हुनर का जीवन, जीवन का हुनर

By: Jul 28th, 2022 12:06 am

बेरोजग़ारी से जूझ रहे युवाओं पर भी यही बात लागू होती है, इसलिए मैं यह नहीं कहूंगा कि हर व्यक्ति उद्यमी ही बने। मैं बस यह कहना चाहता हूं कि रोजग़ार के लिए जैसे नौकरी एक विकल्प है, वैसे ही उद्यम भी एक अच्छा विकल्प है और युवाओं को इस विकल्प को भी ध्यान में रखना ही चाहिए। कार्पोरेट जगत में जब हम किसी समस्या का समाधान करने की कोशिश करते हैं तो सभी संबंधित व्यक्तियों के सुझाव लिए जाते हैं। इस तरह अलग-अलग सोच, अनुभव और पृष्ठभूमि वाले लोगों के सुझाव जब सामने हों तो समस्या के समाधान के कई नए दरवाज़े खुल जाते हैं। फिर उनमें से सबसे बढिय़ा तीन सुझावों पर तो विचार होता ही है, इसके अलावा दो-तीन या ज्यादा सुझावों को मिलाकर कोई नया एक्शन प्लान बनाने की भी कोशिश होती है…

बेरोजग़ारी की समस्या विकराल है। आज़ादी के बाद से ही देश इस समस्या से लगातार जूझ रहा है और किसी को कोई हल नहीं सूझ रहा। लगातार बढ़ती आबादी ने आग में घी का काम किया है। योजनाएं बनती हैं, घोषणाएं होती हैं, पर आगे कुछ नहीं होता। नई तकनीक ने कइयों को अरबपति बना दिया तो बहुत से लोगों को बेरोजग़ार भी किया। कोरोना वायरस ने जो हाहाकार मचाई वो अलग। बेरोजग़ार आदमी हर रोज़ उम्मीद लेकर निकलता है, इंटरव्यू देता है और असफल होकर लौट आता है। बड़ी बात यह है कि यह परेशानी उन लोगों के साथ ही है जिन्होंने मां-बाप के पैसे खर्च करके पढ़ाई की, स्कूल-कालेज में सालों-साल लगाए, डिग्री हासिल की और अब वो बेरोजग़ारी का ज़हर पी रहे हैं। बेरोजग़ारी व्यक्ति का आत्मविश्वास खत्म कर देती है, आदमी का रुतबा घट जाता है, सम्मान घट जाता है, और व्यक्ति अक्सर अपनी ही नजऱों में गिर जाता है।

ऐसे व्यक्ति को एक तरफ तो यह अभिमान है कि वह शिक्षित है, इसलिए वह कोई ‘छोटा’ काम नहीं कर सकता, दूसरी तरफ हालत ये है कि जेब ही फटी हुई है। उच्च शिक्षा का अभिमान है और मजबूरी का श्राप है। ऐसे में आदमी पूरी तरह से टूट जाता है, लेकिन शायद जल्दी सबक नहीं ले पाता। चपरासी के पद का विज्ञापन निकलता है और पचास हज़ार लोग आवेदन कर देते हैं। इन आवेदनकर्ताओं में ऐसे लोग भी शामिल होते हैं जो उच्च शिक्षित हैं। नौकरी का लालच और उसमें भी सरकारी नौकरी का लालच इतना बड़ा है कि वह आदमी की सोचने-समझने की शक्ति कुंद कर देता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बेरोजग़ारी का ज़हर बहुत खतरनाक है, पर समस्या बेरोजग़ारी नहीं है। दरअसल, हम जिसे समस्या मान रहे हैं, वह समस्या नहीं, हमारी गलत सोच का नतीजा है। हमने खुद ही एक बड़े अवसर को समस्या बना डाला है। इस समस्या के तीन पहलू हैं। पहला तो यह कि हम यह मान कर चलते हैं कि नौकरी देना सरकार का काम है, दूसरा यह कि पढ़े-लिखे होने का मतलब यह है कि हम बहुत से कामों को ‘छोटा’ मानने लग गए, उसे ‘छोटे आदमियों का काम’ मानने लग गए और श्रम को सम्मानित करने के बजाय उसे हिकारत की निगाह से देखने लग गए, और तीसरा यह कि हमने यह मान लिया है कि रोजग़ार का मतलब नौकरी है। नौकरी तो रोजग़ार की एक किस्म है, खेती भी रोजग़ार है, बिजऩेस भी रोजग़ार है।

