छिलकों की छाबड़ी : मेहमान आ रहे हैं…
मैंने अपने एक मित्र को फोन किया-‘क्यों भाई क्या कर रहे हो?’ मित्र ने बहुत अनमने मन से उत्तर दिया-‘अरे यार, रेलवे स्टेशन जा रहा हूँ, मेहमान आ रहे हैं।’ मैंने हंसकर कहा-‘क्यों मजाक कर रहे हैं, यह नयी सदी में मेहमानों का क्या लफड़ा है? अब कौन मेहमान बनना पसंद करता है और मेजबान भी नहीं रहे।’ मित्र ने जवाब दिया-‘मजाक नहीं कर रहा, आज वाकई मेहमान आ रहे हैं और वह भी तीन दिनों के लिए।’ मैंने उससे पूछा-‘अब क्या करोगे तुम?’ मित्र एक पल चुप्पी साध गये और फिर बोले-‘अब जो भी होगा, हो जायेगा। मेहमान भी बहुत नजदीक के हैं। टाला भी नहीं जा सकता।’ ‘लेकिन यार, यह तीन दिनों का टाइम कैसे निकाल लाये। अब तो मेहमान एक टाइम का होता है। यह तीन दिन तक उनकी सेवा में लगे रहना तो बड़ा मुश्किल है। यह तो बताओ उनकी संख्या कितनी है।’ मैंने पूछा तो वे बोले-‘पूरे परिवार सहित चारों सदस्य आ रहे हैं।’ मैंने कहा-‘ठण्ड का वक्त है। रजाइयाँ तो है न घर में स्पेयर?’ मित्र बोले-‘नहीं हैं यार, लेकिन टैंट हाऊस से ले आया हूँ।’ ‘और राशन पानी?’ मैंने पूछा। वे बोले-‘वह तो चिंता की बात नहीं है। सैलेरी परसों ही मिली है। पत्नी ने नाश्ते, लंच और डिनर का तीनों दिन का मैनू बना लिया है।’ मैंने कहा-‘भैया ध्यान रखना, अपने शहर में पर्यटन स्थल कई हैं। कहीं वे अपना प्रोग्राम न बदल दें। मेरा मतलब ठहरने की अवधि पांच दिनों में न बदल जाये।’ मित्र ने बताया-‘नहीं-नहीं, वह मैं दो दिनों में ही सलटा दूंगा ताकि तीसरे दिन तो वे खिसक ही लें। अच्छा मैं बाद में बात करूंगा। गाड़ी का टाइम हो गया है, अभी थ्री व्हीलर लेकर निकलता हूँ।’ मैंने कहा-‘आमीन, भगवान तुम्हारा हौंसला बनाये रखे।’ यह कहकर फोन काट दिया। फोन तो काट दिया, लेकिन मैं डर गया। मैंने पत्नी से कहा-‘जल्दी एक कप चाय बनाओ। थोड़ा मन डिप्रेस सा हो गया है।’
पलक झपकते पत्नी चाय बनाकर ले आई। मैंने कहा-‘बैठो, सुनो वर्मा जी के मेहमान आ रहे हैं।’ मेरी बात पर वह हंसी और बोली-‘आने दो न। उनके तो आने भी चाहिए, बड़े इतराते फिरते हैं। अब पता चलेगा कि तीन दिन तक कैसे पराये आदमी को भुगतना पड़ता है। लेकिन आप डिप्रेस क्यों हो रहे हैं। यह तो खुशी की बात है कि मेहमान वर्मा जी के आ रहे हैं। हमारे तो आने से रहे।’ मैंने कहा-‘वह तुम्हारे भाई-भाभी तो कह रहे थे अगले मंथ बैंगलौर से आने की।’ पत्नी के चेहरे की रंगत एक पल को बदली और वह बोली-‘अरे वह तो घर के आदमी हैं। आ जायें तो क्या फर्क पड़ता है और फिर वे अगले मंथ आयेंगे। छोड़ो व्यर्थ की चिंता। चाय ठण्डी हो रही है।’ ‘चाय क्या, मैं तो अभी से ठण्डा हो रहा हूँ। वर्मा जी ने बिस्तर टैंट हाऊस से मंगवाये हैं, अपने कैसे क्या रहेगा, क्योंकि सर्दी तो अगले मंथ में भी रहेगी और उन्हें सुलाना कहाँ है? मेरा मतलब अपने पास किराये के कुल दो कमरे हैं। मेहमानों को सुलाना तो पड़ेगा न।’ मैंने कहा। पत्नी बोली-‘आप, मैं और बच्चे एक जगह सो जायेंगे, उन्हें अपना वाला बैडरूम दे देंगे। आप क्यों फिक्र करते हैं। मैं सब मैनेज कर लूंगी।’ मैंने कहा-‘लेकिन भागवान वे बीस को आयेंगे। बीस तक तो सैलेरी तार-तार हो जाती है। मैं पी.एफ. से लोन एप्लाई कर देता हूँ।’ इस बार पत्नी के कान चौकन्ने हुये, बोली-‘यह आपकी व्यवस्था है, जो भी करना हो, कर लो। पैसा तो खर्च होगा ही।’
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
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