छोटे कदम, बड़े परिवर्तन

By: Jan 19th, 2023 12:06 am

किसी भी सरकार के लिए समाज के विभिन्न वर्गों की अपेक्षाओं का संतुलित करना आसान नहीं होता। ऑनलाइन व्यापार अब शायद विश्व भर में अपनी सुविधा के लिए बढ़त पर है जिससे ऑफलाइन ट्रेड घबराया हुआ है। ऐसे में देखना होगा कि मोदी सरकार नॉन-कारपोरेट सेक्टर की आशाओं पर खरा उतरने के लिए क्या करती है? सरकार का निर्णय आम जनता को एक छोटा-सा कदम लग सकता है, पर उसके किसी भी निर्णय से बड़े परिवर्तन के आसार से इन्कार नहीं किया जा सकता है…

शासन-प्रशासन में, राजनीति में, खासकर चुनावों में छोटी-छोटी बातें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। छोटी-छोटी बातें भी चुनाव में किसी राजनीतिक दल की विजय अथवा पराजय के बड़े कारण बन जाते हैं। मतदाताओं का बहुत बड़ा वर्ग ऐसा होता है जो किसी एक राजनीतिक दल का स्थायी समर्थक अथवा विरोधी नहीं होता और वह परिस्थितियों के अनुसार और बदलती हवा के अनुसार तय करता है कि वह अपना मत किसे दे। खास बात यह है कि मतदाताओं का यह वर्ग भी कई उपवर्गों, यानी सबसेट्स में बंटा होता है और दल-निरपेक्ष मतदाताओं का यह वर्ग ही दरअसल राजनीतिक दलों के सत्तासीन होने या सत्ताविहीन होने की स्थिति बनाता है। चुनावों की सारी रणनीति इसी बात पर निर्भर करती है कि दल-विशेष इस दल-निरपेक्ष वर्ग के कितने उपवर्गों को लुभा पाता है। राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार से संबंधित ठोस सलाह देने वाली तथा देश में राजनीति की पाठशाला मानी जाने वाली कंपनी ‘विन्नोवेशन्स’ हमारी कंपनी ‘क्विकरिलेशन्स प्राइवेट लिमिटेड’ का एक उपक्रम है जो विभिन्न राजनीतिक दलों और अग्रणी राजनीतिज्ञों के लिए काम करते हुए अथवा बहुत बार स्वतंत्र रूप से भी ऐसे शोध और अध्ययन करती रहती है जिनसे देश की समस्याओं, मतदाताओं के मूड आदि की सही पहचान होती है।

हाल में ‘विन्नोवेशन्स’ का ध्यान एक ऐसे पहलू की ओर गया जिसकी लंबे समय से सिर्फ इसलिए उपेक्षा होती रही है क्योंकि विभिन्न सरकारें एफडीआई की चाह में कारपोरेट सेक्टर को खुश करने में ही व्यस्त रही हैं। पर उससे पहले कि मैं मूल विषय पर आऊं, अमेरिका में हुए एक अध्ययन की बात करना चाहूंगा ताकि मेरी बात पाठकों को आसानी से समझ आ सके। आज अमेरिका की 66 प्रतिशत यानी दो-तिहाई आबादी मोटापे का शिकार है। यदि संसद में किसी दल को दो-तिहाई बहुमत मिल जाए तो वह संविधान के एक बड़े भाग में मनचाहे संशोधन कर सकता है, देश की दशा-दिशा बदल सकता है। तो अमेरिका की यह आबादी भी देश की दशा-दिशा बदल रही है। वहां कपड़ों के प्लस-साइज़ के स्टोर खुले, एयरलाइन्स वालों ने तथा बसों, रेलों और थियेटरों में विशेष रूप से चौड़ी सीटें लगाईं ताकि लोग आराम से बैठ सकें। समस्या यह है कि अब यह रोग सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है बल्कि विश्व भर में फैल गया है और विकासशील देशों में भी इसने पैर पसार लिये हैं। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, यानी डब्ल्यूएचओ ने इसकी गंभीरता बताने के लिए इसे ‘ग्लोबैसिटी’ (ग्लोबल ओबैसिटी : वैश्विक मोटापा) का नाम दिया है। अमेरिका का सारा भोजन जंक फूड पर आधारित है। बर्गर, पिज्ज़़ा, हॉट डॉग आदि में आलू-प्याज-टमाटर की कितनी ही कतलें डाल लें, सड़े आटे से बने ये सुविधाजनक भोज्य पदार्थ (कान्विनिएंस फूड) और इनके साथ पिये जाने वाले सॉफ्ट ड्रिंक वस्तुत) मोटापे का बड़ा कारण हैं। इस भोजन से भूख तो मिटती है लेकिन पोषण नहीं मिलता।

