HP Election: हिमाचल में पहले भी बदला है रिवाज़, पर कांग्रेस ने किया है ज्यादा साल राज

By: Dec 6th, 2022 2:11 pm

शिमला। हिमाचल प्रदेश के लगभग 70 वर्षों के राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। यानी इस पार्टी ने राज्य में सर्वाधिक समय तक शासन किया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक उद्गम के बाद यह परिपाटी टूट गई। इतिहास पर नजर डालें, तो हिमाचल को छह अलग-अलग मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। यह क्रमवार सर्वश्री यशवंत सिंह परमार, ठाकुर रामलाल, शांता कुमार, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर हैं। इनमें सर्वश्री यशवंत सिंह परमार, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह कांग्रेस से तथा शांता कुमार-जनता पार्टी तथा प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्री रहे।

राज्य में पहली बार वर्ष 1952 में विधानसभा चुनाव हुए। उस समय 36 विधानसभा सीटें थीं। चुनाव मैदान में कांग्रेस ने 35, किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 22 और अनुसूचित जनजाति महासंघ तथा निर्दलीय उम्मीदवार उतरे। इनमें से कांग्रेस ने 24, किसान मजदूर पार्टी से तीन और अनुसूचित महासंघ ने एक सीट पर जीत हासिल की। इस चुनाव में आठ निर्दलीय भी विजयी रहे। बहुमत के आधार पर कांग्रेस की राज्य में पहली सरकार बनी, जिसका नेतृत्च बतौर मुख्यमंत्री परमार ने किया। वर्ष 1956 मेें विधानसभा भंग कर हिमाचल प्रदेश को केंद्र शासित राज्य बना दिया गया। यह दर्जा वर्ष 1963 तक रहा। बाद में हिमाचल प्रदेश को विधानसभा के साथ केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिला तथा श्री परमार ने केंद्र शासित राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में एक जुलाई 1963 से चार मार्च 1967 तक इसकी कमान संभाली।

वर्ष 1967 में राज्य विधानसभा की सीटें बढ़ कर 60 हो गईं तथा इनके लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने 34 पर विजय हासिल की, जो बहुमत के आंकड़े से तीन अधिक थीं। वर्ष 1971 में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। इसके बाद वर्ष 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को ही जीत मिली। विधानसभा की 68 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत दर्ज करते हुए 53 सीटों पर कब्जा कर लिया। श्री परमार ने पांचवीं बार दस मार्च 1972 से 28 जनवरी 1977 तक कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में यह पद संभाला। उनके बाद ठाकुर रामलाल भी 28 जनवरी 1977 से 30 अप्रैल 1977 तक कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे।

राज्य में 30 अप्रैल 1977 से 22 जून 1977 तक राष्ट्रपति शासन रहा। वर्ष 1977 के विधानसभा चुनावों में जनता पार्टी ने कांग्रेस को पटखनी देकर रिवाज बदल दिया। जनता पार्टी के 53 विधायक जीते तथा कांग्रेस को केवल नौ सीटों पर संतोष करना पड़ा। पहली बार राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में शांता कुमार ने 22 जून 1977 से 14 फरवरी 1980 तक गैर कांग्रेसी सरकार का नेतृत्च किया। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद ठाकुर रामलाल के नेतृत्व में 14 फरवरी 1980 से 15 जून 1982 तक बार फिर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। वर्ष 1982 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पहली बार मैदान में उतरी इस बार उसने कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते हुए 29 सीटें हासिल कीं।

कांग्रेस को 31 सीटें मिलीं। राज्य में कांग्रेस सरकार किसी तरह सरकार बनाने में सफल रही और ठाकुर रामलाल ने इसका 15 जून से लेकर सात अप्रैल 1983 तक तीसरी बार बतौर मुख्यमंत्री नेतृत्च किया। बाद में आठ अप्रैल 1983 से लेकर आठ मार्च 1985 तक श्री वीरभद्र सिंह कांग्रेस के मुख्यमंत्री के रूप में एक नया चेहरा बन कर उभरे। वर्ष 1985 के चुनावों में कांग्रेस ने एक बार फिर ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए 58 सीटों पर जीत हासिल करते हुए राज्य में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में पुन: सरकार बनाई। वीरभद्र इस पर पद पर पांच मार्च 1990 तक रहे।

भाजपा को इस चुनाव में केवल सात सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। वर्ष 1990 के चुनावों में भाजपा ने 46 सीटें जीत कर राज्य में शांता कुमार के नेतृत्व में पांच मार्च 1990 से लेकर 15 दिसंबर 1992 तक पहली बार अपनी सरकार बनाई। कांग्रेस को नौ सीटों के साथ विपक्ष में बैठना पड़ा। इस तरह राज्य में कमोवेश अदला बदली वाली सरकारों का सिलसिला शुरू हो गया। शांता कुमार सरकार गिरने के बाद 15 दिसंबर 1992 से लेकर तीन दिसंबर 1993 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 52 सीटों के साथ वापसी की, जबकि भाजपा आठ सीटों पर खिसक गई। वीरभद्र सिंह ने दूसरी बार तीन दिसंबर 1993 से लेकर 23 अप्रैल 1998 तक कांग्रेस सरकार का नेतृत्व किया।

वर्ष 1998 के विधानसभा चुनावों में राज्य में एक समय ऐसा भी आया जब कांग्रेस और भाजपा 31-31 सीटों के साथ बराबरी पर रहे। दोनों दलों को 35 सीटों के बहुमत का आंकड़ा नसीब नहीं हो सका, लेकिन भाजपा हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उसके पांच विधायकों के साथ सरकार बनाने में सफल रही और प्रेम कुमार धूमल ने उसके एक और नए चेहरे के रूप में इसकी कमान संभाली। वह 24 मार्च, 1998 से पांच मार्च 2003 तक मुख्यमंत्र रहे। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा का सीटों का आंकड़ा क्रमश: 43 और 16 का रहा और इस बार श्री वीरभद्र सिंह छह मार्च 2003 से 30 दिसंबर 2007 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे।

वर्ष 2007 के चुनाव में भाजपा एक बार फिर 41 सीटों के साथ विजय रही, जबकि कांग्रेस 23 सीटों तक सिमट गई। श्री धूमल ने दूसरी बार भाजपा सरकार का नेतृत्च किया। वर्ष 2012 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्च में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देते हुए 36 सीटों के साथ सरकार बनाई जो 25 दिसंबर 2012 से 27 दिसंबर 2017 तक रही। भाजपा को 26 सीटें मिलीं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फिर से श्री धूमल को मुख्यमंत्री पद का चेहरा प्रस्तुत करते हुए चुनाव लड़ा। पार्टी ने इस बार 44 सीटें तो जीतीं लेकिन श्री धूमल स्वयं चुनाव हार गए। ऐसे में मंडी जिला की सिराज सीट से पांचवीं बार विजयी रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा की राज्य में सरकार बनी। कांग्रेस को 21 सीटें मिलीं, जबकि दो पर निर्दलीय और एक सीट पर माकपा उम्म्मीदवार विजयी रहा। श्री ठाकुर 27 दिसंबर 2017 से अब तक राज्य के मुख्यमंत्री हैं। पार्टी ने उन्हीं के नेतृत्च में 2022 का चुनाव लड़ा है। वह सिराज से लगातार छठी बार मैदान में हंै।


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