उनके कई यूनिट बंद होने के कगार पर पहुंच चुके  हैं। यहां पर सामान को एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियां काफी संख्या है।

लॉकडाउन का हल्ला

जहां तक प्रवासी मजदूरों की बात करें तो उद्योेगपतियों के पास मजदूरों की कमी पिछले कुछ दिनों से देखी जा रही है। इसका एक कारण हिमाचल में भी लॉकडाउन का हल्ला हो सकता है। वैसे सरकार इनकार कर रही है कि कोई लॉकडाउन नहीं लगेगा और लगेगा भी तो परिस्थितियों को देखते हुए ही लगेगा। अभी तक सरकार के सामने ऐसी परिस्थितियां नहीं हैं, मगर मजदूर पहले ही चले गए। मजदूरों के न होने का असर यहां पर विकास कार्यों पर भी देखा जा रहा है।

कोविड ने तहस-नहस कर दिया शैक्षणिक ढांचा

कोविड काल में शिक्षा के गुणवत्ता में किए गए सभी दावों की पोल खुलकर रह गई। संक्रमण की वजह से मार्च, 2020 से बंद हुई फिजिकली क्लासेस मई, 2021 में भी शुरू नहीं हो पाई हैं। हालांकि इस बीच प्रदेश में ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा को सुचारू रखा गया, लेकिन किसी के पास इंटरनेट तो कई अभिभावकों के पास मोबाइल फोन ही नहीं है। जिस वजह से ऑनलाइन शिक्षा भी सही ढंग से छात्रों तक नहीं पहुंच पा रही है। हांलाकि शिक्षा विभाग हर घर पाठशाला, जीओ टीवी, व्हाट्स ऐप के माध्यम से छात्रों को पढ़ा रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाए तो कई छात्र अभी भी ऐसे हैं, जिनके पास ऑनलाइन स्टडी सही ढंग से नहीं पहुंच पा रही है।

ऐसे में अपनी पीठ थपथपाने वाले शिक्षा विभाग की नजर अभी तक उन छात्रों पर नहीं पड़ी है, जिनके पास ऑनलाइन माध्यम पढ़ाई के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं है। फिलहाल इस बार छात्रों के जो रिजल्ट एसएसए की रिपोर्ट में आया है, उसने भी अभिभावकों को चौंका दिया है।  बता दं कि कोविड ने ऑनलाइन स्टडी का जरिया तो दे दिया, लेकिन इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। हर साल शिक्षा की गुणवत्ता का दावा करने वाली सरकारी घोषणाओं की भी अब पोल खुलने लगी है। हालांकि हर घर पाठशाला, जीओ टीवी, व्हाट्स ऐप गु्रप पर छात्रों की पढ़ाई का दावा किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में जिन अभिभावकों के पास मोबाइल फोन नहीं हैं, उन छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। यही वजह है कि पिछले माह लिए गए छात्रों के परीक्षाओं के रिजल्ट कुछ और ही ब्यां कर रहे है।

ऑनलाइन पढ़ाई से छात्रों का मानसिक विकास प्रभावित

प्रदेश में कोविड की वजह से पढ़ाई में छात्रों के गिरते स्तर को लेकर अभिभावक भयभीत हो गए हैं। शिक्षा विभाग से उन्होंने ऑनलाइन स्टडी के पैटर्न को बदलने की मांग की है। इसी के साथ कहा है कि हर हफ्ते सभी विषयों के ऑनलाइन टेस्ट छात्रों के लिए जाए। वहीं उनकी विभिन्न प्रतियोगिताएं भी ऑनलाइन करवाई जाएं, ताकि उनका आत्मविश्वास कम न हो। उधर शिक्षकों ने इस बात को माना है कि ऑनलाइन पढ़ाई से छात्रों का मानसिक विकास सही ढंग से नहीं हो रहा है।

