डाटा संप्रभुता की दरकार

यदि कानून में यह प्रावधान हो जाए कि देश के लोगों के निजी डाटा को विदेशों में भेजने के बाद भी उस पर संप्रभु अधिकार देश का ही रहे और उसके उपयोग द्वारा एकत्र की गई जानकारियों को भारत में पुन: प्रेषित करने की बाध्यता भी सुनिश्चित की जाए तो डाटा और जानकारियों पर एकाधिकार से बचा सकेगा। जानकारियां मुक्त रूप से उपलब्ध हों, तो हम देश को डिजिटल सुपर पावर बनाने में कामयाब होंगे…

हाल ही में सरकार द्वारा डिजिटल निजी डाटा संरक्षण विधेयक, 2022 के प्रारूप को साझा करते हुए इस संदर्भ में 17 दिसंबर 2022 तक लोगों से सुझाव मांगे हैं। गौरतलब है कि आज लोगों की निजी जानकारी ऐप्स, वेबसाईट्स, सेवा प्रदाता समेत विभिन्न प्रकार से डिजिटल माध्यमों से साझा की जाती है। हम जानते हैं कि इस डिजिटल युग में जब हम किसी एप्प को डाउनलोड करते हैं तो हमें विभिन्न प्रकार की अनुमतियों को देने हेतु पूछा जाता है। यदि उपभोक्ता इसके लिए मना करता है तो उस एप्प को इस्तेमाल ही नहीं किया जा सकता। यही बात डिजिटल समाचार पत्रों, विभिन्न सेवा प्रदाताओं और अन्य प्रकार की वेबसाइट पर भी लागू होती है। ऐसे में लोगों की इन निजी जानकारियों का संरक्षण, अथवा उस निजी जानकारी का बिना उनकी सहमति के, अन्य द्वारा प्रयोग प्रतिबंधित करने के लिए एक कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी। इस विधेयक में यह प्रावधान रखा गया है कि चाहे किसी व्यक्ति ने पहले से अनुमति दी हुई हो तो भी उसे ‘कोन्सेंट मैनेजर’ के माध्यम से वापिस लिया जा सकता है। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि 18 साल से नीचे के व्यक्तियों (किशोरों/ किशोरियों, बच्चों) द्वारा बिना अभिभावकों की अनुमति के उन ऐप्स अथवा सेवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

इस संबंध में एक बोर्ड के गठन का भी प्रावधान रखा गया है जो इस कानून के बारे में संबंधित पक्षों को जानकारी और स्पष्टता प्रदान करेगा। सरकार द्वारा देश की एकता और संप्रभुता, सुरक्षा, अन्य देशों से मित्रतापूर्ण संबंध, या अपराधों हेतु उकसाने को रोकने जैसे मामलों के संदर्भ में, सरकार को इस विधेयक के प्रावधानों से मुक्त रखा गया है। हालांकि लोगों की निजी जानकारियों की सुरक्षा हेतु किए जा रहे इस प्रयास को सही दिशा में एक कदम माना जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस बिल में काफी सुधारों की गुंजाइश है। इस कानून का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर 500 करोड़ रुपए तक के दंड का प्रावधान रखा गया है। इस विधेयक के आलोचकों का मानना है कि गूगल, फेसबुक, अमेजान और अन्य बड़ी टेक कंपनियों के व्यवसाय को देखते हुए, यह राशि कंपनियों के आकार और उनके द्वारा डाटा के दुरुपयोग के माध्यम से की जाने वाली कमाई की तुलना में बहुत कम है। दुनिया के दूसरे कई मुल्कों में कानून के इस प्रकार के उल्लंघन की दंड राशि कंपनियों के लाभों के प्रतिशत के रूप में भी निश्चित की गई है। इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय अनुभवों का लाभ उठाते हुए हम कानून का उल्लंघन करने वाली बड़ी कंपनियों पर दंड की राशि को उनके लाभों के अनुपात के रूप में तय करना चाहिए।

इस बिल पर आ रही आपत्तियों में एक अन्य आपत्ति यह है कि इस कानून के पालन हेतु जिस बोर्ड का गठन किया जाना है, उसके सदस्यों की संख्या उनकी अर्हता, योग्यता के बारे में इस विधेयक में कुछ नहीं कहा गया है। बोर्ड के मामले में विधेयक का कहना है कि यह कोई नियामक बोर्ड नहीं है। यदि ऐसा नहीं है तो किसी नियामक संस्था का होना भी जरूरी है। लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत में निजता के बारे में लोग सवेंदनशील हैं? शायद नहीं। हम लोग तो अपनी तमाम निजी जानकारियां एक पेट्रोल पम्प पर ही किसी भी अनजान व्यक्ति को भी दे देते हैं। निजता और व्यक्तिगत जानकारियों के प्रति संवेदनशीलता अभी आना बाक़ी है। लेकिन हमें समझना होगा कि हमारी निजी और ग़ैर निजी जानकारियों का ख़ासा आर्थिक महत्व है। आज के युग में डाटा की उपयोगिता और उसके महत्व को कम नहीं आंका जा सकता। आज हम औद्योगिक क्रांति 4.0 के मध्य में हैं। डाटा के उपयोग से कृत्रिम समझ बुद्धिमत्ता के दम पर वो किया जा सकता है जो अभी तक मानव मस्तिष्क नहीं कर पाया है। आज पूरी दुनिया की शक्तियां इस डाटा को कब्जाने की फिराक में बैठी हैं और इसके लिए सभी मार्ग तलाशे जा रहे हैं।

