हिमाचल में रची गई कहानियां व उपन्यास

By: Jul 3rd, 2022 12:08 am

साहित्य की निगाह और पनाह में परिवेश की व्याख्या सदा हुई, फिर भी लेखन की उर्वरता को किसी भूखंड तक सीमित नहीं किया जा सकता। पर्वतीय राज्य हिमाचल की लेखन परंपराओं ने ऐसे संदर्भ पुष्ट किए हैं, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, निर्मल वर्मा या रस्किन बांड सरीखे साहित्यकारों ने साहित्य के कैनवास को बड़ा किया है, तो राहुल सांकृत्यायन ने सांस्कृतिक लेखन की पगडंडियों पर चलते हुए प्रदेश को राष्ट्र की विशालता से जोड़ दिया। हिमाचल में रचित या हिमाचल के लिए रचित साहित्य की खुशबू, तड़प और ऊर्जा को छूने की एक कोशिश वर्तमान शृंाखला में कर रहे हैं। उम्मीद है पूर्व की तरह यह सीरीज भी छात्रों-शोधार्थियों के लिए लाभकारी होगी…

अतिथि संपादक

डा. सुशील कुमार फुल्ल, मो.-9418080088

हिमाचल रचित साहित्य -21

विमर्श के बिंदु

  1. साहित्य सृजन की पृष्ठभूमि में हिमाचल
  2. ब्रिटिश काल में शिमला ने पैदा किया साहित्य
  3. रस्किन बांड के संदर्भों में कसौली ने लिखा
  4. लेखक गृहों में रचा गया साहित्य
  5. हिमाचल की यादों में रचे-बसे लेखक-साहित्यकार
  6. हिमाचल पहुंचे लेखक यात्री
  7. अतीत के पन्नों में हिमाचल का उल्लेख
  8. हिमाचल से जुड़े नामी साहित्यकार
  9. यशपाल के साहित्य में हिमाचल के रिश्ते
  10. लालटीन की छत से निर्मल वर्मा की यादें
  11. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की विरासत में

डा. गंगाराम राजी, मो.-9418001224

मानव जीवन में साहित्य का सबसे अधिक महत्त्व है क्योंकि साहित्य ही मनुष्य की बुराइयांे का अंत करता है। समाज को साहित्य से ज्ञान की प्राप्ति होती है। हर युग में साहित्यकार साहित्य की समृद्धि करते रहे हैं, साहित्य किसी संस्कृति का ज्ञान कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साहित्य में कहानी ही एक ऐसी विधा है जो सबसे अधिक लोकप्रिय है। मानव का कहानी गढ़ने-सुनने का स्वभाव रहा है। रही बात हिंदी कहानी की, हिंदी कहानी के जन्मदाता का श्रेय हिमाचल के चंद्रधर शर्मा गुलेरी को ही जाता है, यह कोई कम बात नहीं है। साहित्य की इस प्रक्रिया में देश के अन्य राज्यों के साहित्यकारों को कम नहीं आंका जा सकता। हिमाचल में कथा साहित्य (उन्नीसवीं शताब्दी के उपन्यास जो हिमाचल के लेखकों के द्वारा लिखे गए) हिंदी में आधुनिक कहानी का आरंभ बीसवीं शती के आरंभ में ही माना जाता है। तलाशने पर हिंदी कथा साहित्य के बीज हिमाचल से ही बोए गए हैं, मेरे कहने का अर्थ चंद्रधर शर्मा गुलेरी से है। गुलेरी जी के द्वारा रोपा गया बीज आज एक वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है एवं फलने-फूलने का क्रम एवं प्रयास अब तक जारी है।

