जब लाहौर में लहराया शान-ए-तिरंगा

पाक पैटन टैंकों की पेशकदमी को खेमकरण की दहलीज पर धराशायी करने वाली भारतीय सेना लाहौर को फतह करके ‘मिनार ए पाकिस्तान’ का भारत में इलहाक कर देती, लेकिन पाक हुक्मरान सलामती कौंसिल के इजलास में तशरीफ ले गए और जंगबंदी की गुहार लगाई। नतीजतन 23 सितंबर 1965 को सीजफायर का ऐलान हुआ…

आज़ादी के 76वें महापर्व पर देश में ‘हर घर तिरंगा’ की मुहिम चली है। देश की सरहदों पर भी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा पूरी शान से लहराता है। लेकिन सन् 1965 की भारत-पाक जंग के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान के लाहौर व सियालकोट के आसमान पर भारत का स्वाभिमान तिरंगा लहरा कर पाकिस्तान सहित दुनिया को हिंदोस्तान की असकरी सलाहियत व हैसियत का पैगाम पूरी शिद्दत से दे दिया था। 1965 की जंग में हिमाचली सपूतों ने भी पाकिस्तान की सरजमीं में घुसकर अपने शौर्य के रक्तरंजित मजमून लिखे थे। 1960 के दशक में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंगी तैयारियां शुरू कर दी थीं। उस दौर में अमेरिका से खैरात में मिले एम-47 व एम-48 पैटन टैंकों के दम पर पाक सिपाहसालारों ने भारत को फतह करने का जहालत भरा ख्वाब देख लिया था। जम्मू-कश्मीर में ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ की नाकामी के बाद पाक सेना ने एक सितंबर 1965 को ‘आपरेशन ग्रैंड स्लैम’ के जरिए भारत की पश्चिमी सरहद को पार कर दिया था।

मगर भारतीय सेना ने पंजाब का महाज खोलकर पाकिस्तान के अंदर घुसकर पाक फौज का इस्तकबाल करके आपरेशन ग्रैंड स्लैम की मसूबाबंदी को ध्वस्त किया था। भारतीय सेना ने ‘आपरेशन रिडल’ लांच करके 6 सितंबर 1965 को लाहौर व सियालकोट के सेक्टरों पर जोरदार हमला करके 8 सितंबर 1965 को लाहौर के ‘बर्की’ पुलिस स्टेशन पर तिरंगा लहरा कर पाकिस्तान को अपनी सैन्य ताकत का एहसास करा दिया था। 11 सितंबर 1965 के दिन लाहौर क्षेत्र में पाक सेना की किलेबंदी को नेस्तनाबूद करके वहां कब्जा करने में अहम किरदार निभाने वाले हिमाचली सपूत कै. ‘बलम सिंह’ (16 पंजाब) को समरभूमि में अदम्य साहस के लिए सेना ने ‘वीर चक्र’ से नवाजा था। 7 सितंबर 1965 को सियालकोट सेक्टर में हिमाचली शूरवीर कै. फिडू राम ‘वीर चक्र’ (आर्टिलरी) ने दुश्मन की संचार व्यवस्था को ध्वस्त करके वहां तिरंगा फहराने में अहम भूमिका निभाई थी। उसी युद्ध के दौरान पाक सेना ने 8 सितंबर 1965 की रात को सैकड़ों पैटन टैंकों से लैस अपने ‘प्रथम आम्र्ड डिवीजन’ के साथ पंजाब के खेकरण सेक्टर पर हमला कर दिया था, लेकिन भारतीय सेना की ‘चार ग्रेनेडियर’ उस हमले का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। हवलदार अब्दुल हमीद ‘परमवीर चक्र’ ने 10 सितंबर 1965 को अपनी रिकॉयलैस गन से सात पाक पैटन टैंकों को बर्बाद करके उसी रणक्षेत्र में शहादत का जाम पिया था। ‘असल उत्तर’ के उस युद्ध में पाक सेना पर पलटवार के दौरान वीरभूमि के हवलदार जनक सिंह राणा ‘सेना मेडल’ ने भी अपना बलिदान दिया था।

