पंजाब की घेराबंदी के प्रयास

बारामूला के उस व्यक्ति ने फरीदकोट में मस्जिद के लिए सारी अदायगी की। केरल में जब इस संस्था के व्यवसाय की जांच हो रही थी तब जाकर सारा भेद खुल कर सामने आया और षड्यंत्र के तार बरास्ता कश्मीर पंजाब तक जुड़े हुए हैं। लेकिन यह तार यहीं तक सीमित नहीं हैं। अमृतसर के आसपास पाकिस्तान सीमा के पास-पास पिछले कुछ साल से कश्मीरी गुज्जर पुश्तैनी प्रवास करते हैं। वहीं ज़मीन व खेत ख़रीद कर स्थायी रूप से बस गए हैं। कुछ गांव ऐसे हो गए हैं जहां जाटों की संख्या अल्पसंख्यक हो गई है और कश्मीरी गुज्जर मुसलमानों की संख्या ज्यादा हो गई है। पिछले दिनों इन कश्मीरी गुज्जरों का स्थानीय जाटों से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। उस दिन से जाट गांव छोड़ कर भाग गए हैं। प्रशासन कोशिश कर रहा है कि किसी तरह जाट वापस आ जाएं। यह भी कहा जा रहा है कि जब कभी झगड़ा होता है तो आसपास के गांवों के कश्मीरी मुसलमान गुज्जर एकत्रित हो जाते हैं। पंजाब में पिछले कुछ दशकों से सीमांत पर धड़ाधड़ मस्जिदें ही नहीं बनाई जा रही हैं, बल्कि सहारनपुर के आसपास के सैयद आकर उन मस्जिदों पर मौलवी के रूप में कब्जा कर लेते हैं…

केरल में एक गैर सरकारी संस्था रिलीफ एंड चैरीटेबल फाऊंडेशन के नाम से पिछले इक्कीस साल  से काम कर रही है। संस्था गैर सरकारी है तो वह अपने क्रियाक्कलापों के लिए विदेशों से पैसा प्राप्त करती है। क्योंकि विदेशी संस्थाएं भारत में रिलीफ और चैरिटी को लेकर जरूरत से ज्यादा चिंतित रहती हैं, उनकी इस चिंता को इधर की कुछ गैर सरकारी संस्थाएं बख़ूबी समझती हैं। इसलिए एक संस्था देने वाली होती है और दूसरी संस्था लेने वाली हो जाती है। ज़ाहिर है नीतिगत निर्णय भी देने वाला ही करता है। लेने वाला तो अपना दाल-फुल्का चल पड़ने से ही प्रसन्न हो जाता है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि देने वाला ख़ुद भारत में लेने वालों की तलाश करता है, क्योंकि भारत में उसे अपना एजेंडा लागू करना है। ज़ाहिर है लेने वाले को मिल ही जाएंगे। रिलीफ एंड चैरिटेबल फाऊंडेशन भी लेने-देने के इस लक्ष्मी मार्ग पर चलते हुए काफी लंबे अरसे से  कार्य कर रही है। यह अलग बात है कि यह संस्था भारत सरकार से भी चैरिटी के लिए पैसा लेती है।

 वैसे भी नाम से यह संस्था निरापद टाइप की ही लगती है। कुछ कुछ सैक्युलर टाइप की। अब तक यह समझा जाता था कि यह संस्था चैरिटी और रिलीफ के नाम पर जो कुछ भी कर रही थी, वह केरल तक ही सीमित होगा। कहा भी गया है कि चैरिटी बिगनज एट होम। लेकिन इधर सरकार ने थोड़ा ज्यादा सूंघने पर पाया कि इस संस्था की चैरिटी की कहानियां तो सुदूर पंजाब तक फैली हुई हैं। वैसे तो यह ठीक भी है। दान करते समय अपना-पराया नहीं देखना चाहिए। केरल की इस संस्था का भी यही मानना है। लेकिन इस संस्था की तो पंजाब में कोई इकाई भी नहीं है। इसलिए सरकार का मत होगा कि एक बार देख लिया जाए कि यह संस्था पंजाब में चैरिटी के कौन कौन से काम कर रही है। तब पता चला कि इस संस्था ने चैरिटी का कोई काम नहीं किया लेकिन पंजाब-पाकिस्तान की सीमा से लगभग चालीस पचास किलोमीटर की दूरी पर तीन भव्य मस्जिदों का निर्माण किया है। ये मस्जिदें 2015-2017 के बीच बनाई गई थीं। एक मोटे अनुमान के अनुसार इन मस्जिदों के निर्माण पर लगभग सत्तर करोड़ रुपया ख़र्च किया गया। वैसे इस संस्था के संविधान में मस्जिदों का निर्माण इसके उद्देश्यों में नहीं लिखा गया।  नहीं लिखा हुआ। सबसे ताज्जुब की बात यह कि इस संस्था ने फरीदकोट की इन मस्जिदों के निर्माण के लिए प्रत्यक्ष रूप से किसी से संपर्क नहीं किया है। केरल की इस संस्था ने यह पैसा कश्मीर के एक सज्जन को दे दिया।