इस संदर्भ में आज हम यहां संक्षेप में चर्चा करते हैं। हिंदी की आरंभिक कहानियां यहां भी सभी भाषाओं के कथा जगत की तरह लोक कथाओं की तरह कुछ उपदेशात्मक हैं। यह उपदेश की परिपाटी लोक कथाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में भी चली आई। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने केवल मात्र, उसने कहा था, सुखमय जीवन,  बुद्धु का कांटा आदि कहानियां लिख कर जहां ख्याति बटोरी, वहीं उन्होंने हिमाचल का नाम भी उजागर किया है। लोकप्रिय विधा होने के कारण कहानी के बारे बहुत से आंदोलन विभिन्न प्रकार के विचार जब सामने आने लगे तो हिमाचल ने भी इन आंदोलनों में शीर्ष पर भाग लिया। नई कहानी आंदोलन, साठोत्तरी कहानी, अकहानी, समकालीन कहानी, विमर्श कहानी,  स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, समकालीन कहानी, समांतर कहानी, अकहानी, सहज कहानी आदि, यह कहें जितनी डफली उतने राग, निकलने लगे। नई कहानी – राजेंद्र यादव, मोहन राकेश, कमलेश्वर, अकहानी – गंगा प्रसाद विमल, सचेतन कहानी – महीप सिंह, सहज कहानी – अमृत राय, सुशील कुमार फुल्ल, समांतर कहानी – कमलेश्वर, सक्रिय कहानी – राकेश वत्स, जनवादी कहानी- आदि। जहां देश में विभिन्न कहानी के विविध आंदोलन खड़े हुए, वहीं पर डा. सुशील कुमार फुल्ल द्वारा सहज कहानी आंदोलन ने भी जोर पकड़ा। उनका मानना कि ‘सहज कहानी, शब्द अपनी व्यापकता एवं शाश्वत गुण-धर्मिता के कारण अधिक उपयुक्त एवं सार्थक है।’ अपना झंडा खड़ा कर हिंदी साहित्य जगत में हिमाचल का नाम फिर से उजागर किया। कुछ भी हो, यह आंदोलन कहानी की लोकप्रियता को ही दर्शाते हैं। समय के साथ ही सब आंदोलन धरे के धरे रह गए। कहानी उसी चाल से चलती रही। यहां हम केवल हिमाचल के बीसवीं शताब्दी के उपन्यासों की ही बात करेंगे। हिमाचल के देश के पटल पर सबसे चर्चित कहानीकार, उपन्यासकार यशपाल हुए। यशपाल नादौन, हमीरपुर से संबंध रखने वाले थे।

यशपाल एक उपन्यासकार ही नहीं हुए, वे एक देश को आजाद कराने में भी एक क्रांतिकारी के रूप में भी जाने जाते हैं। दादा कामरेड, दिव्या, देशद्रोही, मनुष्य के रूप, झूठा सच, तेरी मेरी उसकी बात आदि उनके उपन्यासों में युग जीवन के संघर्ष का वर्णन है। हिंदी जगत में एक क्रांतिकारी उपन्यासकार के रूप में उन्होंने नाम कमाया है। इनके अधिकांश उपन्यास दलित, शोषित और पीडि़त वर्ग के लिए अपार सहानुभूति रखते हैं। झूठा सच यशपाल जी का प्रसिद्ध उपन्यास है। 1947 से 1957 तक देश के विभाजन को लेकर लाहौर में जो साम्प्रदायिक झगड़े हुए थे, उसका चित्रण किया गया है। राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक वातावरण के बीच मानव संबंधों की चर्चा इसमें की गई है। डा. सुशील कुमार फुल्ल श्रद्धा राम फिल्लौरी के ‘भाग्यवती’ को हिमाचल का पहला उपन्यास मानते हैं। यशपाल जी के बाद योगेश्वर गुलेरी की कहानियां सरस्वती पत्रिका के माध्यम से सामने आती हैं। फिर मंडी के कृष्ण कुमार नूतन परिक्रमा नामक एक छोटी सी पुस्तक ‘ परिक्रमा’ के रूप में सामने आती है। इसके साथ मोहन राकेश का ‘न आने वाला कल’ शिमला के वातावरण पर उस समय लिखा गया उपन्यास है, जब वे शिमला में एक स्कूल में अध्यापन का कार्य करते थे। इसी संदर्भ में निर्मल वर्मा का उपन्यास ‘लाल टीन की छत’ भी तो शिमला, हिमाचल के सामाजिक चित्रण का उपन्यास रहा है। शिमला में जन्मे निर्मल वर्मा का हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान रहा है। मुख्य रचनाएं, रात का रिपोर्टर, एक चिथड़ा, लाल टीन की छत, वे दिन आदि हिंदी साहित्य में विशेष स्थान रखती हैं। हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक निर्मल वर्मा का कहानी में आधुनिकता का बोध लाने वाले कहानीकारों में अग्रणी स्थान है। निर्मल वर्मा की संवेदनात्मक बुनावट पर हिमाचल की पहाड़ी छायाएं दूर तक पहचानी जा सकती हैं। संत राम शर्मा का ‘ उसी छत के नीचे’ पाश्चात्य शैली का लिखा उपन्यास है। रामकृष्ण कौशल का सैलानी, सुशील कुमार फुल्ल का  ‘कहीं कुछ और’ अतिशय रोमांसिक चित्रण वाला उपन्यास है।