निजी स्कूलों की मदद नहीं करपाई सरकार

कोविड काल में राज्य के निजी स्कूलों में सेवाएं देने वाले करीब एक लाख शिक्षक व कर्मचारी बेरोजगार हो गए। डेढ़ साल से निजी स्कूलों की फीस बढ़ोतरी से जहां पर अभिभावक परेशान रहे, तो दूसरी ओर अभिभावकों द्वारा फीस न देने पर प्राइवेट स्कूलों की झोली खाली रहने की वजह से आधे से ज्यादा स्टाफ को निकाल दिया गया। सवाल यह है कि आखिर इस संकट की घड़ी में सरकार ने निजी स्कूलों में चल रही लाखों छात्रों की शिक्षा व्यवस्था को लेकर कोई कदम क्यों नहीं उठाए।

कम हुई समझने की क्षमता

पिछले डेढ़ साल से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की समझने की क्षमता काफी डाउन हुई है। हालत यह है कि चौथी में पढ़ने वाले छात्रों को दो का पहाड़ा तक  नहीं आता है। वहीं, हिंदी पढ़ने में भी छात्रों को दिक्कतें हो रही हैं। डेढ़ साल से छात्र ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन स्टडी के लिए सरकार  के पास कोई ठोस नीति नहीं है।

पहली से पांचवीं के हाल

मार्च, 2021 में छात्रों की हुई फाइनल परीक्षा के रिजल्ट में समग्र शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पहली से 5वीं तक के 35 प्रतिशत छात्रों ने ए-ग्रेड ली है। वहीं, 34 प्रतिशत छात्रों को बी, सी-ग्रेड लेने वाले 22 प्रतिशत छात्र, डी-ग्रेड लेने वाले 7 प्रतिशत व ई-ग्रेड लेने वाले प्रदेश भर में एक प्रतिशत छात्र हैं।

छठी से 8वीं का रिजल्ट

हैरानी इस बात की है कि छठी से आठवीं तक का जो रिजल्ट समग्र शिक्षा विभाग की ओर से तैयार किया गया है, उसमें खुलासा हुआ है कि केवल 18  प्रतिशत छात्र ही ए-गे्रड ले पाए है। इसी के साथ 26 प्रतिशत छात्रों को बी, सी-ग्रेड लेने वाले 29, डी-ग्रेड लेने वाले 19 प्रतिशत वहीं ई-ग्रेड लेने वाले 7 प्रतिशत छात्र है।

परिवहन और पर्यटन

हिमाचल प्रदेश परिवहन व पर्यटन बड़ा सेक्टर है, लेकिन कोरोना के चलते इस सेक्टर पर बड़ी मार पड़ी है। पर्यटन क्षेत्र से जुडे़ लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। कोरोना काल में परिवहन सेवा भी पटरी से उतर गई है। बता दें कि राज्य में पर्यटन क्षेत्र से लाखों लोग जुडे़ हुए हैं, मगर कोरोना महामारी ने इस क्षेत्र से जुडे़ लोगों को लाचार बना दिया है। परिवहन सेक्टर भी रेंग-रेंग कर चल रहा है। एचआरटीसी ने लगातार घाटे के चलते कई रूटों पर बसों का संचालन बंद कर दिया है। राज्य में 1800 से 2000 रूटों पर ही निगम प्रबंधन सेवा प्रदान कर पा रहा हे। यहीं आलम इंटरस्टेट रूटों पर भी बना हुआ है।

इंटरस्टेट रूटों पर भी बसों का संचालन मात्र 10 से 15 फीसदी तक रह गया है।  निजी सेक्टर में कोरोना महामारी से ज्यादा मार पड़ी है। निजी होटल संचालकों ने पर्यटकों के न आने पर अधिकतर कर्मचारियों को घर भेज दिया है। बीते साल भी कोरोना महामारी के चलते आ सेक्टर में कार्य करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो गए थे। निजी बस ऑपरेटर भी इसका दंश झेल रहे हैं। सवारियां न मिलने और राज्य सरकार की ओर से कोई सहायता न मिलने के चलते ऑपरेटर्ज ने प्रदेश में बसों को खड़ा कर दिया है। बता दें कि प्रदेश की जीडीपी में में पर्यटन का सात फीसदी तक योगदान रहता है।