हम पढ़ाई करें, उच्च शिक्षित हों, हमें तकनीक का ज्ञान हो, हमें नए रुझानों की जानकारी हो, यह तो अच्छा ही है, पर इस सबके कारण हमारे अहंकार का गुबारा यूं न फूल जाए कि हम ‘डिगनिटी आफ लेबर’ को भूल जाएं, श्रम की महत्ता को भूल जाएं और उसे सम्मान देने के बजाय नीची निगाहों से देखने लगें। अगर कोई पढ़ा-लिखा युवक खाली है तो वह नए हुनर सीख सकता है, खुद को और ज्यादा काबिल बना सकता है और समाज के लिए ज्यादा लाभदायक व्यक्ति बन सकता है। नई तकनीक और मार्केटिंग के नए तरीकों और साधनों से वाकिफ एक युवा खेती की उपज बढ़ा सकता है, अपनी फसल को ऑनलाइन बेच सकता है, औरों से ज्यादा पैसे कमा सकता है। एक हुनरमंद नौजवान कई तरह के बिजऩेस कर सकता है और नौकरी के पीछे भागने वालों के बजाय नए रोजग़ार पैदा कर सकता है, खुद नौकरी देने वाला आदमी बन सकता है। पढ़े-लिखे लोगों में काबलियत है पर कल्पनाशक्ति के अभाव और झूठे अहंकार के चलते वे ऐसे लोगों के पास नौकरी करने को मजबूर हैं जो उनसे बहुत कम पढ़े-लिखे हैं। यह एक कड़वा सच है कि हमारे देश में 90 फीसदी रोजगार वे लोग कर रहे हैं जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। कल्लू नाम का एक अनपढ़ नौजवान बाल काटना सीख कर नाई का काम करने लगता है, धीर-.धीरे वह एक सैलोन खोल लेता है, फिर शहर के अलग-अलग बाज़ारों में उसके पांच सैलोन हो जाते हैं, फिर वह अपने सैलोन के फ्रेंचाइज़ देना शुरू कर देता है और फिर कोई ‘मिस्टर पढ़ा-लिखा’ उसके यहां फ्रेंचाइज़ मैनेजर की नौकरी करने लगता है।

सच तो यह है कि लगभग 6 महीने की ट्रेनिंग से हम स्कूटर मैकेनिक बन सकते हैं, कार मैकेनिक बन सकते हैं, दर्जी का काम सीख सकते हैं, मधुमक्खी पालन सीख सकते हैं, डेयरी फार्मिंग सीख सकते हैं, हलवाई का काम सीख सकते हैं, इलेक्ट्रीशियन बन सकते हैं, प्लंबर बन सकते हैं, मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीख सकते हैं, कारपेंटर बन सकते हैं, वेल्डर बन सकते हैं, योगाचार्य बन सकते हैं। काम की कमी नहीं है, अवसरों की कमी नहीं है। केवल 6 महीने में स्वरोजग़ार के ऐसे बहुत से काम सीखे जा सकते हैं जो किसी परिवार को भूखा नहीं सोने देगा। हमारे देश में आज सबसे अधिक दुखी वही लोग हैं जो बहुत अधिक पढ़-लिख कर बेरोजग़ारी झेल रहे हैं, पर इस समस्या के एक आसान हल की तरफ से आंखें मूंदे बैठे हैं। पढ़ा-लिखा होने का मतलब तो यह होना चाहिए कि हम में नई सोच विकसित हो, हम कुछ नया सोच सकें, कुछ नया कर सकें। पर जो हो रहा है, वह तो इसका बिल्कुल उल्टा है।

रोजगार के लिए हमारा अधिक पढ़ा लिखा होना कोई मायने नहीं रखता। यह हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि हम किसी के नौकर बनना पसंद करते हैं या खुद अपने कारोबार के स्वतंत्र मालिक। इस एक मंत्र को समझ लें तो पढ़े-लिखे नौजवानों के बीच नौकरी को लेकर जो मारा-मारी लगी हुई है, वह खत्म हो जाएगी। हर व्यक्ति की रुचियां अलग होती हैं, स्थितियां अलग होती हैं, हर किसी को एक ही नाप का कपड़ा नहीं पहनाया जा सकता, हर किसी की समस्या का एक ही इलाज संभव नहीं है। बेरोजग़ारी से जूझ रहे युवाओं पर भी यही बात लागू होती है, इसलिए मैं यह नहीं कहूंगा कि हर व्यक्ति उद्यमी ही बने। मैं बस यह कहना चाहता हूं कि रोजग़ार के लिए जैसे नौकरी एक विकल्प है, वैसे ही उद्यम भी एक अच्छा विकल्प है और युवाओं को इस विकल्प को भी ध्यान में रखना ही चाहिए। कार्पोरेट जगत में जब हम किसी समस्या का समाधान करने की कोशिश करते हैं तो सभी संबंधित व्यक्तियों के सुझाव लिए जाते हैं। इस तरह अलग-अलग सोच, अनुभव और पृष्ठभूमि वाले लोगों के सुझाव जब सामने हों तो समस्या के समाधान के कई नए दरवाज़े खुल जाते हैं। फिर उनमें से सबसे बढिय़ा तीन सुझावों पर तो विचार होता ही है, इसके अलावा दो-तीन या ज्यादा सुझावों को मिलाकर कोई नया एक्शन प्लान बनाने की भी कोशिश होती है। यही काम हम अपने जीवन में भी कर सकते हैं। बेरोजग़ारी भी तो एक समस्या है। परिवार के सभी सदस्यों, रिश्तेदारों, मित्रों और शुभचिंतकों से राय मांगी जा सकती है, फिर उनमें से सर्वाधिक उपयुक्त सुझाव चुनकर उस पर अमल किया जा सकता है। बेरोजग़ारी की समस्या के समाधान का यह कारगर उपाय है।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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