‘फूलों की छाया’, ‘मिट्टी की गंध’ ओंकार राही का ‘शव यात्रा’ राजनीतिक उपन्यास है। कृष्ण कुमार नूतन के तीन उपन्यास ‘मन एक प्यारी मछली’, संस्कार तथा मृदुला हैं। मस्तराम कपूर के तीन उपन्यास विपथगामी, एक अटूट सिलसिला व तीसरी आंख हैं। किशोरी लाल वैद्य का तट का बंधन, गंगा राम राजी का मनमंथन, हरदयाल नास्तिक का लहरें और तिनके, मंसाराम अरुण का देवांगना, शांता कुमार का मन के मीत, राम कृष्ण कौशल के कल्पना, पथ के राही, ये सपने ये रातें एवं चढ़ती पगडंडियां, सुदर्शन वशिष्ठ का आतंक, कौशल भारद्वाज का मीठा जहर, प्रदीप शर्मा का भंवर, मनोहर सागर पालमपुरी ने दो उपन्यास लिखे हैं, 1. यादों के महल, 2. क्षितिज से परे। पीयूष गुलेरी का झूमती याद, अशोक सरीन का पुनर्जन्म, माधुरी, पतझड़ व आसमां रो उठा।

लाल चंद प्रार्थी का उर्दू काव्य

डा. कुंवर दिनेश सिंह, मो.-9418626090

-(पिछले अंक का शेष भाग)

सब चराचर, सारी कायनात ईश्वर की रचना है। अतएव सभी जीव एक ही सूत्र से बंधे हैं। सभी का मूल एक है, सभी का स्रोत एक है। चलने के मार्ग भिन्न हैं, किंतु लक्ष्य एक ही है, मंतव्य भिन्न हैं, किंतु गंतव्य एक ही है। प्रार्थी जी के शायर की चिंता का विषय यह है कि मानवीय मूल्यों का हृास हो रहा है, मानवता बंटी हुई है, मानव की मानव के प्रति संवेदना क्षीण, क्षुण्ण हो रही है। सबसे बड़ा कारण है अहंमन्यता व स्वार्थपरता। इस शे’र में मनुष्यों के स्वार्थपूर्ण रवैये पर, कोरी ख़ुदपरस्ती पर गहरा खेद व्यक्त किया गया है :

फिरते हैं सीना चाक लिए अपना अपना ग़म

सुनता नहीं कोई भी ग़म-ए-दास्तां की बात।

एक अन्य शे’र में शायर ने समाज का चित्र उकेरा है, जिसमें परस्पर भेदभाव, अनादर, अन्यमनस्कता, अवसरवाद के शूल बिखरे हुए हैं, जहां बुराई अच्छाई के पथ को कंटीला बनाती है। इस एक शे’र में ही शायर ने समाज में व्याप्त कई द्वन्द्वों पर एक साथ तंज़ कसा है :

मिज़ाज-ए-अहल-ए-चमन ख़ार-ख़ार लगता है

सबा को चाहिए अपनी क़बा बचा के चले।

बहरहाल, शायर चांद कुल्लुवी का रवैया सकारात्मक और समन्वयात्मक है और उनका हृदय विशाल है, उदार है, जो फूलों के साथ-साथ कांटों के वुजूद को भी क़बूल करता है, बराबर तरजीह देता है, जैसा कि इस शे’र में अयां है ः

