यौन शिक्षा का तार्किक महत्त्व

कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीडऩ के संरक्षण अधिनियम 2013 का ज्ञान बालिकाओं को यौन शिक्षा द्वारा प्राप्त होगा तो वे छेड़छाड़, दुष्कर्म, शरीर स्पर्श, अश्लील इशारों का प्रतिरोध कर सकेंगी। कुल मिला कर सही तरीके से यौन शिक्षा के मुद्दे पर गहन विचार की जरूरत है। चाहे हमारे सांस्कृतिक मूल्य इसके साथ तालमेल नहीं बिठाते, परंतु इसके तार्किक महत्त्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अत: किशोरों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए…

यौन शिक्षा यानी सेक्स एजुकेशन, हमारी शिक्षा से जुड़ा ऐसी विषय वस्तु है जिस पर खुल कर बात करने और बहस करने से हमेशा बचा जाता है, लेकिन अब सभ्य समाज की सोच में फर्क आ रहा है। शिक्षा से जुड़े लोग देश में यौन अपराधों में वृद्धि के कारण इसकी आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। यौन शिक्षा का मतलब इन बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करना नहीं है, बल्कि इसके बारे में चेतना का विकास करना है। यूनेस्को की ताजा वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट के अनुसार, केवल 20 प्रतिशत देशों में यौन शिक्षा को लेकर कानून है, जबकि 39 प्रतिशत देशों में राष्ट्रीय नीति है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 68 प्रतिशत देशों में प्राथमिक स्कूलों में यौन शिक्षा अनिवार्य है जबकि 76 प्रतिशत देशों में माध्यमिक विद्यालयों में ऐसी व्यवस्था है। रिपोर्ट के अनुसार दस में से छह से अधिक देशों में लैंगिक भूमिका, यौन और घरेलू दुव्र्यवहार जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। दो में से एक देश आपसी सहमति की अवधारणा को मानता है। दो-तिहाई देशों में गर्भनिरोधक मुद्दों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लैंगिकता मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। हालांकि, यदि युवाओं को सही वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान नहीं किया जाता है तो भ्रामक जानकारी के कारण उन्हें बचपन से वयस्कता में प्रवेश करने पर परेशानियां हो सकती हैं। यौन शिक्षा से हमारे समाज में गलत धारणाएं फैली हुई हैं। यह साधारण धारणा है कि यौन शिक्षा प्रजनन और यौन के आधारभूत तथ्यों के संबंध में युवकों और युवतियों को शिक्षित करने के लिए है। यौन शिक्षा का उद्देश्य इस क्षेत्र में व्याप्त गलत धारणाओं, वर्जनाओं और मिथकों को दूर करना एवं कामवासना के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति को बढ़ाना है।’ यह कैसे किया जा सकता है, आइए इसको विचारें। सबसे पहले तो छोटे बच्चों की आरंभिक जिज्ञासाओं को यौन शिक्षा की आवश्यक शुरुआत के रूप में जाना जाना चाहिए।

यह ध्यान रखना चाहिए कि परिवार में मां की गर्भावस्था, परिवार में एक नए बच्चे का जन्म और विपरीत लिंग के जननांगों संबंधी विषय में बच्चे की जिज्ञासाएं कामुकता की निशानी नहीं हैं। इसलिए बड़ों को बच्चों के इस तरह के सवालों का जवाब देते समय शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। बच्चों की इन जिज्ञासाओं को स्वाभाविक रूप से यथासंभव सही जानकारी को बिना किसी अनावश्यक विवरण के साथ सरल शब्दों में बताने का प्रयास करना चाहिए। इसके बाद किशोरावस्था गहन यौन चेतना की अवस्था है क्योंकि इस अवस्था में यौन आवेग दृढ़ता से अनुभव किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इस अवस्था में किशोरों के आंतरिक एवं बाह्य अंगों में विशिष्ट शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसलिए यौवनारंभ से संबंधित शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों पर व्यक्तिगत और सामूहिक विचार-विमर्श के द्वारा उन्हें इन परिवर्तनों के बारे में स्पष्ट एवं वैज्ञानिक जानकारी दी जाए जिससे वे इन परिवर्तनों के प्रति अनभिज्ञ न रहें। किशोरों को प्रजनन की संरचना और क्रियाविज्ञान पर जानकारी दी जानी चाहिए। ऐसी जानकारी चार्ट, फ्लेशकार्ड, फ्लिप चार्ट, फ्लेनलग्राफ और मॉडल के साधनों के आधार पर वात्र्ता, प्रश्नोत्तर सत्रों, फिल्मस्ट्रिप और फिल्मों द्वारा दी जा सकती है।

