दलों के घोषणापत्रों में खेल की अनदेखी

By: Oct 28th, 2022 12:06 am

स्कूल से निकल कर जब खिलाड़ी महाविद्यालय में प्रवेश लेता है, तो उस समय उसकी उम्र अठारह वर्ष हो चुकी होती है। इसलिए इन खेल छात्रावासों में दाखिल होने के अवसर न के बराबर होते हैं…

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार जोरों पर है मगर पिछले चुनावों की तरह इस बार भी खेल व मानव फिटनेस किसी भी पार्टी की प्राथमिकताओं में नहीं है। पिछली सरकार ने हिमाचल प्रदेश में नयी खेल नीति तो बना दी है, उस नयी बनाई नीति में स्कूली स्तर पर विद्यार्थी की फिटनेस के बारे में कुछ भी नहीं है कि कैसे फिटनेस होगी और फिर उसके मूल्यांकन की क्या रूप रेखा होगी। प्रदेश में आज विद्यार्थी की फिटनेस के लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं है। इसलिए फिटनेस मूल्यांकन कर उस पर सुझावों के लिए कार्यक्रम बहुत ही जरूरी है। कौन-कौन राजनीतिक दल इस जरूरी व नाजुक मुद्दे पर हिमाचल प्रदेश के किशोरों व युवाओं के स्वास्थ्य के बारे में सही कार्यक्रम लाने के बारे में कहते हैं।

पूरे संसार में खिलाड़ी महाविद्यालय व विश्वविद्यालय खेलों से निकलते हैं मगर हिमाचल में महाविद्यालय स्तर खेलों के लिए स्थिति दयनीय है। हिमाचल सांस्कृतिक व सुविधाओं के अभाव में पहले ही खेलों में पिछड़ा है अगर यही व्यवस्था रही तो राज्य खेलों में और पीछे चला जाएगा। स्कूली स्तर पर तो कुछ खेलों के लिए चुनिंदा स्कूलों में कामलाऊ खेल छात्रावास तो हैं, मगर महाविद्यालय स्तर पर हिमाचल के विद्यार्थी खिलाडिय़ों के लिए खेल विंगों की व्यवस्था हो इसके लिए पिछले कई दशकों से सरकारों को सुझाव दिए जाते रहे हैं मगर आज तक किसी भी सरकार ने हिम्मत नहीं दिखाई है। कौन दल हिमाचल प्रदेश में खेल विंगों की बात करता है। हिमाचल के कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्टार हैं मगर उनके साथ हिमाचल का नाम नहीं है। उन्हें अपने ही राज्य में न तो परिचय मिला और न ही प्रश्रय। क्योंकि उन्हें तराशने का काम हिमाचल ने नहीं औरों ने किया है इसका उदाहरण हम हर ओलंपिक व अन्य अंतरराष्ट्रीय खेलों में जीते हिमाचली खिलाडिय़ों के खेल जीवन पर अध्ययन करते हुए साफ देख सकते हैं कि उन्होंने हिमाचल के बाहर अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा किया है।

क्या हिमाचल प्रदेश सरकार अच्छे प्रशिक्षक व खेल प्रशिक्षण सुविधा अपने यहां नहीं दे सकती है? हिमाचल में महाविद्यालय स्तर खेल सुविधाओं का टोटा है। पंजाब की तरह यहां अभी तक महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग विद्यार्थी खिलाडिय़ों के लिए उपलब्ध नहीं है। पंजाब ने अपने विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभिन्न महाविद्यालयों व विश्वविद्यालय परिसरों में खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग चलवा कर अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय खेलों की प्रतिष्ठित मौलाना अवदुल कलाम ट्राफी पर कब्जा करता रहा है तथा खेल विंगों के माध्यम से ही पंजाब खेल सांस्कृतिक के कारण खेलों में श्रेष्ठतम रहा है। हिमाचल में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं इस बार ओलंपिक के खेल परिणाम इस बात के गवाह हैं। प्रतिभा व सुविधा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में भी सरकार खेल विंग खोलती है तो भविष्य में हिमाचल के और अधिक खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कई महाविद्यालयों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढ़ाचा तैयार खड़ा यू ही बेकार हो रहा है। विंगों के लिए सरकार को न तो खेल ढ़ांचा खड़ा करना पड़ता है और न ही नया छात्रावास बनाना पड़ता है। केवल खेल विशेष का प्रशिक्षक और खिलाडियों के लिए खुराक व रहने का प्रबंध करना होता है जो आसानी से बहुत कम धन राशि खर्च करके हो सकता है। राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर, धर्मशाला, बिलासपुर व सरस्वती नगर में एथलेटिक्स के विंग आसानी से चल सकते हैं क्योंकि यहां तीन जगह सिंथेटिक ट्रैक हैं और चौथी जगह सरस्वती नगर में बन रहा है। भारतीय खेल प्राधिकरण के शिलारू कंेद्र में भी दो सौ मीटर का सिंथेटिक ट्रैक विछ गया है।