इक फ़कत फूल नहीं ग़म का मुदावा ऐ चांद,

ख़ार भी पालता हूं पांव के छालों की तरह।

चांद कुल्लुवी की शायरी से उनके चरित्र की एक विशेषता स्पष्ट रूप से सामने आती है। वे ‘आत्म’ में सजग हैं, ईमानदार हैं, सत्यनिष्ठ हैं। वे अपनी ख़ूबियों और ख़ामियों, मज़बूतियों और कमज़ोरियों को भली-भांति समझते हैं और उन्हें झूठ के पर्दे में छिपाते नहीं हैं। उनकी अपनी त्रुटियों के विषय में पश्चातापपूर्ण स्वीकारोक्ति इस शे’र में देखिए ः

रहनुमाई में कुछ ऐसी बदगुमानी भी रही

आज अपने आप से मिलकर बहुत रोया हूं मैं।

अन्तश्चेतना को जाग्रत रखने और मन/चित्त को मालिन्य से मुक्त रखने का प्रयास निरंतर रहना चाहिए। ऐसा ही मनोभाव इस शे’र में ख़ुदअयां है, जिसमें राह-ए-अदम पर निर्मल मन एवं निष्कपट भाव से अग्रसर होने का आग्रह है :

मिटा तो लो अभी दामन से दाग़ हाय अपना

ये किस लिबास में तुम सामने ख़ुदा के चले।

‘वुजूद-ए-अदम’ में इन्सान के कर्मों को याद किया जाता है और सत्कर्म ही उसे दैवी कृपा का पात्र बनाते हैं। यही फलसफा इस शे’र में कहा गया है :

हश्र में आमाल-नामे जब पढ़े जाने लगे

कुछ फरिश्तों की सिफारिश पर पलट आया हूं मैं।

ये ‘फरिश्तों की सिफारिश’ और कुछ नहीं अपने ही अच्छे कर्मों का सवाब यानी सुफल है। अतः कर्म ही आत्मकल्याण का साधन है। कर्मों के कारण ही किसी व्यक्ति को उसकी मृत्यु के पश्चात् भी स्मृति में जीवित रखा जाता है। किसी को विस्मृत कर दिया जाना ही वास्तविक मृत्यु है। व्यक्ति के कर्म अच्छे हों तो वह आत्मविश्वास के साथ कह सकता है, जैसा कि शायर चांद कुल्लुवी कहते हैं 

हम न होंगे तो चमन होगा उदास

बू-ए-ग़ुल हाथ मलेगी सुन लो।

इस ख़ुशऐतमादी की वजह एक ही है, अपने सुकर्म। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, यदि कर्म निष्काम हों यानी फल की इच्छा किए बिना किए जाएं, तो व्यक्ति सुख-दुख के बंधन से मुक्ति पा सकता है। कर्मयोग में वर्णित निष्काम कर्म से ही ज्ञानयोग में आख्यायित निष्काम बुद्धि यानी बुद्धि को कामना और परिग्रह से मुक्त बनाने का लक्ष्य सिद्ध किया जा सकता है।

मन की विषयाभिमुखी प्रवृत्ति को विजित करने के लिए और सत्यार्थ में मोक्ष-प्राप्ति का एकमात्र साधन है अपरिग्रह। इस गूढ़ रहस्य को चांद कुल्लुवी बड़ी सहजता से कहते हैं :

ऐ चांद आजऱ्ुओं की तक्मील हो चुकी

रुखसत के वक्त दिल में कोई मुद्दा न रख।

निःसन्देह यह सन्तुष्टि और संपूर्ति का भाव ही मोक्ष है। स्पष्ट है लाल चंद प्रार्थी चांद कुल्लुवी का फलसफ-ए-वुजूद-ओ-अदम गीता के निष्काम कर्मयोग पर आधारित है। अध्यात्म की सूक्ष्मतर चेतना से उपजी उनकी शायरी आत्मान्वेषण एवं आत्मपरिष्कार का बृहत्तर लक्ष्य का संधान करती है। उनकी शायरी में कहीं रहस्यवादी दृशा है तो कहीं सूफियाना अन्दाज़ भी है। उनकी शायरी सामाजिक उन्नयन के विषय में गांधीवादी आदर्शों को आत्मसात् करती है और समग्र मानवता को एकात्म दृष्टिकोण से देखते हुए उत्कृष्ट एवं उच्चतर जीवन-मूल्यों का उपस्थापन करती है।

