आर्यावर्त की विरासत योग का जयघोष

विश्वभर के वैज्ञानिक हमारे आचार्यों द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करके शोध करते आए हैं। मौजूदा दौर में शारीरिक व मानसिक समस्याओं का कारण भौतिक सुख-सुविधाएं व आधुनिक जीवनशैली है। अतः सकारात्मक ऊर्जा का संचार तथा फिटनेस का माध्यम केवल योग है…

सृष्टि की शुरुआत से ही सांस्कृतिक धरातल व कई सभ्यताओं की जन्मस्थली रहे ‘जगत गुरू’ भारतवर्ष के इस मुकद्दस भूखंड पर हमारे मनीषियों ने मानवता की भलाई के लिए कई ग्रंथों की रचना व कई विद्याओं की उत्पत्ति कर दी थी। ‘योग’ परंपरा आर्यावर्त की उन्हीं प्राचीन विद्याओं में से एक है। भारतीय संस्कृति में योगिक परंपरा की शुरुआत भगवान शिव से मानी जाती है। सनातन संस्कृति में एकाग्रता से ध्यान समाधि का उद्देश्य आत्मबल व मानसिक स्वास्थ्य को मजबूती प्रदान करने से रहा है। वैदिक काल से ही हमारे ऋषि मुनियों की जीवन शैली आध्यत्मिक ज्ञान व योगिक साधना से जुड़ी हुई थी। योग के  साक्ष्य ‘ऋग्वेद’ से लेकर हमारे कई प्राचीन ग्रंथों व पुराणों में विद्यमान हैं। महर्षि ‘याज्ञवल्क्य’ द्वारा रचित ‘योगयाज्ञवल्क्य’ ग्रंथ को योग का सबसे प्राचीनतम् दस्तावेज माना जाता है। ‘गुरू गोरखनाथ’ ने योग पर आधारित 190 श्लोकों के ग्रंथ ‘योगबीज’ की रचना की थी। ‘घेरण्ड मुनि’ द्वारा रचित ‘घेरण्ड संहिता’ भी योग का ही ग्रंथ है।

 आचार्य हेमचंद्र ने ‘योगशास्त्र’ नामक ग्रंथ लिखा था। मगर महर्षि ‘पतंजलि’ का नाम लिए बिना योग पर कोई भी चर्चा अधूरी रहेगी। योग पद्धति को योग विज्ञान के रूप में व्यवस्थित करके वैश्विक पटल पर लाने में महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान है। योग पद्धति व रसायन विद्या के आचार्य महर्षि पतंजलि ने योग विज्ञान विषय पर गहन शोध करके योग के प्रमुख ग्रंथ ‘योगसूत्र’ की रचना की थी। भारतीय दर्शन में योगविद्या का सबसे विस्तृत उल्लेख पतंजलि के इसी ‘योगसूत्र’ में हुआ है। कई योग मुद्राओं से परिपूर्ण ग्रंथ योगसूत्र का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। चिकित्सा विज्ञान योगिक क्रियाओं को रोग विकारों से लड़ने में सक्षम मान चुका है। विश्वभर के डॉक्टर व वैज्ञानिक स्वस्थ व तनावमुक्त रहने के लिए भारत की योग परंपरा को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना चुके हैं। दुनिया में कई बीमारियों से जूझ रहे लोगों ने योग विज्ञान प्रक्रिया के माध्यम से कई रोगों से निजात पाई है। इसीलिए पूरा विश्व भारत की विरासत ‘योग’ के आगे नतमस्तक है। मगर विडंबना है कि भारत की प्राचीन विद्या जिसे हमारे ऋषियों ने अपनी कड़ी मेहनत, शोध व अनुभवों से विश्व के कल्याण के लिए ग्रंथों में संजो कर रखा था, इस अनमोल उपहार ‘योग’ को वैश्विक स्तर पर पहचान सन् 2015 में जाकर मिली। योग के महत्व को समझते हुए ‘संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा’ ने 11 दिसंबर 2014 को योग पर भारत के प्रस्ताव को पूरे सम्मान से आत्मसात करके 21 जून का दिन ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में घोषित किया था। विश्व के 177 देशों ने भारत के पक्ष में समर्थन देकर योग पद्धति के प्रति अपना आभार व्यक्त किया था।