विद्यालयों में भी वहां पर एथलेटिक्स की नर्सरियां स्थापित हो सकती हैं। ऊना तथा मंडी में तैराकी के लिए तरणताल उपलब्ध हैं। शिलारू व ऊना में एट्रो ट्रर्फ हाकी के बिछी हुई है मगर वहां गतिविधियां न के बराबर हैं। हिमाचल प्रदेश के हर जिला मुख्यालय व कहीं-कहीं उपमंडल स्तर पर इंडोर परिसर हैं हिमाचल प्रदेश सरकार हिम्मत करे तो वहां पर कई खेलों के विंग चल सकते हैं। हिमाचल प्रदेश में विभिन्न खेलों का स्तर राज्य में खेल छात्रावासों के खुलने के बाद काफी सुधरा है। विद्यालय स्तर पर खेल छात्रावासों को आज से तीन दशक पहले शुरू कर दिया गया था। पपरोला का बास्कटबॉल खेल छात्रावास ने एक समय तक अच्छे परिणाम दिए हैं। हाकी में माजरा स्कूली खेल छात्रावास की लड़कियों ने पिछले कई बर्षों से राष्ट्रीय स्कूली खेलों में हिमाचल प्रदेश को पदक तालिका में स्थान दिलाया है। यदि इन लड़कियों को एस्ट्रोटर्फ मिलता है तो बात कुछ और हो सकती है। स्कूल स्तर की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिमाचल का प्रदर्शन सम्मानजनक खेल छात्रावासों के कारण रहता है। हिमाचल प्रदेश में स्कूली स्तर पर पपरोला में लडक़ों के लिए बास्कटबॉल, सुंदर नगर व नदौन में लडक़ों की हाकी, माजरा में लड़कियां के लिए हाकी में खेल छात्रावास चल रहे हैं। बालीवाल में स्कूली स्तर पर प्रशिक्षण का अच्छा प्रंबध है।

मतियाणा व रोहडू में लडक़ों को तथा कोटखाई में लडकियों के लिए खेल छात्रावासों को बर्षों पहले से शुरू किया गया है। रोहडू में फुटबॉल का भी खेल छात्रावास है। इन छात्रावासों में अच्छे प्रशिक्षकों के साथ-साथ खेल सुविधाओं में काफी सुधार की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में भारतीय खेल प्राधिकरण ने तीस वर्ष पहले बिलासपुर व धर्मशाला में भारतीय खेल प्राधिकरण खेल छात्रावासों की शुरुआत हुई है। दो छात्रावास राज्य सरकार ने ऊना तथा बिलासपुर में चला रखें हैं। इन खेल छात्रावासों में अधिकांश बारह से चौदह बर्ष के खिलाड़ी बालक व बालिकाओं को ही प्रवेश मिलता है। स्कूल से निकल कर जब खिलाड़ी महाविद्यालय में प्रवेश ले रहा होता है, तो उस समय उसकी उम्र अठारह वर्ष हो चुकी होती है। इसलिए इन खेल छात्रावासों में दाखिल होने के अवसर न के बराबर होते हैं। इसलिए हिमाचल में खिलाड़ी विद्यार्थी को स्कूल के बाद महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग मिलना जरूरी हो जाता है। हिमाचल प्रदेश में महाविद्यालय स्तर पर कोई भी प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध न होने के कारण स्कूली स्तर पर सामने आई खेल प्रतिभाओं को या तो हिमाचल प्रदेश से पलायन कर पड़ोसी राज्यों के खेल विंगों की शरण लेनी पड़ती है या फिर असमय ही खेल को अलविदा कह कर गुमनामी के अंधेरे में खो जाना होता है। राजनीतिक दलों को स्वास्थ्य व खेल जैसे जरूरी विषयों पर अपनी राय तो रखनी चाहिए।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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