पुस्तक समीक्षा : हिमाचल के नाम बड़ा सलाम

देवभूमि हिमाचल प्रदेश भारत भूमि का वह स्थान जिसका कण-कण देवत्व के संचार से जागृत है, जहां के वृक्ष पूजनीय है, जहां नदियां संस्कृति की वाहिकाएं हैं और जहां के वन पेड़ों का झुंड नहीं, बल्कि एक संस्कृति के पोषक हैं। ऐसे सलोने हिमाचल को प्रत्यक्ष अनुभव तो किया जा सकता है, पर इस धरा से दूर रहकर इसके विषय में जानना अभी भी दुश्वार है। कारण यह कि प्रकृति के पावर हाउस हिमाचल के विषय में बहुत अधिक नहीं लिखा गया। जो लिखा गया, किसी कारणवश उसका दायरा सीमित रहा या फिर लेखन अनुभव के अकाल की गवाही देता रहा। हालांकि सुखद तथ्य यह है कि कुछ समस से इस विषय में गंभीर प्रयास जारी हैं। …और इन्हीं प्रयासों का एक परिणाम है हाल ही में अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पुस्तक ‘कल्चरल एंड नेचुरल हेरिटेज ऑफ हिमाचल प्रदेश’। हम पुस्तक की विषयवस्तु और उपयोगिता पर चर्चा करें, उससे पहले जरा लेखक के विषय में जान लें। पुस्तक लिखी है वरिष्ठ एचएएस अधिकारी डाक्टर संजय कुमार धीमान ने। इस कृति से पूर्व डाक्टर धीमान कई लेखों के अतिरिक्त 12 चर्चित पुस्तकों की रचना कर चुके हैं।

लेखक का यही अनुभव मौजूदा पुस्तक के हर पन्ने, हर शब्द में झलकता है। जैसा कि पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट झलकता है कि यह हिमाचल प्रदेश की संस्कृति और प्राकृतिक विरासत को समर्पित है। हालांकि यह बात अलग है कि पुस्तक की विषयवस्तु इतनी रोचक है कि संस्कृति और प्रकृति का बखान किसी उपन्यास सरीखा लगता है। पर जरा ठहरें! ऐसा हरगिज नहीं कि लेखक ने विषयवस्तु में कल्पना की उड़ान भरी है, बल्कि यह जिक्र उनकी लेखन शैली का है। हिमाचल के मूल निवासी और बतौर प्रशासनिक अधिकारी प्रदेश के चप्पे-चप्पे की जानकारी रखने वाले डाक्टर संजय धीमान के अनुभव और शोध की आभा पाठक निरंतर अनुभव करता है। पांच अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक के पहले अध्याय में हिमाचल प्रदेश की अनुपम संस्कृति की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला गया है, जहां स्थानीय निवासियों के पवित्र जंतुओं, पक्षियों और वृक्षों से संबंधों सहित स्थानीय रीति-रिवाजों पर वनस्पतियों के प्रभाव का जिक्र है। दूसरा अध्याय हिमाचल प्रदेश के विभिन्न  पवित्र जंतुओं, पक्षियों, वृक्षों, झीलों, ऋतुओं, पर्वतों और नदियों को समर्पित है। तीसरे अध्याय में वनस्पतियों और जंतुओं के मानव संस्कृति पर प्रभाव का जिक्र है। चौथे अध्याय में अगर जीवों और वनस्पति के संरक्षण के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों का वर्णन किया गया है, तो पांचवें और अंतिम अध्याय में इसके प्रभावी उपाय भी सुझाए गए हैं। कुल मिलाकर यह पुस्तक हिमाचल को एक अभिनव दृष्टि से देखने का सफल प्रयास है। न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से मौजूदा कृति उपयोगी है, बल्कि आम पाठक के लिए भी यह विषयवस्तु के चलते संग्रहणीय है। पुस्तक में भाषा की शुद्धता और शब्द चयन का पूरा ध्यान रखा गया है और छपाई भी बेहतरीन है। पुस्तक में रोचक और दुर्लभ चित्र भी उपलब्ध हैं, जो पाठक के विचार प्रवाह को निरंतर दिशा देते रहते हैं। पुस्तक की शुरुआत में महामहिम दलाईलामा की ओर से पाठकों के लिए दिया गया संदेश हृदयस्पर्शी है। समीक्षा के लिए पहुंचे पुस्तक के हार्डबैक संस्करण की कीमत 895 रुपए है, जिसे उपलब्ध सामग्री के आधार पर सर्वथा उचित कहा जाएगा। अगर आप हिमाचल प्रदेश को एक नए नजरिए और गंभीर भाव के साथ जानने के इच्छुक हैं, तो डाक्टर संजय कुमार धीमान की नई पुस्तक ‘कल्चरल एंड नेचुरल हेरिटेज ऑफ हिमाचल प्रदेश’ आपके लिए ही लिखी गई है। 