समय पर पगार नहीं

कोरोना काल में सरकारी उपक्रम पर्यटन विकास निगम व एचआरटीसी में कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। एचआरटीसी के कर्मचारियों को कोरोना काल से ही समय पर वेतन की अदायगी नहीं हो पा रही है। पर्यटन विकास निगम के होटलों में भी यही आलम बना हुआ है। इस तरह की अव्यवस्था से सरकारी सेक्टर का अंदाजा लगाया जा सकता है।

राज्य सरकार के पास नहीं कोई पॉलिसी

कोरोना काल में लगातार घाटे को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा पथ परिवहन निगम को करोड़ों की ग्रांट जारी की गई है। निजी बस ऑपरेटर्ज को भी सहायता का आश्वासन दिया गया था। मगर ऑपरेटर्ज को ज्यादा राहत नही मिल पाई। राज्य सरकार उक्त सेक्टरों को उभारने के लिए कोई ठोस नीति तैयार नहीं कर पाई। जिसके चलते आज भी उक्त सेक्टर मंदी के दौर से गुजर रहा है।

कोरोना ने रोक दी दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग

राज्य में कोरोना आने से पहले इन्वेस्टर मीट करवाई गई। 97 हजार करोड़ के लगभग का निवेश यहां पर लाने के लिए देशी व विदेशी कंपनियों के साथ करार हुए। धर्मशाला में मेगा इवेंट किया गया जिसमें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे। इसके बाद उम्मीद थी कि हिमाचल में नया और बड़ा निवेश होगा, जिसमें लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा और हिमाचल नए सिरे से गति पकड़ेगा, परंतु ऐसा हुआ नहीं, क्योकि मार्च, 2020 में हिमाचल में आए कोरोना ने सब कुछ हिलाकर रख दिया। हालांकि इससे पहले सरकार ने पहली ग्राउंड बे्रकिंग सेरेमनी यहां पर करवा ली थी और उसमें साढ़े 14 हजार करोड़ रुपए का निवेश प्रस्तावित हुआ। ऐसे निवेशकों को सरकार ने मंजूरियां प्रदान कर दी, लेकिन इसमें से भी अभी पूरा निवेश धरातल पर नहीं उतरा है।

कोरोना की वजह से नए निवेशकों ने निवेश की दिशा में रुझान को तोड़ दिया। सरकार के बार-बार के प्रयासों के बाद भी इस क्षेत्र में कुछ बड़ा नहीं हो सका। ऐसे में सरकार ने दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी की सोची है, जिसमें उन प्रस्तावों को रखा गया है जिनको यहां पर मंजूरी मिल गई, मगर छह महीने से ज्यादा का समय हो चला है, सरकार बार-बार दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी करने की बात कह रही है, जो अभी तक नहीं हो पाई। दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग के लिए 10 हजार करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव यहां पर रखा गया है, जिसमें अलग-अलग श्रेणियों के उद्योगों को मंजूरियां दी हैं। मगर बताया यह जा रहा है कि उद्यमी अभी पैसा नहीं लगाना चाहते, जिनका मानना है कि मार्केट ठीक नहीं है। जब तक कोरोना का खौफ खत्म नहीं होता, वे लोग रुझान नहीं दिखा रहे हैं।

कोई नहीं चाहता सरकारी जमीन पर बसना

लैंड बैंक में जितनी जमीन सरकार के पास है, वह यूं ही पड़ी हुई है। वहीं, जो नए इंडस्ट्रीयल एरिया चिन्हित किए गए हैं, उनमें भी कोई निवेश नहीं आ रहा है। वहां पर भी प्लॉट्स बनाए गए हैं, जहां पर कोई बसने नहीं आ रहा है। अभी तक दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग की बात हवा-हवाई ही है। ऐसे में कोरोना नहीं होता, तो सरकार की योजना के मुताबिक यहां पर इन्वेस्टर मीट के बाद बड़ा निवेश होना था, मगर अब यह क्षेत्र पूरी तरह से ठंडा पड़ गया है। सरकार ने बजट में भी दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग करवाने का दावा किया है, मगर जो हालात इन दिनों में चल रहे हैं, वे आगे भी ऐसे ही रहते हैं, तो दूसरी सेरेमनी करना इतना आसान नहीं होगा।


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