सवाल विदेशों में डाटा भेजने और उसकी संप्रभुता का : भारत में लगभग 80 करोड़ लोग आज स्मार्टफोन के बलबूते विभिन्न प्रकार की ऐप्स का उपयोग कर रहे हैं। इसी क्रम में बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां, गूगल सरीखे सर्च ईंजन एसं जीओ मैपिंग, ई-कॉमर्स कंपनियां, सोशल मीडिया कंपनियां आदि लोगों के निजी डाटा, उनकी आदतों, उनके सामाजिक संबंधों, उनके वित्तीय व्यवहार और खरीद-फरोख्त समेत विभिन्न प्रकार के डाटा को सवंर्धित कर अपनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) शक्ति को लगातार बढ़ा रही हैं और ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने की कोशिश कर रही हैं। उपयोगी डाटा का वितरण अत्यधिक असमान है। जब वैश्विक शक्तियां इस डेटा को हासिल करने के लिए सभी रास्ते तलाश रही हैं, भारत को न केवल देश में उत्पादित डेटा का स्वामी होने की आवश्यकता है; लेकिन हमारे देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर डेटा की गणना करने की भी आवश्यकता है। लोगों का डाटा और उसके माध्यम से उन्हीं का शोषण, यह आज के डाटा अर्थव्यवस्था की खासियत बन रही है।

जरूरत है एक ऐसे कानून की जिसके माध्यम से देश के डाटा पर देश का संप्रभु अधिकार हो। साथ ही साथ उस डाटा को सवंर्धित कर कृत्रिम बुद्धिमत्ता और विभिन्न प्रकार की अन्य जानकारियों पर बड़ी टेक कंपनियों, ई-कॉमर्स कंपनियों और सोशल मीडिया कंपनियों का एकाधिकार होने से रोका जाए। हमें समझना होगा कि निजी डाटा का ही अनामीकरण और प्रसंस्करण कर उससे गैर निजी डाटा का निर्माण होता है और उसके माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों के वित्तीय समेत आर्थिक और सामाजिक व्यवहारों के बारे में जानकारियां एकत्र की जाती हैं। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि विकसित देश अपनी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता को सुविधाजनक बनाने के लिए डेटा के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न उपाय कर रहे हैं। डेटा का मुक्त प्रवाह विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच एक असंयमित संबंध बनाएगा और विकासशील देशों की फर्मों को नुकसानदेह स्थिति में डाल देगा। इसलिए, डेटा का विनियमन बहुत महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (अंकटाड) की व्यापार और विकास रिपोर्ट 2018 कहती है: ‘देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने डेटा को नियंत्रित करें और अपने डेटा का उपयोग/साझा करने और इसके प्रवाह को विनियमित करने में सक्षम हों’।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘निष्कर्ष यह है कि अगर विकासशील देशों को डिजिटल बुनियादी ढांचे और डिजिटल क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए अपनी आर्थिक और औद्योगिक नीतियों और राष्ट्रीय नियामक ढांचे को डिजाइन करने के लिए लचीलापन और नीतिगत स्थान नहीं दिया जाता है, तो डिजिटल प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रदान की गई विकास की क्षमता विलुप्त हो सकती है।’ यदि कानून में यह प्रावधान हो जाए कि देश के लोगों के निजी डाटा को विदेशों में भेजने के बाद भी उस पर संप्रभु अधिकार देश का ही रहे और उसके उपयोग द्वारा एकत्र की गई जानकारियों को भारत में पुन: प्रेषित करने की बाध्यता भी सुनिश्चित की जाए तो डाटा और जानकारियों पर एकाधिकार से बचा सकेगा और साथ ही साथ इन जानकारियों को छोटे ई-कॉमर्स प्लेयर, नए और छोटे स्टार्टअप्स, सरकारी एजेंसियों और आम जनता और शोधकर्ताओं के लिए जानकारियां मुक्त रूप से उपलब्ध हों, तो हम अपने देश को डिजिटल सुपर पावर बनाने और औद्योगिक क्रांति 4.0 की तरफ द्रुतगति से बढऩे में अवश्य कामयाब होंगे।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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