अफसरों का अहंकार व सेवानिवृत्ति के बाद जीवन

अपने दैनिक जीवन यापन की सारिणी बनानी चाहिए तथा परमात्मा के ध्यान में कुछ समय गुजारना चाहिए। कोई हॉबी जैसे कि संगीत, लेखन, गार्डनिंग व बच्चों को पढ़ाने इत्यादि पर समय लगाना चाहिए। समाज सेवा में भी योगदान किया जा सकता है…

रिटायरमेंट एक परिर्वतन है। जिस तरह मौसम बदलता है उसी तरह मनुष्य के जीवन में अच्छे व बुरे दिन आते रहते हैं। वक्त तो किसी का कभी भी पलटी मार सकता है। वक्त बड़े बड़ों को अपना आईना दिखा देता है। जब तक इनसान के पास अधिकार होता है तब तक वह इतने घमंड में रहता है कि उसको छोटे-मोटे व्यक्ति की कोई परवाह नहीं होती। अधिकार के लालच में वह सामान्यतः अपने जमीर को भी बेच देता है। अधिकारियों की तो बात और भी निराली होती है। वे अपने आप को जागीरदार समझने लगते हैं तथा कनिष्ठ अधिकारियों व आम जनता की ज्यादा परवाह नहीं करते। अधिकार की हेकड़ी से अपने निजी कार्यों को बड़ी आसानी से करवा लेते हैं। अधिकारी बनते ही उनके सिर पर न जाने कौन सा दम्भरूपी भूत सवार हो जाता है कि वे अपने मूलभूत मानवीय मूल्यों को ताक पर रख कर अपनी अलग सी संस्कृति बना लेते हैं। सफेदपोश व असामाजिक तत्व जैसे तैसे अधिकारियों के साथ अपने संपर्क बनाने में कामयाब हो जाते हैं। कुछ भ्रष्ट, अनाचारी व अहंकारी अधिकारी तो सहज मान लेते हैं कि उनके अधिकार, कार्यक्षेत्र बहुत असीमित हैं। ऐसा भी देखा गया है कि जब कोई अधिकारी किसी सार्वजनिक महत्व के पद पर आसीन हो जाता है तब वह अपने को दूसरे समकालीन अधिकारियों से ज्यादा गुणवान, चतुर व कर्त्तव्यनिष्ठ समझने लग जाता है। उनके अवांछनीय अभिमान की झलक तो उनके परिजनों विशेषतः उनकी बीवियों में भी देखने को मिलती है जब वो भी कनिष्ठ अधिकारियों पर अपना रौब झाड़ने लग जाती हैं।

 ऐसे अधिकारी शायद भूल जाते हैं कि वे अपने पद से तो कुछ समय के लिए ही सुशोभित हैं तथा इनसानियत जिसका प्रभाव चिरस्थाई रहता है, केवल वो ही उनको लोगों की नजरों में प्रतिष्ठित व प्रज्ञावान बना सकती है। दूसरों की समस्या को अपनी समस्या समझ कर सुलझाने का काम बहुत कम अधिकारी करते हैं तथा किसी आम व्यक्ति के टेलीफोन को सुनना तो वे अपना अपमान समझते हैं। उनको नहीं भूलना चाहिए कि उनकी शौहरत व दौलत तो वक्त के थपेड़ों से न जाने कब चकनाचूर हो जाएगी। परमात्मा ने उन्हें जनता विशेषतः गरीब, असहाय व असमर्थ लोगों की सेवा का एक महान अवसर दिया हुआ है तथा इन अनमोल क्षणों को व्यर्थ में न गंवाएं। महान राजा सिकंदर का उदाहरण तो हम सबके सामने ही है कि जब  वह इस दुनिया से गया, तो उसके दोनों हाथ खाली ही थे। जब तक आप अधिकारी हैं तब तक आपको घोड़ा-गाड़ी, कुक तथा व्यक्तिगत सुरक्षा कर्मचारी इत्यादि मिले होते हैं, मगर कभी आपने सोचा कि रिटायरमेंट के दूसरे दिन ही यह सारी सुविधाएं आपसे छीन ली जाएंगी तथा फिर आप एक आम नागरिक की श्रेणी में बांधे जाओगे। जब व्यक्ति अर्श से फर्श पर गिरता है तब शारीरिक व मानसिक चोटें आना स्वाभाविक है तथा फिर कोई भी व्यक्ति यहां तक कि आपके रिश्तेदार भी आपके साथ सहानुभूति प्रकट नहीं करेंगे। ऊंची हवा में उड़ती हुई पतंग जल्दी कट कर नीचे गिर जाती है तथा केवल वह पेड़ जिसकी मजबूत जडे़ं धरती से सटी होती हैं, केवल वो ही तेज हवाओं के झोंकों से गिरने से बच पाता है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि अधिकारियों को जमीन पर पांव रख कर चलना चाहिए तथा कभी नहीं भूलना चाहिए कि शतरंज का खेल समाप्त हो जाने पर राजा व सिपाहियों को एक ही डिब्बे में डाल कर रखा जाता है।