 21 जून के दिन भारत योग कला के रूप में विश्व का प्रतिनिधित्व करता है। पिछले दो वर्ष में कोरोना महामारी से उपजे निराशा व अवसाद भरे माहौल में लोगों का मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कोरोना के उस दौर में विश्व के करोड़ों लोगों ने रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व मानसिक तनाव से उबरने के लिए निरोग मंत्र ‘योग’ का ही सहारा लिया था। सन् 2020 में योग दिवस के अवसर पर नीदरलैंड की रक्षा मंत्री ‘ऐंक विजलेबल’ ने दुनिया को उत्तम विद्या योग का शानदार तोहफा देने के लिए भारत को शुक्रिया कहा था। विजलेबल के अनुसार सशस्त्र बलों में आंतरिक शांति व मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए योग मददगार साबित हो रहा है। सूर्य की उष्मा एवं प्रकाश से स्वास्थ्य में अभूतपूर्व लाभ होता है। इसीलिए सूर्य नमस्कार का संबंध योग व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से जुड़ा है। जर्मन के मशहूर मनोवैज्ञानिक ‘फ्रांज मैस्मर’ ने खुलासा किया था कि हमारे चारों तरफ एक ऐसी शक्ति मौजूद है जिसे भारतीय योगी व तपस्वी प्राणशक्ति कहते थे। हमारे महान् ऋषि मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व अपने योग, तप व आदर्श साधना के मार्गों पर चल कर ज्ञान की उच्चतम स्थिति पर पहंुच कर प्रकृति व ब्रह्मांड के कई गूढ़तम रहस्यों पर शोध करके उस अद्भुत ज्ञान को वेदों, पुराणों, उपनिषदों व अन्य पौराणिक ग्रंथों में संरक्षित कर दिया था। योग रूपी अग्नि में तप कर व योग साधना की कड़ी तपस्या से दिव्य दृष्टि को प्राप्त करने वाले हमारे आचार्यों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भरा यही ज्ञान इस वैज्ञानिक युग में भी मानव जाति के उद्धार के लिए लाभप्रद साबित हो रहा है। ज्ञान का सागर ‘श्रीमद्भागवद्गीता’ में श्रीकृष्ण ने ज्ञानयोग, भक्तियोग व कर्मयोग का ज्ञान दिया है। श्री कृष्ण के अनुसार ‘योगस्थः कुरू कर्माणी’ अर्थात् योग में स्थिर हो सद्चित संभव है। विश्वभर के वैज्ञानिक हमारे आचार्यों द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करके शोध करते आए हैं।

 मौजूदा दौर में शारीरिक व मानसिक समस्याओं का कारण भौतिक सुख सुविधाएं व आधुनिक जीवनशैली है। अतः मानसिक शांति, कई जानलेवा बीमारियों से निजात पाने के लिए व शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार तथा फिटनेस का माध्यम केवल योग है। भागदौड़ भरी दिनचर्या, पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ रहा अंधानुकरण, बच्चों पर अंग्रेजी शिक्षा का बढ़ता मानसिक दबाव व सामाजिक परिवेश में फैल रही नशाखोरी जैसी बुराइयों के चलते स्वस्थ व सभ्य समाज की स्थापना तथा आध्यत्मिक उत्थान के लिए योग विद्या को अपनाना जरूरी है। योग विद्या में वो शक्ति है जो मनुष्य के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। योग का उद्देश्य जीवन के समग्र विकास से है। अतः युवा पीढ़ी में नैतिकता व उच्च चरित्र के निर्माण का एकमात्र जरिया भी योग है। देश के कई शिक्षण संस्थान योग की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। योग पद्धति के विस्तार में कई योग साधक योग गुरू के रूप में अपना अग्रणी योगदान दे रहे हैं। देश के कई युवा योग प्रशिक्षक के तौर पर योग में अपना कैरियर बना चुके हैं। हमारे महर्षियों की बहुमूल्य विरासत योग विज्ञान की प्रासंगिकता इस वैज्ञानिक युग में भी पूरे विश्व में फैल चुकी है। बहरहाल विश्व योग दिवस के अवसर पर योग के प्रतीक पुरुषों व योग के विशारद महर्षि पतंजलि जैसे आचार्यों का स्मरण भी होना चाहिए ताकि विश्व को पता चले कि भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भों में से एक योग संस्कृति के ध्वजवाहक व वास्तविक योग गुरू ‘महर्षि पतंजलि’ थे।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App