उसी जंग में खेमकरण के टिब्बीपुरा कस्बे में हिमाचली सूरमा सूबेदार रघुनाथ ‘वीर चक्र’ (प्रथम डोगरा) ने अपने सैन्य दल के साथ पाकिस्तान की 4 कैवलरी के मेजर नजीर अहमद सहित 17 पाक सैनिकों को हिरासत में लेकर पाक पेशकदमी को ध्वस्त किया था। खेमकरण जंग की जिल्लतभरी शिकस्त से बौखला कर पाकिस्तानी आम्र्ड डिवीजन के कमांडर मे. ज. नासिर अहमद खान व ब्रिगेडियर एहसान रशीद शमीं ने खुद उस रणक्षेत्र में दस्तक दे दी थी। मगर भारतीय सेना ने नासिर अहमद खान व एहसान रशीद शमीं को हलाक करके दोनों की मय्यत को खेमकरण के मैदाने जंग में ही सुपुर्द-ए-खाक करके नमाजे जनाजा की रस्म पूरी कर दी थी। हालांकि पाक सेना ने युद्ध में मारे गए एहसान रशीद शमीं को ‘हिलाल ए जुर्रात’ तगमे से सरफराज किया था। 10 सितंबर 1965 को भारतीय सेना ने सियालकोट के फिल्लोरा व जस्सोरन क्षेत्रों पर जोरदार आक्रमण करके पाक सेना की बुनियाद को हिला दिया था। फिल्लोरा की लड़ाई में हिमाचली रणबांकुरे दफादार उधम सिंह (हडसन हॉर्स) ने अहम रोल निभाया था। जब जस्सोरन क्षेत्र में भारतीय सेना एक बड़े संकट में घिर चुकी थी, उस वक्त जस्सोरन का रणक्षेत्र उधम सिंह के पराक्रम का गवाह बना जब अपने सेंचुरियन टैंक से दो पाकिस्तानी पैटन टैंकों को आग की लपटों में तब्दील करके 22 सितंबर 1965 को उधम सिंह ने शहादत को गले लगाकर उस भीषण जंग का अंजाम तय कर दिया था। रणभूमि में असीम वीरता के लिए सेना ने बलिदानी योद्धा उधम सिंह को ‘वीर चक्र’ से अलंकृत किया था।

फिल्लोरा के युद्ध के नायक मेजर भूपिंदर सिंह ‘महावीर चक्र’ (मरणोपरांत) का संबंध भी उसी ‘हडसन हॉर्स’ से था। 60 पाकिस्तानी पैटन टैंकों को तबाह करने वाली ‘पूनाहॉर्स’ के कमान अधिकारी कर्नल एबी तारापोर ‘परमवीर चक्र’ ने 16 सितंबर 1965 को सियालकोट सेक्टर में ही अपना बलिदान दिया था। पाक पैटन टैंकों की पेशकदमी को खेमकरण की दहलीज पर धराशायी करने वाली भारतीय सेना लाहौर को फतह करके ‘मिनार ए पाकिस्तान’ का भारत में इलहाक कर देती, लेकिन पाक हुक्मरान सलामती कॉसिल के इजलास में तशरीफ ले गए और जंगबंदी की गुहार लगाई। नतीजतन 23 सितंबर 1965 को सीजफायर का ऐलान हुआ। अमेरिका ने उन पैटन टैंकों का नाम अपने दिग्गज जरनैल ‘जार्ज एस. पैटन’ के नाम पर रखा था, मगर भारतीय फौज ने जिस बेरहमी से पैटन टैंकों को खाक में मिलाकर जंग को तकमील किया, पाक सदर अयूब खान व पाक जरनैल मूसा खान तथा अमेरिकी हुक्मरानों ने तबाही के उस खौफनाक मंजर का तसव्वरु नहीं किया था। अलबत्ता युद्ध की शिकस्त से पाक सहित अमेरिका को भी आलमी सतह पर बेआबरू होना पड़ा था। भारतीय सेना द्वारा पकड़े गए पाक पैटन टैंक युद्ध स्मारकों पर भारतीय सैन्यशक्ति के शौर्य को आज भी खामोशी से बयान करते हैं। पाकिस्तान की नामुराद सेना 1965 युद्ध के जख्मों पर आज भी गम के अश्क बहाती है, मगर अफसोस भारत अपने उन रणबांकुरों को भूल गया जिन्होंने लाहौर व सियालकोट की चौखट पर ‘तिरंगा’ लहराकर हिंदोस्तान को गौरवान्वित किया था। टैंकों की उस महाजंग के योद्धाओं की शूरवीरता को पूरी अकीदत से तस्लीम करना होगा। सरहदों की बंदिशों को तोडक़र पाकिस्तान में घुसने का साहसिक फैसला लेने वाले ले. ज. हरबख्श सिंह व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा 1965 के युद्ध में देश की अस्मिता के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले सपूतों को राष्ट्र शत-शत नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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