-अनिल अग्निहोत्री

पुस्तक : कल्चरल एंड नेचुरल हेरिटेज ऑफ हिमाचल प्रदेश

लेखक : डा. संजय कुमार धीमान

प्रकाशक : अवनि पब्लिकेशंज, नई दिल्ली-110046

मूल्य : 895 रुपए (हार्डबैक)

गनी के काव्य की बहुपक्षीय समीक्षा

पुस्तक ‘लोकोत्तर कवि : गणेश गनी’, जिसके संपादक डा. पान सिंह हैं, गनी के काव्य की बहुपक्षीय समीक्षा करती है। वनिका पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक की कीमत दो सौ रुपए है। पुस्तक संपादन के लक्ष्य पर बात करते हुए संपादक डा. पान सिंह कहते हैं, ‘पहले ही कविता संग्रह ‘वह सांप-सीढ़ी नहीं खेलता’ के दम पर समकालीन कविता का मुख्य हस्ताक्षर बन गए गणेश गनी के कविता संग्रह तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी कविताओं पर पुस्तक संपादन का मन बना और बहुत-सी समीक्षाएं भी प्राप्त हुई हैं। अतः इस संपादित पुस्तक मेें सोलह आलोचकों ने अपने दमदार सटीक विवेचन-विश्लेषण के आधार पर जगह बनाई है। इन आलोचकों में डा. अशोक कुमार, उमाशंकर सिंह परमार, निरंजन, दिलीप दर्श, सतीश धर, प्रेम नंदन, डा. दीपक, लाजपत राय गर्ग, अरविंद भट्ट, डा. नीलू, प्रद्युम्न सिंह, पवन चौहान, डा. ऋचा पाठक, अरविंद यादव, अनंत आलोक, शशि कुमार आदि शामिल हैं।

पुस्तक पर इस दृष्टिकोण से भी काम किया गया है कि गणेश गनी के साहित्य पर शोध करने वाले भावी शोधार्थियों के लिए आधार ग्रंथ के रूप में काम आ सके।’ गणेश गनी के काव्य की लोकधर्मिता स्पष्ट करते हुए अशोक कुमार कहते हैं, ‘समकालीन काव्यात्मक प्रतिबद्धता पर विचार करें तो गनी की कविताओं में लोक का सबसे अंतिम आदमी शिद्दत से वर्तमान है। वह आदमी, जिस पर सदियों से कविता लिखी जाती रही है। भूख-रोटी-तंगहाली को केंद्र में लाकर कवि चमकते रहे और वह ज़मीर को ताक पर रखकर जीवन चलाने के लिए ज़मीन पर बिछता रहा। आग पर चलने की नियति को उसने बरकरार तो रखा, लेकिन भूख से टूटता रहा। कवि उस अंतिम आदमी के विषय में कवियों को संबोधित करते हुए उसकी विश्वसनीयता पर शक न करने की सलाह देता है।’ इसी तरह पुस्तक में कई अन्य काव्यगत विशेषताएं उभर कर सामने आई हैं। कई कोणों से गनी के काव्य की समीक्षा हुई है। पुस्तक पढ़कर निश्चय ही ज्ञानवर्धन होगा।

-फीचर डेस्क


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App