दिल दहला गई दरिंदगी की दास्तांं

इस तरह की घटनाओं के बाद कुछ दिन के लिए जरूर सभी लोग सोचते हैं, लेकिन जैसे ही समय बीतता है तो सारी बातें मानस पटल से ओझल हो जाती हैं और फिर से कोई हादसा हमें आतंकित कर देता है। इसलिए सामाजिक सुरक्षा के इस मुद्दे पर गहनता से सोचने की जरूरत है…

ऊना जिला के अंतर्गत पड़ने वाले उपमंडलीय कस्बे अंब में एक पंद्रह वर्षीय बेटी के साथ हुई हैवानियत की जो कहानी पुलिस के द्वारा मीडिया के सामने बताई गई, वो दिल दहला देने वाली है। एक मासूम जो अपने सुनहरे भविष्य के सपने संजोए अकेली घर में पढ़ाई में व्यस्त थी, उस पर जिस प्रकार से एक वहशीपन से भरी हुई मानसिकता ने आक्रमण किया वो सचमुच रौंगटे खड़े करता है। बेटी को घर में अकेली देखकर घर में घुसने के लिए अनेक तरह के प्रयत्न करने के बाद जब आखिरकार कातिल घर में प्रवेश कर जाता है तो उसके बाद भी उस बहादुर बेटी ने उसका कड़ा मुकाबला किया जिसका खामियाजा उस बेचारी को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है। बेटी का अपना पेपर कटर ही उसके गले को रेतने का हथियार बन जाता है। इस सारे समय में उस बेटी ने अकेले होते हुए किस प्रकार की प्रताड़ना, दर्द को सहा होगा और वो उन पलों में कितने डर के माहौल से गुजरी होगी, इसकी कल्पना मात्र भी शरीर में सिहरन पैदा कर देती है। इस घटना ने पूरे प्रदेश में एक दहशत से भरा माहौल बना दिया है और विशेषकर वो दंपति जो नौकरी या व्यवसाय करते हैं और जिनके बच्चे घरों में अकेले रहते हैं, वे इस घटना के बाद अपने बच्चों की सुरक्षा के प्रति बेहद चिंतित भी हैं। हिमाचल प्रदेश एक शांत राज्य के रूप में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और प्रदेश की इसी विशेषता के अनुरूप यहां के निवासी भी शांतिप्रिय और नरम दिल हैैं। प्रदेश में ये पहली घटना है जब किसी स्थानीय निवासी द्वारा अपने ही क्षेत्र में इस तरह की क्रूर घटना को अंजाम दिया गया हो।

 इससे पहले की घटनाओं में इतनी हैवानियत केवल तभी देखने को मिलती थी जब कोई बाहरी राज्य का व्यक्ति इस तरह की घटना में शामिल होता था। इस तरह की हैवानियत को एक सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है। नशे का बढ़ता प्रभाव और नैतिक मूल्यों में गिरावट ही इस तरह के कृत्यों को अंजाम देने का मुख्य कारण बनती है। जिस तरह का वहशीपन मासूम बेटी के साथ किया गया है, उस तरह की सजा का प्रावधान भारतीय कानून में भी नहीं है, लेकिन कानून अपने हिसाब से अपराधी को सजा और बेटी तथा उसके परिवार को समय पर न्याय अवश्य देगा, ऐसा हर प्रदेशवासी चाहता है। देवभूमि की इस बेटी के साथ हुई हैवानियत को ऊना पुलिस ने बहत्तर घंटे से भी कम समय में सुलझा कर प्रदेशवासियों को अपराध के प्रति पुलिस की शून्य सहनशीलता का एक उदाहरण पेश किया है। अपराध के बाद दोषी को जल्दी से पकड़ना और उसको कोर्ट द्वारा सजा देना कानून एवं व्यवस्था का केवल एक पहलू है, लेकिन अपराध होने ही न देना भी कानून एवं व्यवस्था का एक जरूरी और महत्त्वपूर्ण पक्ष है। अपराध होने के बाद दोषी को भले ही पकड़ लिया जाता है, लेकिन एक अपराधी द्वारा किया गया कृत्य लंबे समय तक कई परिवारों को सदमे में धकेल देता है। अपराध न हो, इसके लिए अपराधियों को कानून का डर और पुलिस की नजर का भय हमेशा बना रहना चाहिए। अपराध को अंजाम देने के लिए प्रयोग होने वाली अपराधी की ताकत कानून के खौफ से खत्म हो जानी चाहिए। एक अपराधमुक्त समाज से बड़ा वरदान जनता के लिए और कोई नहीं हो सकता। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के चुनावों में अपराधमुक्त समाज की कल्पना ही योगी आदित्यनाथ को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब सिद्ध हुई है।