किशोर लडक़े एवं लड़कियों के बीच विपरीत सेक्स के सदस्यों के प्रति सही अभिवृत्ति विकसित की जानी चाहिए। प्रतिजाति या विपरीत यौन के प्रति व्यवहार, यौन मानदण्डों और नैतिक नियमों पर व्यक्तिगत एवं सामूहिक विचार-विमर्श, प्रश्नोत्तर या फिल्म सहित विचार-विमर्श किया जाना यौन शिक्षा को प्रदान करने के लिए बाल्यावस्था को उपयुक्त माना गया है। बाल्यकाल के व्यवहारों का किशोरावस्था में व्यापक परिवर्तन देखने को मिलता है। इसलिए किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों, उत्तेजना, भावात्मक अस्थिरता का सामना करने से पूर्व उसकी तैयारी के रूप में यौन शिक्षा के अंतर्गत उसे सही, स्पष्ट एवं वैज्ञानिक जानकारी देना आवश्यक है जिससे वह किशोरावस्था की चुनौतियों में स्व-नियंत्रण में रह सके। वास्तविकता में लडक़े एवं लड़कियों द्वारा यौन शिक्षा से संबंधित प्रश्नों का सही, संतुलित एवं वैज्ञानिक कसौटी पर उत्तर देना एक मुख्य चुनौती है। परिपक्व एवं अनुभवी व्यक्तियों ने यौन शिक्षा से संबंधित जानकारी को शीर्ष गोपनीयता के रूप में रखा और इसे नैतिकता से जोड़ दिया है। समाज में भी इस संबंध में इतने प्रतिबंध और निषेध स्थापित कर इसे अत्यंत गोपनीयता का विषय बना दिया है। भारत जैसे देशों में स्थिति और अधिक अपरिवर्तनवादी है जहां यौन से संबंधित विषयों को नैतिक भावना के उल्लंघन के रूप में लिया जाता है। ऐसे वातावरण में शिक्षकों और विशेषज्ञों द्वारा इस संदर्भ में जानकारी देना कठिन है।

किन्तु जो कुछ भी कठिनाइयां हों, उनका समाधान अभिभावकों, शिक्षकों, विशेषज्ञों एवं नीति निर्माताओं को खोजकर बच्चों के हितों को ध्यान में रखना होगा। महिला के विरुद्ध यौन हिंसा रोकने में और बच्चों के विरुद्ध लैंगिक अपराधों को रोकने की दिशा में यौन शिक्षा की सार्थकता के लिए कई कारण हैं। यदि बालिकाएं तथा बालक यौन अपराध के शिकार अपनी मासूमियत के कारण होते हैं जो प्राय: होता है तो यौन शिक्षा के विभिन्न पक्षों की जानकारी मिलने पर वे गुंडे, असामाजिक तत्त्वों, निकट संबंधियों, लंपट पड़ौसियों, भ्रष्ट सीनियर छात्रों के प्रलोभन व बहकावे में नहीं आएंगे। वे यौन मामलों में अधिक जागरूक व सतर्क हो जाएंगे। उन्हें अच्छे स्पर्श व बुरे स्पर्शों का अर्थ समझ में आने लगेगा। यौन शिक्षा के अंतर्गत किशोर-किशोरियों को यौन हिंसा से बचने के उपाय भी बताए जा सकते हैं। असामाजिक परिचित से चाकलेट, आइसक्रीम आदि के प्रलोभन, इंकार करना तथा सेल्फ डिफेंस (आत्मरक्षा) हेतु जूडो-कराटे सीखना, माशल आर्ट का अभ्यास करना, अपनी सुरक्षा के लिए ‘आई फील एप’ स्मार्ट फोन में इंस्टाल करना, जिसमें सेफ्टी के पावर बटन का उपयोग सीखना, 100 नंबर पर ऑटोमेटिक कॉल पुलिस का जाना, लोकेशन ज्ञात होना आदि उत्पीडऩ रोकने के आधुनिक प्रयास हैं। यौन शिक्षा के अंतर्गत हिंसा संबंधी वैधानिक जानकारी तथा दंड व्यवस्था का ज्ञान विद्यार्थियों को होगा, तो वे कानूनी जाल में स्वयं को फंसाना नहीं चाहेंगे। साथ ही अपनी व अपने साथियों की वैधानिक रक्षा करने में प्रवृत्त होंगे।

बढ़ रहे साइबर यौन अपराध जगत से मुक्ति महत्त्वपूर्ण, पर कठिन हो गई है। पोर्नसाइट फेसबुक पर यौन प्रस्ताव आदि की वास्तविकता को समझकर युवा अपना बचाव स्वयं करने में सक्षम होंगे। अधिकारों का ज्ञान, यौन शिक्षा से महिलाओं व युवतियों को अपने मौलिक अधिकारों के साथ अन्य सुलभ अधिकारों का ज्ञान होगा तो वे इसका प्रयोग हिंसा व अपराध के विरुद्ध करने में सक्षम होंगी। कत्र्तव्य स्थल पर, शाला में यौन शोषण से बचाव, कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीडऩ के संरक्षण अधिनियम 2013 का ज्ञान बालिकाओं को यौन शिक्षा द्वारा प्राप्त होगा तो वे छेड़छाड़, दुष्कर्म, शरीर स्पर्श, अश्लील इशारों का प्रतिरोध कर सकेंगी। कुल मिला कर सही तरीके से यौन शिक्षा के मुद्दे पर गहन विचार की जरूरत है। चाहे हमारे सांस्कृतिक मूल्य इसके साथ तालमेल नहीं बिठाते, परंतु इसके तार्किक महत्त्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अत: किशोरों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App