‘कैलेंडर’ हो गया ‘पप्पू पेजर’

By: Mar 10th, 2023 8:23 pm

वह हंसमुख था, गुदगुदाता था। चुटकुले भी सुनाता था। मिलनसार और सामाजिक भी था वह। कमाल का अभिनेता था और न जाने कितने किरदार जिए थे उसने। चूंकि संस्कार और प्रशिक्षण राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और पूना फिल्म-टीवी इंस्टीट्यूट से पाए थे, लिहाजा उसकी सांसों में एक फनकार, हंसी के स्वाभाविक तार छेड़ता कॉमेडियन और एक रचनात्मक, सशक्त निर्देशक हर पल जीवंत था। उसे अपने चेहरे और कुदरती बनावट पर आत्मविश्वास के साथ गर्व भी था। उसका संबल था कि कोई भी फिल्म निर्देशक उसे खारिज नहीं कर सकता। वह दिल्ली करोल बाग के नाईवाला इलाके का नौजवान था, जिसने मुंबई में अभिनेता बनने का सपना संजोया था और उसके यथार्थ से भली-भांति परिचित था। पिताजी एक संघर्षशील सेल्समैन थे और परिवार निम्न मध्यवर्गीय था। उसके बावजूद वह 800 रुपए लेकर मुंबई चला गया। फुटपाथ पर या पार्कों में भूखा न सोना पड़े, लिहाजा एक कपड़ा मिल में 400 रुपए की नौकरी भी कर ली थी। फिल्मों में शेखर कपूर, श्याम बेनेगल और कुंदन शाह सरीखे क्लासिक निर्देशकों के जरिए पदार्पण करने का मौका मिला, तो वह सामान्य-सा चेहरा सतीश कौशिक बन गया। इसी होली पर हमने उन्हें पुराने दोस्तों के साथ उत्सव मनाते, आनंदित होते, रंग-गुलाल खेलते और कुछ थिरकते हुए भी देखा था। एक दिन पहले मुंबई में जावेद अख्तर-शबाना आज़मी के घर भी उन्होंने होली खेली थी। वह बेहद सकारात्मक और आशावान इनसान थे-दोस्तों के दोस्त। वह अतल गहराइयों तक गंभीर थे, लेकिन ग़मगीन हमने कभी नहीं देखा। उन्हें आभास तक नहीं था कि मौत खामोश कदमों से उनके करीब खिसकती आ रही थी।

होली का त्योहार रंगों और हंसी से सराबोर था, लेकिन रात जि़ंदगी में अंधेरा ले आई। अचानक कुछ ही मिनटों में वह ‘पत्थर’ हो गए, एक निष्प्राण मूर्ति। अस्पताल के डॉक्टरों तक भी पहुंच नहीं पाए। आज सतीश कौशिक हमारे दरमियान नहीं हैं। पूर्णविराम लगा गए। उनके अंतरंग मित्र-अनुपम खेर और अनिल कपूर-महसूस कर रहे हैं कि उनका एक हिस्सा खत्म हो गया। वे विकलांग हो गए। सतीश कौशिक तो पंचतत्त्व में विलीन होकर ‘अतीत का इतिहास’ बन गए, लेकिन हम अपनी सोच के मुताबिक, उन्हें दिवंगत नहीं मानते। अभी तो उनकी निर्देशित फिल्म ‘कागज़़’ आनी है। कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ में उन्हें बाबू जगजीवन राम की भूमिका में देखना है। वह पर्दे पर चलते-फिरते दिखाई देंगे, तो कौन मानेगा कि वह मृत हो चुके हैं! उन्होंने ‘मिस्टर इंडिया’ में ‘कैलेंडर’, ‘दीवाना-मस्ताना’ में ‘पप्पू पेजर’, ‘बड़े मियां, छोटे मियां’ में ‘शराफत अली’, ‘अंदाज़’ में ‘पानीपूरी शर्मा’ और ‘हम आपके दिल में रहते हैं’ में ‘जर्मन’ आदि के जो असंख्य किरदार निभाए थे, उन्हें कौन विस्मृत कर सकता है? सतीश ने ‘रूप की रानी, चोरों का राजा’ सरीखी भव्य, चकाचौंध, आडंबरीय, संगीतमय, अपराध फिल्म का निर्देशन किया था। बेशक निर्माता बोनी कपूर को करोड़ों का घाटा झेलना पड़ा, लेकिन फिल्मी दुनिया आज भी उनके निर्देशन का उल्लेख करती है। वह अपने दौर में ही किंवदंती बन गए थे। दक्षिण या किसी अन्य भाषा की फिल्में या अख़बार की कोई कतरन, जो उन्हें प्रेरित करती थी, उस पर उन्होंने रीमेक या मूल फिल्में बनाने के प्रयोग किए और कई बेहद सफल भी रहे। यह मौत भी एक सबक सिखा गई है। कोरोना वायरस महामारी के बाद उसके भयावह प्रभाव सामने आ रहे हैं। सडन डेथ के मामले बढ़ रहे हैं। क्लॉटिंग बन रही है, जिससे दिल के दौरे की संभावनाएं 70 फीसदी बढ़ गई हैं। यह डॉक्टरों के शोधात्मक निष्कर्ष हैं। तनाव बढ़ रहा है और कोरोना के बाद दिनचर्या बदल गई है। जो कसरत कर रहे हैं, नियमित सैर करते हैं, देखने में स्वस्थ लगते हैं, फिर भी उनका दिन अचानक रुक रहा है।


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