 इससे प्रतीत होता है सामाजिक सुरक्षा के प्रति लोग कितने गंभीर हैं। ऐसी घटनाओं को केवल तभी अंजाम दिया जाता है जब ऐसे दरिंदों को कानून का डर नहीं होता है या उनको लगता है कि मेरी इस हरकत का किसी को भी कोई पता नहीं चलेगा और कानून उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता है। इस तरह की बढ़ रही मानसिकता को खत्म करने के लिए कुछ विशेष उपाय सरकार को करने की आवश्यकता है। गांवों और शहरों के प्रत्येक चौराहों के साथ-साथ कुछ गोपनीय स्थानों पर सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था और पंचायत स्तर तक पुलिस पेट्रोलिंग से यह संभव हो सकता है। इस तरह की मानसिकता और गुंडा तत्त्वों से निपटने के लिए पुलिस को भी कुछ विशेषाधिकार देने की जरूरत है ताकि ऐसी मानसिकता को पनपने से पहले ही समाप्त किया जा सके। आज बेटी को और परिवार को न्याय देने की मांग हर तरफ से उठ रही है, लेकिन एक पीडि़त को न्याय के साथ-साथ एक सुरक्षित समाज के लिए मांग भी उतनी ही आवश्यक है ताकि इस तरह की वारदातों पर हमेशा के लिए पूर्णविराम लगाया जा सके।  बेटी का कातिल एक विशेष समुदाय से संबंधित होने के कारण क्षेत्रवासियों की धार्मिक भावनाएं भी आहत हुई हैं। कोई भी धर्म इस तरह के कृत्यों की शिक्षा नहीं देता, इसलिए इस तरह की गिरी हुई मानसिकता से मुकाबला करने के लिए समाज को मिलकर विचार करने की जरूरत है। आबादियों से बाहर निकल कर सुनसान और शांत जगहों पर घर बनाने का प्रचलन और संयुक्त परिवारों को छोड़कर अलग-अलग जगहों पर परिवारों का बिखराव भी अपने साथ कई तरह के दुष्प्रभावों को लेकर आया है। अकेले रहने की विकसित होती प्रवृत्ति पर भी एक बार फिर से विचार करने की जरूरत है। आराम के एवज में सुरक्षा से समझौता किया जा रहा है।

 अगर इस हैवानियत की घटना के कुछ बिंदुओं को गौर से देखा जाए तो ऐसा लगता है कि अगर बेटी घर में अकेली न होती या फिर नजदीक कोई आबादी होती तो शायद उसकी जान बच सकती थी। अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं, उससे पता चलता है कि कातिल अपने साथ कोई हथियार लेकर नहीं आया था, बेटी को अकेले घर में देखकर ही उसने इस तरह का दरिंदगी भरा कदम उठाया है। इसलिए संयुक्त परिवारों के फायदों का एक बार फिर से आकलन करने की जरूरत है। इस तरह की घटनाओं के बाद कुछ दिन के लिए जरूर सभी लोग सोचते हैं, लेकिन जैसे ही समय बीतता है तो सारी बातें मानस पटल से ओझल हो जाती हैं और फिर से कोई हादसा हमें आतंकित कर देता है। इसलिए सामाजिक सुरक्षा के इस मुद्दे पर गहनता से सोचने की जरूरत है। अगर आज कड़े कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में इस तरह की मानसिकता को खत्म करना आसान नहीं होगा। हमारे प्रदेश की  संस्कृति और इतिहास पर लग रहे ऐसे काले धब्बों को रोकना बहुत आवश्यक है।

राकेश शर्मा

लेखक जसवां से हैं


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