हर नुक्कड़, हर मोड़ पर आसानी से उपलब्ध होने वाला यह भोजन पूरे विश्व की सेहत बिगाड़ रहा है लेकिन इनके आकर्षक विज्ञापन, बनाने, मंगाने और खाने की सुविधा के कारण इनका प्रचलन दुनिया भर में बढ़ता चला जा रहा है जो पूरी दुनिया को बीमार बना रहा है। भारतवर्ष में जैसे-जैसे इनका प्रचलन बढ़ा है, मोटापा तथा मोटापा-जनित बीमारों की संख्या भी उसी तेजी से बढ़ रही है। यह रुझान अभी इतना बड़ा नहीं नजऱ आता कि नीति-निर्धारकों की निगाह में आए, लेकिन जल्दी ही यह हमारे देश के लोगों के जीने (और यहां तक कि मरने) के ढंग को बदल देगा। भारतवर्ष में अभी जंक फूड के साथ-साथ भारतीय भोजन परोसने वाले ढाबों और रेस्तराओं की भी भरमार है, पर यह स्थिति कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता। आइए, अब मूल बात की ओर चलते हैं। भाजपा को सदैव से हिंदू समर्थक और व्यापारी समर्थक दल माना जाता है। भाजपा जब-जब सत्ता में आई है, व्यापारी वर्ग को कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिला है। मोदी लंबी पारी खेलना चाहते हैं, इसलिए एक तरफ तो वे कारपोरेट सेक्टर को सुविधाएं दे रहे हैं, लेकिन वे छोटे व्यापारियों को भी यह महसूस नहीं होने देना चाहते कि उन्हें उपेक्षित किया जा रहा है, हालांकि ऑनलाइन व्यापार की बढ़त के कारण अभी तक पारंपरिक व्यापार में शामिल लोगों को ऐसा कुछ नजऱ नहीं आया है जिसे वे राहत मान सकें। नॉन-कारपोरेट सेक्टर माने जाने वाले छोटे व्यापारियों के विभिन्न वर्गों में छोटे व्यापारी, ट्रांसपोर्टर्स, ट्रक ऑपरेटर्स, लघु उद्यमी, हॉकर्स, स्वरोजगार एवं महिला उद्यमी शामिल हैं।

इन सबका आग्रह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहतर गति प्रदान करने के लिए अब सरकार को अपना ध्यान कॉर्पोरेट सेक्टर से हटाकर नॉन-कॉर्पोरेट सेक्टर पर केंद्रित करना चाहिए क्योंकि विगत लम्बे समय से नॉन-कॉर्पोरेट सेक्टर ने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में योगदान, घरेलू उत्पाद, निर्यात एवं रोजगार के क्षेत्रों में कार्पोरेट सेक्टर को पीछे छोड़ा है। वस्तुस्थिति यह है कि आज़ादी से लेकर अब तक सदा नॉन-कॉर्पोरेट सेक्टर की बेहद उपेक्षा की गयी है। नॉन-कार्पोरेट सेक्टर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें हर स्तर के व्यक्ति के खपने की सुविधा है। सडक़ों के किनारे फड़ी लगाने वाले, ट्रैफिक लाइटों पर सामान बेचने वाले लोगों में आपको छोटे बच्चे, महिलाएं और दिव्यांग लोगों की भरमार मिलेगी जिससे कार्पोरेट सेक्टर महरूम है। इसके बावजूद एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बैंक नॉन-कॉर्पोरेट सेक्टर को ऋण देने में असफल हुए हैं क्योंकि अब तक इस सेक्टर के केवल 6 प्रतिशत लोगों को ही बैंकों से कजऱ् मिल पाया है, जबकि बचे 96 प्रतिशत लोग आज भी प्राइवेट मनी लेंडर या अन्य स्रोतों से कजऱ् लेने के लिए मजबूर हैं। इसके अतिरिक्त ऑनलाइन रिटेल के कारण ऑफलाइन ट्रेड की चुनौतियों का जिक़्र करें तो हम पाते हैं कि रिटेल व्यापार और रिटेल ई-कॉमर्स व्यापार में एफडीआई की अनुमति के मामले में भी विसंगतियां स्पष्ट हैं। हमें यह भी स्वीकार करना ही होगा कि समय की सूइयों को वापिस नहीं घुमाया जा सकता और तकनीकी प्रगति के चलते होने वाले परिवर्तनों की अनदेखी भी नहीं की जा सकती।

ग्राहकों को ऑनलाइन व्यवसाय से मिलने वाली सुविधाएं अधिक आकर्षित करती हैं तो अंतत: बाज़ार में भी वही टिकेगा जिसे ग्राहक पसंद करेंगे। यही कारण है कि आज कोई भी सरकार ऑनलाइन ट्रेड की उपेक्षा करने की स्थिति में नहीं है। उद्यम की ओर प्रवृत्त होने वाला युवा वर्ग भी तकनीक का इस्तेमाल करके इसे वैश्विक स्तर पर ले जाने का इच्छुक है, यही कारण है कि ऑनलाइन ट्रेड का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है। किसी भी सरकार के लिए समाज के विभिन्न वर्गों की अपेक्षाओं का संतुलित करना आसान नहीं होता। ऑनलाइन व्यापार अब शायद विश्व भर में अपनी सुविधा के लिए बढ़त पर है जिससे ऑफलाइन ट्रेड घबराया हुआ है। ऐसे में देखना होगा कि मोदी सरकार नॉन-कारपोरेट सेक्टर की आशाओं पर खरा उतरने के लिए क्या करती है? सरकार का निर्णय आम जनता को एक छोटा-सा कदम लग सकता है, पर उसके किसी भी निर्णय से बड़े परिवर्तन के आसार से इन्कार नहीं किया जा सकता है।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App