बारामूला के उस व्यक्ति ने फरीदकोट में मस्जिद के लिए सारी अदायगी की। केरल में जब इस संस्था के व्यवसाय की जांच हो रही थी तब जाकर सारा भेद खुल कर सामने आया और षड्यंत्र के तार बरास्ता कश्मीर पंजाब तक जुड़े हुए हैं। लेकिन यह तार यहीं तक सीमित नहीं है। अमृतसर के आसपास पाकिस्तान सीमा के पास-पास पिछले कुछ साल से कश्मीरी गुज्जर पुश्तैनी प्रवास करते हैं। वहीं ज़मीन व खेत ख़रीद कर स्थायी रूप से बस गए हैं। कुछ गांव ऐसे हो गए हैं जहां जाटों की संख्या अल्पसंख्यक हो गई है और कश्मीरी गुज्जर मुसलमानों की संख्या ज्यादा हो गई है। पिछले दिनों इन कश्मीरी गुज्जरों का स्थानीय जाटों से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। उस दिन से जाट गांव छोड़ कर भाग गए हैं। प्रशासन कोशिश कर रहा है कि किसी तरह जाट वापस आ जाएं। यह भी कहा जा रहा है कि जब कभी झगड़ा होता है तो आसपास के गांवों के कश्मीरी मुसलमान गुज्जर एकत्रित हो जाते हैं। पंजाब में पिछले कुछ दशकों से सीमांत पर धड़ाधड़ मस्जिदें ही नहीं बनाई जा रही हैं, बल्कि सहारनपुर के आसपास के सैयद आकर उन मस्जिदों पर मौलवी के रूप में कब्जा कर लेते हैं। इस मस्जिद निर्माण कार्य में पंजाब पुलिस के कुछ अधिकारी भी शामिल थे।

इन सभी मस्जिदों और मज़ारों को लेकर दो दशक पहले हरजीत सिंह ग्रेवाल ने पंजाब के पूरे सीमांत का दौरा किया था और सरकार को एक रपट भी पेश की थी। ग्रेवाल का कहना है कि पिछली सरकारें भी और वर्तमान सरकार भी राष्ट्रीय हित के इस प्रश्न पर समुचित ध्यान नहीं दे पा रही हैं। आज बीस साल बाद भी सरकार के पास इस पूरे षड्यंत्र के पीछे छिपे किसी अदृश्य हाथ की न तो पहचान कर पाई है और न ही उसे रोक सकी है। अकेले फिरोजपुर जिला में ही सीमांत पर दो सौ के लगभग मस्जिदें हैं जो हाल ही में उग आई हैं। चिंता इसलिए भी है क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी का शासन आ गया है और उसके लिए यह प्रश्न ही गौण है। उसका सुख सत्ता प्राप्ति से ही जुड़ा हुआ था। पंजाब को एक ओर से मस्जिद वाले घेर रहे हैं और दूसरी ओर से चर्च वाले घेराबंदी कर रहे हैं। समाचार आते रहते हैं कि चर्च तेज़ी से चंगाई सभाओं  का आयोजन करता है। जिस गांव में दो-चार लोग भी ईसाई मत में मतांतरित हो जाते हैं वहीं बिशप न जाने कहां से निकाल कर तुरंत वहीं चर्च बनाने के लिए भूमि पूजन शुरू कर देता है। कोई यह नहीं पूछता कि इसके लिए बिशप के पास अकूत पैसा कहां से आया?

जिन जाटों के बारे में पहले चर्च ही यह कहता था कि पंजाब में किसी जाट को मतांतरित करना सबसे कठिन काम है, आज वही चर्च कह रहा है कि जाटों के लड़के तो स्वयं ही दूसरों को ईसाई होने के लिए ला रहे हैं। देखने वाली बात यह है कि पंजाब एक सीमांत राज्य है। इसकी सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं। पाकिस्तान हर वक्त इस कोशिश में रहता है कि पंजाब में किसी न किसी तरह हिंदुओं और सिखों को आपस में लड़ाया जाए ताकि देशभर में सांप्रदायिक हिंसा फैल सके। पंजाब पहले भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का कई दशकों तक सामना कर चुका है। इस दौर में जहां हजारों की संख्या में आम लोग हिंसा का शिकार हुए, वहीं सुरक्षा बलों को भी भारी जानी नुकसान उठाना पड़ा। बड़ी मुश्किल से पंजाब में शांति स्थापित की जा सकी। इसके लिए असंख्य सुरक्षा बल कर्मियों व आम लोगों ने शहादत दी। पंजाब में स्थापित अमन-चैन पाकिस्तान को रास नहीं आ रहा है। इसलिए वह फिर से पंजाब में गड़बड़ कराना चाहता है। ऐसी स्थिति में पंजाब का वातावरण फिर खराब न हो, इसके लिए सतर्कता बरतनी होगी।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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