 कई अधिकारी तो रिटायर होना ही नहीं चाहते तथा जैसे ही उनकी रिटायरमंेट नजदीक आती जाती है तब वो अपनी जमीर को बेच कर राजनीतिज्ञों के तलवे चाटने शुरू कर देते हैं। कुछ अधिकारी तो इतने छटपटा जाते हैं कि वो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाते हैं तथा टिकट या किसी अन्य ओहदे की उम्मीद में अपना सारा कमाया हुआ धन भी नष्ट कर लेते हैं। ऐसे अधिकारियों को कई प्रकार की बीमारियां जैसे कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दिल इत्यादि की व्याधियां घेर लेती हैं तथा उनकी जीवन लीला जल्दी ही समाप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति अपनी जिंदगी में कभी भी संतुष्ट नहीं रहते तथा उनके छटपटाने का प्रभाव उन पर ही नहीं बल्कि उनकी संतान पर भी पड़ता है तथा स्वर्ग व नर्क का दृश्य उन्हें अपने जीवनकाल में ही देखने को मिल जाता है। आमतौर यह भी देखा गया है कि अभिमान व दंभ से ग्रस्त अधिकारी जब सेवानिवृत्त हो जाते हैं तो सेवारत कर्मचारी उन्हें देखते ही अपना मुंह फेर लेते हैं, जबकि दूसरी ओर ऐसे भी कुछ ईमानदार मिलनसार व अपनी गरिमा को संजोए हुए होते हैं जिन्हंे देखते ही सभी उनका अभिवादन करने के लिए उनकी तरफ लपक पड़ते हैं। इसलिए यदि वास्तव में अधिकारी अपना मान, सम्मान बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें समय रहते ही अभिमान जैसी नकारात्मक वृत्तियों से दूर होकर जन-मानस की सच्चे मन से सेवा करनी चाहिए। अधिकारियों को समय रहते ही अपने आगामी जीवन की तैयारी कर लेनी चाहिए। उन्हें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। वानप्रस्थ जीवन यानी मोह-ममता से मुक्त होकर अपना व्यवस्थित व नियंत्रित जीवन जीना चाहिए। आध्यात्मिक जीवन की ओर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए तथा दूसरे लोगों विशेषतः नौजवानों का मार्गदर्शन करना चाहिए।

 अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करते हुए स्कूल, सरांय, मंदिर, गुरुद्वारों पर अपनी नेक कमाई का कुछ अंश लगाना चाहिए। अपने दैनिक जीवन यापन की सारिणी बनानी चाहिए तथा परमात्मा के ध्यान में कुछ समय गुजारना चाहिए। कोई हॉबी जैसे कि संगीत, लेखन, गार्डनिंग व बच्चों को पढ़ाने इत्यादि पर समय लगाना चाहिए। किसी एनजीओ का सदस्य बन कर भी समाज सेवा में अपना योगदान दे सकते हैं। खुद को अकेला महसूस मत होने दें तथा अपनी सेवानिवृत्ति को सकारात्मक तरीके से जीएं। नौकरी की तलाश में मत भटकें। सरकार ने हर अधिकारी/कर्मचारी को पर्याप्त धनराशि दी हुई होती है तथा साथ में पेंशन भी दी जाती है। अपने मन में किसी भी प्रकार की आसक्ति न पालें। अपनी सोच में परिवर्तन लाना आवश्यक है। अभिमान की बजाय स्वाभिमान को जगाएं। एक अच्छा इनसान बनने की कोशिश करें तथा नैतिक मूल्यों की पहचान करें। जीवन की किताब के लेखक आप खुद हैं। कबीर जी की इन पंक्तियों पर जरा ध्यान दें तथा अपना जीवन सकारात्मक ढंग से जीएं ः ‘कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसा हम रोए। ऐसी करनी कर चलो हम हंसे जग रोये।’

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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